सह-शिक्षा पर निबंध Essay on Coeducation in Hindi
प्राचीन काल में समाज में पुरूष को नारी से श्रेष्ठ माना जाता था। पुरूष विभिन्न अधिकारों का उपभोग करता था, किन्तु नारी अधिकांश सुविधाओं से वंचित थी। यहाँ तक कि पशु और नारी में कोई भेद नहीं माना जाता था। तुलसीदास जी ने कहा है-
‘ढोल, गंवार, शूद्र, पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी।’
किन्तु समय सदैव एक सा नहीं रहता। भारतीयों की विचारधारा में भी परिवर्तन हुआ। नारी को भी पुरूषों के समान अधिकार दिए जाने लगे। यहाँ तक कि नारी सह-शिक्षा (coeducation) भी प्राप्त करने लगी।
सह-शिक्षा से अभिप्राय है – लड़के-लड़कियों का एक साथ बैठकर एक ही विद्यालय में, एक ही पाठ्यक्रम का अध्ययन करना। सह-शिक्षा पाष्चात्य देशों की देन मानी जाती है। विद्वानों के अनुसार इसकी उत्पति स्विट्जरलैण्ड में हुई। यहाँ से यह इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों में पहुँची। इन्हीं यूरोपीय देशों के प्रभाव से इसका भारत में भी प्रचलन हुआ। कतिपय विद्वानों का यह विचार है कि सह-शिक्षा भारत के लिए कोई नई अवधारणा नहीं, अपितु प्राचीनकाल में वाल्मीकि, कण्व ऋषि आदि भी अपने आश्रमों में ब्रहमचारी बालक बालिकाओं को एक साथ पढ़ाते थे। अतः प्राचीन काल में भी सह-शिक्षा प्रचलित थी, जिसका रूप अत्यन्न शुद्ध था, किन्तु अधिकांश विद्वान इसे 19वीं शताब्दी की उपज ही स्वीकार करते हैं।
आज का समय नागरिक सह-शिक्षा का पक्षधर है। कारण? सह-शिक्षा से अनेक लाभ हैं।
प्रमुखतः लाभ इस प्रकार है-
प्रथम, सह-शिक्षा से देश के धन का अपव्वय रोका जा सकता है। जिन विषयों में छात्र- छात्राओं की संख्या बहुत कम होती है, उनके लिए भी लड़को व लड़कियों की पृथक-पृथक शिक्षा व्यवस्था करने से देश की आर्थिक व्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा।
द्वितीय, सह-शिक्षा से लड़के-लड़कियों को एक दूसरे को समझने का अवसर मिलता है। एक दूसरे के प्रति उत्पन्न यह विश्वास भविष्य में सुखद जीवनयापन में सहायक होता है। जब पुरूष व स्त्री जीवनरूपी गाड़ी के दो पहिए हैं, तो उनके एक साथ मिलकर शिक्षा प्राप्ति पर ही प्रतिबन्ध क्यों लगाया जाए?
तीसरे, सह-शिक्षा से लड़कियों की अनावश्यक झेप भयहीन भावना समाप्त होती है। लड़कों से भी उदंडताख् निर्लज्जता, उच्छृंखलता आदि अवगुण कम होते हैं। वे भी संयमित रहकर शिष्ट व शुद्ध आचरण करना सीखते हैं। इस प्रकार जीवन के विकास में बाधक दुर्गुणों का उन्मूलन करने में सह-शिक्षा अत्यन्त सहायक है।
चौथे, लड़के लड़कियों के एक साथ पढ़ने से उनमें स्पर्द्धा की भावना विकसित होती है। प्रत्येक छात्र, छात्रा एक दूसरे से आगे निकलने का यत्न करेगा। इससे छात्रों की बहुमुखी प्रतिभा उजागर होगी।
पाँचवे, सह-शिक्षा सौन्दर्यवर्द्धक भी कही जा सकती है प्रत्येक विद्यार्थी स्वयं को दूसरे के आकर्षण का केन्द्र बनाने के लिए अधिक सुन्दर रूप से प्रस्तुत करने की चेष्टा करता है। स्वच्छ, सुन्दर वस्त्र समुचित केशविन्यास, आकर्षक चाल ढाल छात्रों के सौन्दर्य में निखार ला देते हैं।
छठे, कई बार युवक युवतियाँ एक दूसरे के गुणों से परिचित होने के बाद विवाह का निर्णय कर लेते हैं। स्वयं ही अपने जीवनसाथी को वरण कर लेने से वे समाज से दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों को मिटाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
यह एक सर्वविदित तथ्या है कि सह-शिक्षा सिक्के के दो पहलू होते हैं। सह-शिक्षा का एक पक्ष उजला है, दूसरा मलिन। सह-शिक्षा से जहाँ लाभ हैं, वहाँ हानियाँ भी हैं-
1. रूढि़वादी लोग सह-शिक्षा का विरोध इसीलिए करते हैं कि शिक्षक, पाठ्यक्रम विद्यार्थी से एक ऐसा त्रिशंकु बनाते हैं, जिसमें ज्ञानवर्द्धन होता है। पाठ्यक्रम में कई बार ऐसे प्रकरण भी आ जाते हैं, जिन्हें सह-शिक्षा में स्पष्ट करना कठिन हो जाता है। संकोचवश छात्र भी पूछ नहीं पाते और अध्यापक भी स्पष्टीकरण किए बिना आगे बढ़ जाना श्रेयस्कर मानते हैं। अतः सह-शिक्षा में विद्यार्थियों की जिज्ञास पूर्णतः शांत नहीं हो पाती।
2. सह-शिक्षा का एक बुरा पहलू यह भी है कि इससे छात्र-छात्राएँ अपना अधिकांश अमूल्य समय श्रृंगार आदि में ही व्यर्थ गंवा देते हैं।
3. नीतिकारों का कथन है- ‘कंचन, कामिनी और कादम्बरी का मोह मनुष्य को मनुष्यता से पतित करता है।’ अर्थात् धन, सुन्दरी और सुरा मनुष्य का नैतिक पतन करते हैं। नर-नारी में घास-फूस और अग्नि का सम्बन्ध है। यदि दोनों पास रहेंगे तो आकर्षण तो होगा ही कामवासनादि कुत्सित भावों आविर्भाव भी अवश्य होगा। जवानी दीवानी होती है। वह जोश में होश खो बैठती है। अतः छात्र-छात्राएँ, सामाजिक मान मर्यादा, शिक्षा, माता पिता की इच्छा आदि को ताक पर रखकर प्रेमलीलाओें, मधुर वार्तालापों में मग्न हो जाते हैं। कालेज प्रेमी प्रेमिका के मिलन स्थल बन जाते हैं। घण्टों एक दूसरे की आँखों में आँखें डाले, दुनिया से बेखबर अपना अनमोल समय व्यतीत करते हुए वे सरस्वती के पावन मन्दिर को भी दूषित करते हैं।
जब बड़े बड़े ऋषि-मुनि भी स्वयं को नारी के आकर्षण से बचाकर नहीं रख पाए, तो साधारण युवक की तो बात ही क्या? अतः युवक युवतियों के चारित्रिक पतन को रोकने के लिए सह-शिक्षा को रोकना चाहिए। जब प्रकृति ने ही नर-नारी के गुणों में समानता नहीं बरती, उनके कायों में समानता नहीं बरती, तो शिक्षा में ही समानता की क्या आश्वयकता है? पुरूष को पुरूषत्व के अनुकूल, जीविकोपार्जन में सहायक शिक्षा की आश्वयकता है, जबकि स्त्री को घर चलाने के लिए उपयोगी शिक्षा चाहिए। अतः दोनों को एक साथ एक ही पाठ्यक्रम पढ़ाना अनुचित है। स्त्री गृहस्वामिनी बनकर सुशोभित हो सकती है और पुरूष गृह संचालक बनकर।
उपरोक्त लाभ व हानि का अध्ययन करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सह-शिक्षा अत्यन्त लाभकारी है, किन्तु इसके विरोध में दिए गए तर्क भी पूर्णतया संगत है।
(900 शब्द words Essay on coeducation in Hindi)