सबकी अपनी अपनी अलग इच्छाएँ होती हैं। कोई खेल में, कोई अध्ययन में, कोई देशाटन में, कोई नेतागिरी में, कोई दौड़ व्यायाम में, कोई भक्ति भावना में। इन इच्छाओं के अन्दर भी कई प्रकार की अपनी अपनी इच्छाएँ होती हैं। जिस खेल में जिसकी जैसी रूचि होती है वह उस में अपनी अपनी योग्यता अच्छी होगी। सबकी इच्छाओं के समान मेरी भी एक विशेष रूचि है- कबड्डी के खेल में।
यद्यपि मैं क्रिकेट, फुटबाल, बालीबाल, गुल्ली डंडा, टेबिल टेनिस आदि खेलों को भी खेला करता हूं, लेकिन मेरी सबसे अधिक अभिरूचि तो कबड्डी के खेल के ही प्रति है। कबड्डी के प्रति मेरी अभिरूचि बचपन से ही रही है। जब मैं बहुत छोटी उम्र में था। तब, मैंने इस खेल को अपने कई साथियों के साथ खेलना आरम्भ किया था। इस खेल केा सबसे पहले मैंने अन्य खेलों की अपेक्षा इसलिए पसन्द किया था कि तब मैं गाँव में अपनी आरम्भिक शिक्षा पूरी कर रहा था। हमारे गाँव में अन्य गाँवों के समान ही इस खेल को बहुत अधिक खेला जाता था क्योंकि इसे खेलने के लिए अन्य खेलों की तुलना में हम सबको काफी सुविधा और आसानी दिखाई पड़ती थी। इस सुविधा और आसानी के कौन कौन से कारण ओर आधार होते थे। इसे मैं एक एक करके लिख रहा हूँ-
कबड्डी के खेल के लिए किसी विशेष श्रेणी या दर्जे की ऐसे खिलाड़ी की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसे इस खेल के विषय में कोई ज्ञान या अनुभव पहले से प्राप्त हो। पहली बात यह है कि इस खेल के लिए तो साधारण बुद्धि और समझ वाले व्यक्ति की योग्य और सही खिलाड़ी सफल होते हैं।
दूसरी बात यह कि कबड्डी के खेल के लिए बहुत बड़े स्थान की आवश्यकता नहीं होती है। इस खेल को खेलने के लिए कहीं भी और कोई भी थोड़ा सा स्थान उपयुक्त और सही हो सकता है। हाँ यह अवश्य ध्यान देना चाहिए कि कबड्डी के खेल का जो स्थान होता है वह किसी प्रकार से सख्त, कंकरीला, पत्थरीला, चिकना या ऊबड़ खाबड़ वाला स्थान नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे खिलाडि़यों के फिसलकर गिर जाने और चोट लग जाने का पूरा भय बना रहता है। कोमल और भूरभूरी जमीन इसके लिए अधिक सुविधाजनक और आरामदेह होती है।
तीसरी बात यह कि कबड्डी के खेल के लिए कम से कम और अधिक से अधिक खिलाडि़यों के द्वारा भी खेला जा सकता है। कम से कम चार छः खिलाडि़यों से भी इस खेल को आरम्भ किया जाता है और अधिक से अधिक पन्द्रह या बीस खिलाडि़यों के द्वारा भी इस खेल को खेला जाता है। इन खिलाडि़यों की आयु में अधिक अन्तर नहीं होना चाहिए।
चौथी बात यह कि कबड्डी के खेल के लिए विशेष प्रबन्ध या व्यवस्था करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए विशेष नियम की भी कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है। कबड्डी खेलने वालों के दो दल बना लिए जाते हैं। दोनों दल के खिलाडि़यों का बँटवारा कमोवेष रूप में सभी खिलाडि़यों की आम सहमति से कर लिया जाता है। दोनों दलों के बीच में एक दल विभाजक रेखा खींच दी जाती है। इस विभाजक रेखा के दोनों ओर एक एक दल के खिलाड़ी खड़े हो जाते हैं।
कबड्डी का खेल जब आरम्भ होता है तो दोनों दल का प्रत्येक खिलाड़ी बहुत ही उत्सुक और तेज फुर्तीला हो जाता है। वह अपनी जीत को दल की जीत समझता है। इस प्रकार का अनुभव प्रत्येक खिलाड़ी करता है और दोनों दल के खिलाडि़यों को यही कोशिश होती है कि वे अपने अपने दल को विजय दिला सके।
इस खेल को खेलते समय किसी भी दल का खिलाड़ी जब अपने विरोधी दल के अन्दर प्रवेश करके ताल ठोंक के कबड्डी कबड्डी का शोर करता हुआ खूब चौकड़ी भरके ऐसा उछलता जाता है कि वह किसी भी खिलाड़ी को इस आवाज के साथ ही छूकर अपने दल के अन्दर प्रवेश कर जाए, तो उसकी जीत है और जिसे उसने छूआ है, उस खिलाड़ी को खेल से बाहर जो जाना पड़ता है। इसलिए छूकर अपने दल में भागने वाले खिलाड़ी को उसके छूने के समय अथवा छूकर भागने के समय उसके विरोधी दल के खिलाडि़यों का यह प्रयत्न होता है कि उसे ऐसा कसकर पकड़ लें कि वह कबड्डी की साँस इसी समय बन्द कर दें अन्यथा वह जब अपने दल में इस साँस के साथ पहुँच जाएगा तो छुआ हुआ खिलाड़ी खेल से बाहर हो जाएगा और उसकी जीत हो जायेगी।
खेल से बाहर हुआ खिलाड़ी तभी खेल में भाग ले सकता है, जब उसके दल का कोई दूसरा खिलाड़ी उसके विरोधी दल के खिलाड़ी को आउट कर दे। इस प्रकार की क्रिया प्रतिक्रिया दोनों दल में बार बार होती रहती है जब तक खेल समाप्त नहीं हो जाता है तब तक कबड्डी कबड्डी का शोर बार बार होता रहता है। इस प्रतिक्रिया और प्रतिद्वन्द्वता में एक एक खिलाड़ी सक्रिय होकर पास में आए हुए खिलाड़ी को पकड़ने के लिए जब कैंची मारते हैं तो उससे टाँग में चोट लगने का बहुत डर रहता है। दूसरे, कभी कभी एक खिलाड़ी को जब दूसरे दल के खिलाड़ी पकड़कर रोकने के लिए उसके ऊपर चढ़ने की कोशिश करते हैं तब भी शरीर पर चोट लगने का भय बना रहता है। यदि पकड़ते समय किसी खिलाड़ी के वस्त्र हाथ में जाएँ तो बिना हार जीत की चिंता किए छोड़ देना चाहिए। अन्यथा वस्त्र फटने की सम्भावना रहती है।
इस प्रकार से जब एक एक खिलाड़ी खेल से बाहर हो जाता है और एक दल का कोई खिलाड़ी बाहर होने से शेष नहीं रह जाता है तब बाहर होने वाले दल की पराजय हो जाती है। एक दल के पराजय और दूसरे की विजय के सथ इस खेल का समापन हो जाता है, अगर दोनों दल चाहें तो फिर से इस खेल को खेल सकते हैं।
यों तो कबड्डी का खेल मुख्य रूप से ग्रामीण खेल है लेकिन यह शहरों में भी खेला जाता है। इस खेल के लिए बरसात का सुखद और सुहावना मौसम अनुकूल होता है। जब रिमझिम बूँद पड़ रही हो या कुछ हल्की सी वर्षा हो रही हो। तब धूसर या बलुई मिट्टी इस खेल के लिए बहुत अच्छी होती है। कबड्डी के खेल से शरीर पुष्ट और चुस्त होता है। इससे स्फूर्ति मिल जाती है। इस खेल से साहस और चौकसी मिलती है।
इस प्रकार से मैं कबड्डी के खले को उपयुक्त विशेषताओं के कारण अधिक प्रिय खेल समझता हूँ। इसको महत्व देता हूँ और अन्य खेल प्रेमियों को इसके लिए सुझाव और प्ररेणा भी देता हूँ।