Maharshi Dayanand par laghu nibandh
प्रस्तावना- जब देश में कुरीतियाँ बढ़ जाती हैं, अंधविश्वास प्रबल हो जाते हैं, धर्म के ठेकेदार पाखंडों को महत्व देने लगते हैं, तब कोई न कोई ऐसा महापुरूष जन्म लेता है जो समाज को एक नया और सच्चा रास्ता दिखा सके। महर्षि दयानंद ऐसे ही महापुरूष थे। उन्होंने समाज में फैली अनेक कुरीतियों को दूर करने का प्रयत्न किया था।
जन्म और शिक्षा- स्वामी दयानंद का जन्म संवत् 1824 ई. में गुजरात के टंकारा नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम अम्बा शंकर था और उनका बचपन का नाम मूलशंकर था। आपकी शिक्षा घर पर ही हुई थी। आपकी बुद्धि कुशाग्र थी। आपने 12 वर्ष की अवस्था में ही संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
शिवरात्रि की घटना- शिवरात्रि के महान पर्व पर स्वामी जी ने शिव रात्रि का व्रत रखा। रात को उन्होंने देखा कि शिवलिंग पर चढ़ाई गई मिठाई को चूहे खा रहे हैं। उन्हें शंका हुई कि जो शिव सारे संसार का रक्षक है वह चूहों से अपी रक्षा क्यों नहीं कर पा रहा? उन्होंने अपने पिता जी को जगाया। उन्होंने उनसे अपनी शंका का समाधान चाहा। उनके पिता उन्हें कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं दे पाए। उस दिन से स्वामी जी ने सच्चे शिव को ढृँढ़ना आरम्भ कर दिया।
विरक्ति भावना- स्वामी जी की बहन और चाची की अचानक मृत्यु हो गई। इससे उनमें विरक्ति भावना जाग उठी। सच्चे ईश्वर की खोज और मृत्यु पर विजय पाने की इच्छा उनमें प्रबल हो गई। इसलिए वे अपना घर छोड़ सच्चे गुरू की खोज मे निकल पड़े।
स्वामी विरजानंद से शिक्षा- आपने अनेक स्थानों पर अध्ययन किया। स्वामी सुबोधनंद से आप ने संन्यास लिया और उनका नाम दयानंद रखा गया। आप स्वामी विरजानंद की प्रशंसा सुनकर मथुरा गए। वहाँ आपने वेदों और अन्य धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया। अध्ययन करने के बाद स्वामी जी ने अपने गुरू से आर्षीवाद मांगा। गुरू जी ने कहा- समाज में फैली कुरीतियों को दूर करो। अंधविश्वास समाप्त कराओ। देश का उद्धार करो। गुरू जी की आज्ञा के अनुसार उन्होंने सारे देश में घूम घूम कर कुरीतियों के विरूद्ध प्रचार शुरू कर दिया।
शास्त्रार्थ और आर्य समाज की स्थापना- स्वामी जी हरिद्वार कुंभ के मेले में गए। वहाँ उन्होंने वेदों का प्रचार किया। काशी में भी उन्होंने दो बार शास्त्रार्थ किया। उन्होंने मुम्बई में आर्य समाज की स्थापना की। उन्होंने भारत के छोटे बड़े नगरों में घूम घूम कर लोगों को सच्चे वैदिक धर्म का मार्ग बताया। अंधविश्वासों को दूर करने विधवा-विवाह को आरम्भ करने, छूतछात की कुरीति को दूर करने, नारी शिक्षा आरम्भ करने आदि के कार्यों में अपना सारा जीवन लगा दिया।
स्वामी जी को लोगों ने डराया, धमकाया, पर स्वामी जी ने इसकी चिन्ता नहीं की। घूमते घूमते वे जोधपुर नरेश के पास पहुँचे। वहाँ उन्होंने वेश्या को देखा। स्वामी जी ने जोधपुर नरेश की इसके लिए भर्त्सना की। उसने स्वामी जी के रसोइए से मिलकर स्वामी जी को दूध में विष मिलाकर पिलवा दिया। इससे स्वामी जी की मृत्यु हो गई।
ऋर्षि बोधोत्सव और निर्वाणोत्सव- आर्य समाज शिवरात्रि के पवित्र पर्व पर ऋर्षि बोधोत्सव मनाता है और दीपावली के दिन ऋर्षि निर्वाणोत्सव मनाया जाता है। इन अवसरों पर महर्षि दयानंद के जीवन पर प्रकाश डाला जाता है। आर्य समाज के सिद्धान्तों का प्रचार भी इन अवसरों पर किया जाता है।
उपसंहार- स्वामी जी ने समाज में सुधार का जो बिगुल बजाया था, उसकी आवाज आज भी सुनाई देती है। उन्होंने जो जो कार्य शुरू किए थे, वही कार्य आज सरकार ने अपने हाथों में ले लिए हैं। हमें भी महर्षि दयानंद के दिखाए मार्ग पर चलकर समाज को उन्नत करने के प्रयत्न में लग जाना चाहिए। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।