एक बार एक बहेलिए ने एक फाख्ता अपने जाल में फंसाई। वह उसे अपने घर लाया और उसे अपनी मुर्गियों के साथ रख दिया। अपने बीच एक अजनबी और नई चिड़िया देखकर सभी मुर्गियां फाख्ता को परेशान करने लगीं और उसे चोंचें मारने लगीं।
Advertisement
फाख्ता बहुत उदास हो गई, परंतु उसकी समझ में यह नहीं आया कि वह करे क्या? उसने मुर्गियों से दोस्ती भी करनी चाही, मगर बेकार। मुर्गियां उससे दोस्ती नहीं करना चाहती थी। वे उसे वैसे ही चोंचें मारती रहीं।
एक दिन फाख्ता एक कोने में बैठी थी। तभी उसने देखा कि सारी मुर्गियां आपस में लड़ने लगीं।
Advertisement
फाख्ता ने सोचा- ‘मुर्गियां मेरे साथ लड़ती थीं, यह तो समझ में आता है, क्योंकि मैं उनके समान नहीं हूं, मगर उनका आपस में ही लड़ना यह बात कुछ समझ में नहीं आई।’
निष्कर्ष- झगड़ालू गैरों से नहीं, अपनों से भी झगड़ पड़ते हैं।
Advertisement
Advertisement