जंगल में एक पेड़ पर सुनहरी चिड़िया रहती थी। जब वह गाती थी तो उसकी चोंच से सोने के मोती झरते थे। एक दिन एक चिड़ीमार की नजर उस पर पड़ गई। चिड़िया के मुंह से सोने के मोती झरते देखकर वह खुशी से फूला नहीं समाया। उसने मन ही मन कहा, ‘वाह! वाह! आज तो मेरे भाग्य खुल गए। अगर मैं इस चिड़िया को पकड़ लूं तो यह मुझे रोज सोने के मोती देगी और मैं जल्दी ही धनवान हो जाऊंगा।’
मन में यह ख्याल आते ही चिड़ीमार ने जमीन पर जाल फैलाकर चावल के कुछ दाने बिखेर दिए। सुनहरी चिड़िया दाने चुगने नीचे उतरी और जाल में फंस गई। चिड़ीमार ने उसे पकड़ लिया और अपने घर ले आया।
उस दिन से चिड़ीमार को रोज सोने के कुछ मोती मिलने लगे। देखते ही देखते वह धनवान हो गया।
अब उसके पास धन तो बहुत था, किंतु सम्मान नहीं था। यह बात उसे बेहद परेशान करती रहती थी कि अब भी लोग उसे चिड़ीमार ही कहकर बुलाते थे।
वह सोचता कि ऐसा क्या करूं कि लोग मेरा सम्मान करें। एक दिन उसके दिमाग में एक युक्ति आई। उसने चिड़िया के लिए सोने का एक सुंदर से पिंजरा बनवाया और सोने के पिंजरे सहित वह चिड़िया राजा को भेंट कर दी।
उपहार देते समय उसने राजा से कहा, ”महाराज, यह चिड़िया आपके महल में मधुर गीत गाएगी और रोज आपको सोने के मोती भी देगी।“
यह उपहार पाकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ।
उसने चिड़ीमार को दरबार में ऊंचा पद दे दिया।
जल्दी ही राजा के पास ढेर सारे सोने के मोती जमा हो गए। राजा ने सोने के पिंजरे सहित वह चिड़िया अपनी प्रिय रानी को दे दी। रानी ने पिंजरे का दरवाजा खोलकर चिड़िया को आजाद कर दिया और सोने का पिंजरा शाही सुनार को देकर कहा, ”इस सोने के पिंजरे से मेरे लिए सुंदर-सुंदर गहने बना दो।“
आजाद होकर चिड़िया बोली- ”रानी मां! तुम धन्य हो जो तुमने मुझे आजाद किया। तुम्हारे दिल में अपार दया है और लालच भी नहीं है। मुझे कैद में रहना बुरा लगता था।“
कहकर वह जंगल में उड़ गई।
अब वह रोज रानी का गुणगान करती।