सोनिया गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष का कार्यकाल इस वर्ष के अंत में समाप्त हो रहा है। हालांकि राहुल गांधी अनेकों चुनावी और अन्य कैम्पेन में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं, किन्तु कांग्रेस वर्किंग कमेटी की निकट आती बैठक को लेकर ये कयास लगने शुरू हो गए हैं कि क्या राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का समय आ गया है।
इस समय पार्टी के सामने जो मुद्दे सबसे अधिक प्रार्थमिकता लिए हुए हैं वो है पार्टी का जनाधार बढ़ाना और इस वर्ष होने वाले पार्टी के आतंरिक चुनाव। पार्टी के सामने अपने संविधान में परिवर्तन का सवाल भी है जैसे कि महिलाओं और अनुसूचित जातियों के लिए रिजर्वेशन बढ़ाना साथ ही सहयोगी संगठनों जैसे NSUI के मेम्बरों को कांग्रेस का डीम्ड मेंबर मान लेना।
खैर, सभी का ध्यान इस पर है कि क्या राहुल गांधी अंतत: पार्टी की संभालेंगे या अभी उन्हें और प्रतीक्षा करनी होगी। यह सवाल जब भी कांग्रेस कार्यकारी समिति की बैठक होती है तभी उभर कर सामने आ जाता है। तमाम अंतर्विरोधों और विरोधाभासों के बीच राहुल के घनिष्ठ सहयोगी सचिन पायलट का यह बयान कि कांग्रेस उपाध्यक्ष को बड़ी जिम्मेदारी दी जाये, मामले को और उलझने वाला ही साबित हुआ है।
पार्टी ने जहां शीर्ष पर नेतृत्व परिवर्तन की सभी शंकाओं को निर्मूल ठहराया है वहीँ ये कयास भी लग रहे हैं कि राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का फैसला बिहार चुनाव के बाद ही लिया जायेगा । कुछ लोगों का तो यहाँ तक मानना है कि राहुल गांधी को अध्यक्ष पद पर बैठने का फैसला बिहार ही नहीं, उत्तर प्रदेश, बंगाल और तमिलनाडु के चुनावों के नतीजे आने के बाद ही किया जायेगा ताकि इन चुनावों पार्टी के असफल प्रदर्शन का ठीकरा उनके सर ना फोड़ा जाये। ऐसे में सोनिया गांधी का अध्यक्ष पद पर कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ना तय नज़र आता है। ऐसे में यही कहना होगा कि राहुल गांधी को अध्यक्ष बनने के लिए अभी और इंतज़ार करना होगा।
मुद्दे की बात यह है कि क्या इस तरह से चुनावी समर की हार-जीत से बचा कर क्या कांग्रेस अपने युवराज को एक हीरो के रूप में जनता के सामने ला पायेगी?