भारत के राजनैतिक रंगमंच पर सोनिया गाँधी का आना एक जादुई करिश्मे की तरह प्रतीत होता है। श्रीमती इंदिरा गाँधी के दूसरे बेटे संजय गाँधी की दुर्घटना में मौत के पहले राजीव गाँधी या उनकी पत्नी सोनिया गाँधी का नाम महज इंदिरा गाँधी के पारिवारिक सदस्य के रूप में लिया जाता था। संजय की मृत्यु के बाद राजीव गाँधी भारतीय राजनीति में आए, भारत के प्रधानमंत्री भी बने। उनके जीवनकाल में सोनिया गाँधी का नाम सिर्फ उनकी पत्नी के रूप में लिया जाता था। अचानक राजीव गाँधी की हत्या के बाद भारत के राजनीतिक गलियारों में सोनिया गाँधी का नाम उभरा लेकिन उन्होंने अपने आप को नेपध्य में ही रखना स्वीकार किया। फिर धीरे-धीरे उन्होंने राजनीति में अपनी दखल-अंदाजी शुरू की। काफी विवादों के घेरे में भी रहीं क्योंकि भारतीय राजनैतिक गलियारों में उनका विदेशी मूल होना रास नहीं आ रहा था। जैसे तैसे उन्होंने कांग्रेस अध्यक्षा का पद प्राप्त कर लिया। फिर तो उनके करिश्मे का कहना ही क्या! बड़े बड़े नेता उनके आगे फीके पड़ गए।
सोनिया गाँधी के व्यक्तिगत जीवन को अगर देखें तो उनका जन्म एक रोमन कैथोलिक परिवार में हुआ था। 1964 में कैंब्रिज स्कूल आफ लैंग्वेज में उन्होंने दाखिला लिया जहां उनकी मुलाकात राजीव गाँधी से हुई। 1968 में दोनों का विवाह हो गया। राजीव गाँधी की मृत्यु के बाद 1997 में कांग्रेस की सदस्य चुनी गईं और 1998 में वे कांग्रेस की अध्यक्ष बन गईं। फिर 1999 में अमेठी लोकसभा क्षेत्र से तथा 2004 में रायबरेली से सांसद बनीं।
सोनिया गाँधी की वर्तमान ऊँचाई को देखकर यह सहज ही विश्वास नहीं होता कि महज 7-8 वर्षों में उन्होंने यह सफलता अर्जित की। उन्होंने कई परिस्थितियों में अपनी सूझ-बूझ का कुछ ऐसा कारनामा दिखाया कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी मात खा गए। इसके उदाहरण के रूप में 1998 में कांग्रेस विभाजन को रोकना तथा कांग्रेस की दुर्दशा को 2004 तक ऐसी स्थिति जिससे कि कांग्रेस फिर से सत्ता में लौट सकी।
कांग्रेस की छवि भारतीय राजनीति में काफी धूमिल पड़ती जा रही थी। हर जगह इसका राज्य समाप्त हो गया था। आज भारत के 16 राज्यों में कांग्रेस का शासन हैं तथा केन्द्र पर भी कांग्रेस का ही प्रधानमंत्री है।
सोनिया गाँधी ने कई अर्थों में कुछ ऐसी मिसालें कायम कीं जो निःसन्देह सराहनीय है। राजीव गाँधी की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने को राजनीति से बिल्कुल अलग कर लिया। उन्होंने अपना सारा ध्यान अपने परिवार की और दिया। फिर जब उनके पुत्र राहुल और पुत्री प्रियंका ने अपनी जिम्मेदारियां संभाल ली तो सोनिया गाँधी ने राजनीति की कमान थामी। जिस सोनिया को सही ढंग से हिन्दी शब्दों का उच्चारण नहीं आता, उसने भारत की जनता पर ऐसी छाप छोड़ी कि 2004 में कांग्रेस सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में आया। कुछ सहयोगी पार्टियों के साथ मिलकर कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में हो गई। सोनिया गाँधी को इसका नेता चुना गया। परन्तु अचानक उन्होंने प्रधानमंत्री का पद अस्वीकार कर दिया। बस फिर सोनिया गाँधी तो भारतीय मानसिकता पर राज करने लगीं। लोग उनके इस त्याग को महानतम कहने लगे। उनका इस पद से अस्वीकार एक ऐसा धमाकेदार कदम था कि जहाँ एक ओर अपने समर्थकों के बीच उन्होंने अपनी गहरी पैठ बनाई वहीं दूसरी ओर विपक्षों के सारे मुद्दों को एक झटके में मटियामेट कर दिया।
सोनिया गाँधी का व्यक्तित्व कुल मिलाकर काफी सराहनीय है। उनका अपने परिवार के प्रति लगाव, संयम, निष्ठा, धैर्य एवं उत्तरदायित्वों का सहज निर्वाहन उन्हें कई अर्थों में एक अलग पहचान देता है।