किसी दम्पति के पास एक अदभुत मुर्गी थी। ‘अदभुत’ इसलिए कि वह प्रतिदिन सोने का एक अंडा देती थी। ऐसी जादुई मुर्गी पाकर वे बहुत प्रसन्न थे तथा अपने को भाग्यशाली समझते थे। सोने का अंडा बेच बेचकर उन्होंने बहुत सा धन इकट्ठा कर लिया था।
एक दिन उन्होंने सोचा कि मुर्गी प्रतिदिन एक अंडा देती है। इसका अर्थ यह हुआ कि इसके पेट में बहुत से अंडे होंगे। अगर सभी अंडे उन्हें एक साथ मिल जाएं तो वे शहर के सबसे धनी व्यक्ति बन जाएंगे।
‘लेकिन अंडे एक साथ मिलें कैसे?’ वे मन ही मन सोचने लगे।
अचानक एक दिन उन्होंने एक योजना बना डाली। दूसरे दिन दोनों ने मिलकर एक चाकू से मुर्गी का पेट चीर डाला और भीतर सोने के अंडे खोजने लगे। मगर वे मूर्ख सोने के अंडे खोजते खोजते परेशान हो गए, पर अंडे नहीं मिले। मिलते भी कैसे? मुर्गी के पेट में अंडे थे ही नहीं। उन लालचियों को प्रतिदिन एक सोने का अंडा मिलता था, वह भी उनके लालच के परिणामस्वरूप मिलना बंद हो गया। मुर्गी पेट चीरे जाने के कारण तड़प-तड़प कर मर गई।
शिक्षा – लालच का फल बुरा होता है।