एक समय की बात है कि, किसी व्यक्ति के पास एक गधा था। गधा बहुत परिश्रमी था। मगर मालिक इतना कठोर हदय था कि गधे से दिन-रात कड़ी मेहनत करवाने के बाद भी उसे भर पेट भोजन नहीं देता था। परिणाम यह हुआ कि गधा धीरे -धीरे दुर्बल हो गया।
गधा हर रोज अपने मालिक से कहता है कि ‘मालिक! मेरी और भी कुछ ध्यान दो। मैं दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा हूं। यदि मुझे अभी भी सही भोजन न दिया गया तो मैं अधिक दिनों तक न चल पाऊंगा और वह भी आपका ही नुकसान होगा।’
मगर मालिक के कान पर जूं न रेंगती।
एक दिन उस व्यक्ति ने गधे पर बहुत अधिक वजन लादा और एक ऊबड़-खाबड़ सड़क पर हांक दिया।
गधा कमजोर तो था ही, इसलिए अपनी पीठ पर लदा बेहद भारी बोझ वह ठीक से नहीं ढो पा रहा था। वह बुरी तरह लड़खड़ा रहा था। तभी वह रास्ते में पड़े एक पत्थर से टकराया और अपना संतुलन न रख पाने के कारण सड़क पर गिर पड़ा।
पीठ पर लदे चीनी मिट्टी के बरतन नीचे गिरकर टुकड़े-टुकड़े हो गए। उसके मालिक को यह देखकर बहुत गुस्सा आया। उसने गधे को बुरी तरह पीटना आरंभ कर दिया।
गधे ने आंखों में आंसू भरकर कहा- ”ओ मालिक! आश्चर्य है कि मनुष्य होकर भी तुम्हारे अंदर विवेक नहीं है। तुम्हें तो केवल अपने लाभ से मतलब है, जबकि तुमने मेरे प्रति अपने कर्तव्यों के बारे में कभी कुछ नहीं सोचा। यदि तुमने मेरे कारण होने वाली आमदनी का एक छोटा भाग भी मेरे खान-पान पर खर्च किया होता तो आज तुम्हें यह व्यावसायिक हानि नहीं उठानी पड़ती।“ मैं आज भी हटृा कटृा और स्वस्थ रहता।
निष्कर्ष- स्वार्थी, अंधा और मूर्ख होता है।