सरदार भगत सिंह पर लेख
भारत माँ की परतंत्रता की बेड़ियों को जान देकर काटने वाले देशभक्तों में भगत सिंह और उनके साथियों का नाम सबसे ऊपर आता है। भारतवासी सरदार भगत सिंह को ‘शहीदे आजम’ के नाम से जानते हैं।
भगत सिंह एक महान क्रान्तिकारी थे। देशभक्ति की भावना इनमें कूट कूट कर भरी थी। एक दिन जब वह छोटे थे, इन्होंने अपने चाचा को गेहूँ बोते देखा तो यह झट से अपनी पिस्तौल निकाल लाये और कहा कि इसे बोने से हमारे पास बहुत सारी पिस्तौलें हो जायेंगी, फिर हम अंग्रेजों को मार देंगे। बचपन से ही यह अंग्रेजों से लड़ कर देश को स्वतंत्र कराने के लिये प्रयासरत थे। इनके परिवार के अन्य सदस्य भी देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत थे।
सन् 1907 अक्टूबर में सरदार भगत सिंह का जन्म हुआ था। 15 वर्ष की कम उम्र में ही इन्होंने पंजाब की गुप्त क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। देश सेवा की भावना इतनी प्रबल थी कि इन्होंने घरवालों के बहुत जोर देने पर भी विवाह नहीं किया और आजादी को ही अपनी दुल्हन बताया।
लाहौर से कानपुर आने पर इनका परिचय क्रान्तिकारी दल के सदस्यों से हुआ। गणेष शंकर विद्यार्थी, बटुकेश्वर दत्त, शचीन्द्र सान्याल इत्यादि के साथ मिलकर यह देश को स्वतंत्र कराने की योजनायें बनाने लगे।
साइमन कमीशन के भारत आने पर उसके विरोध में एक जलूस निकाला गया। जिसका नेतृत्व लाला लाजपत राय ने किया। पुलिस द्वारा निर्दयता से लाठियाँ बरसाने के कारण 17 नवम्बर 1928 को लाला जी का देहावसान हो गया। लाला जी की मौत का कारण साण्डर्स नामक अधिकारी था, उससे बदला लेने के लिये भगत सिंह ने उसे गोली मार दी।
8 अक्टूबर 1929 को असेंबली में बम फेंककर भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने अपने विरोध एवं देश पर मर मिटने के अपने साहस से अंग्रेजों को अवगत कराया।
23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव को फाँसी की सजा दी गयी। यह तीनों देशभक्त क्रान्तिकारी ‘वन्दे मातरम्’ गाते हुये हँसते हँसते फाँसी के तख्ते पर झूल गये। हर युवा भारतीय आज भगत सिंह को अपना प्रेरणा स्रोत मानता है।