दो शिकारी जब सारा दिन जंगल में घूमते-फिरते थक गए तो एक पुराने तालाब के किनारे आकर आराम करने के लिए बैठ गए। शिकार न मिलने के कारण हालांकि वे दोनों ही निराश थे, किन्तु एक शिकारी कुछ अधिक ही निराश था।
तभी एक साथी उस तालाब से पीने का पानी भरने गया तो उसने तालाब में तैर रही मछलियों को देखा। मछलियों को देखकर उसके मन में फौरन एक ख्याल आया और उसकी आंखें चमकने लगीं।
वह पानी लेकर अपने साथी चन्दू के पास गया और बोला-”अरे भाई चंदू! इतना निराश क्यों है। काम धंधे में नफा-नुकसान तो चलता ही रहता है। अगर आज शिकार नहीं मिला, तो क्या हुआ। जिस तालाब के किनारे हम बैठे हैं, उसमें मछलियां ही मछलियां भरी पड़ी हैं, जाल डालो और मछलियां पकड़ कर शहर जाकर बेचो, इस तरह अपना धंधा खूब चलेगा।“
”बात तो तुम्हारी ठीक है, परंतु अब तो शाम हो गई है… कल सुबह से ही मछलियां पकड़ेंगे। तालाब में तैर रही मछलियों ने इन दोनों शिकारियों की बातें सुन ली थी।“
जीवन किसे प्यारा नहीं, और मौत से कौन नहीं डरता। इन मछलियों को जब यह पता चला कि ये दोनों शिकारी उनके दुश्मन हैं तो वे अपने राजा मगरमच्छ के पास गईं और सारी बात बताई। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि हमें रातों-रात यह तालाब छोड़कर कहीं और चले जाना चाहिए।
मगर मगरमच्छ ने अपने पूर्वजों का तालाब छोड़कर कहीं भी जाने से इन्कार कर दिया।
मगरमच्छ को उसके मंत्रियों ने भी समझाया, मगर रूढि़वादी मगरमच्छ ने साफ मना कर दिया।
राजा का अंतिम फैसला सुनका सभी मछलियों को बहुत निराशा हुई।
वे सब अब मंत्री की ओर देख रही थीं।
उन्हें पता था कि मंत्री बहुत बुद्धिमान है। वह बचने को कोई न कोई रास्ता अवश्य निकालेगा।
उसी समय मंत्री ने कहा-”हम लोग इस समय घोर संकट में हैं। यदि हमने अपने बचाव के लिए शीघ्र ही कोई प्रयत्न न किया तो शिकारी कल तक किसी को भी जीवित नहीं छोड़ेंगे।“
”तो फिर आप ही बताइए मंत्री जी हम क्या करें।“ दुखी स्वर में एक मछली बोली- ”हम तो वैसा ही करने को तैयार हैं जैसा आप कहें।“
”आप में से जो जीना चाहते हैं, वह मेरे साथ दूसरे तालाब में चलें, मैं उन्हें वहां तक सुरक्षित पहुंचा दूंगा।“
सारी मछलियां दो भागों में बंट गईं।
जिनमें से एक पक्ष राजा का साथ देने के पक्ष में था, दूसरा पक्ष मंत्री के साथ जाने को तैयार हो गया।
मंत्री ने उसी समय कुछ बड़े-बड़े कछुओं को बुलाया और उनसे प्रार्थना की कि भई संकट के इस समय में हमारी सहायता करो, नहीं तो शिकारी हमें मार डालेंगे।
कछुओं ने मंत्री की बात मान ली और रातोंरात मछलियों को अपनी पीठों पर लाद कर साथ वाले तालाब में पहुंचाना शुरू कर दिया।
राजा ने अपने मंत्री और अपनी प्रजा को जाते देखा तो उसके मन को बहुत दुख हुआ।
असल में मौत का डर तो उसे भी सता रहा था, मगर वह अपने पुष्तैनी तालाब को छोड़कर नहीं जाना चाहता था।
सुबह उठकर उन दोनों शिकारियों ने तालाब में अपने जाल फेंककर मछलियों को पकड़ना शुरू कर दिया, एक एक करके राजा के पक्ष की मछलियां जाल में फंसती रहीं और एक राजा की हठ और रूढि़वादिता के कारण तालाब की बची मछलियां अपनी जान से हाथ धो बैठीं।