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Do bailon ki katha Premchand Story in Hindi

दो बैलों की कथा प्रेमचंद की कहानी (Hira Moti ki kahani)

जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिमान समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को पहले दर्जे का बेवकूफ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं। गधा सचमुच बेवकूफ है या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता। गायें सींग मारती हैं, ब्याही हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है, किन्तु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसी खराब, सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी नहीं दिखाई देगी। वैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता है, पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा। उसके चेहरे पर स्थाई विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है। सुख-दुःख, हानि-लाभ किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं, वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं, पर आदमी उसे बेवकूफ कहता है। सद्गुणों का इतना अनादर!

premchand ki khani

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कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है। देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में क्या दुर्दशा हो रही है ? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जी तोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं। कहा जाता है, वे जीवन के आदर्श को नीचा करते हैं। अगर वे ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते तो शायद सभ्य कहलाने लगते। जापान की मिसाल सामने है। एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया। लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है। और वह है ‘बैल’। जिस अर्थ में हम ‘गधा’ का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में ‘बछिया के ताऊ’ का भी प्रयोग करते हैं। कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफी में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे, मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है। बैल कभी-कभी मारता भी है, कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है। और भी कई रीतियों से अपना असंतोष प्रकट कर देता है, अतएवं उसका स्थान गधे से नीचा है।

झूरी क पास दो बैल थे- हीरा और मोती। देखने में सुंदर, काम में चौकस, डील में ऊंचे। बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक भाषा में विचार-विनिमय किया करते थे। एक-दूसरे के मन की बात को कैसे समझा जाता है, हम कह नहीं सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे, विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोनों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफसी, कुछ हल्की-सी रहती है, फिर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला-हिलाकर चलते, उस समय हर एक की चेष्टा होती कि ज्यादा-से-ज्यादा बोझ मेरी ही गर्दन पर रहे।

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दिन-भर के बाद दोपहर या संध्या को दोनों खुलते तो एक-दूसरे को चाट-चूट कर अपनी थकान मिटा लिया करते, नांद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते, साथ नांद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे। एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता था।

संयोग की बात, झूरी ने एक बार गोईं को ससुराल भेज दिया। बैलों को क्या मालूम, वे कहाँ भेजे जा रहे हैं। समझे, मालिक ने हमें बेच दिया। अपना यों बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया को घर तक गोईं ले जाने में दांतों पसीना आ गया। पीछे से हांकता तो दोनों दाएँ-बाँए भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता तो दोनों पीछे की ओर जोर लगाते। मारता तो दोनों सींगे नीची करके हुंकारते। अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती तो झूरी से पूछते-तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो ?

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हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। अगर इतनी मेहनत से काम न चलता था, और काम ले लेते। हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलाया, वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथ क्यों बेंच दिया ?

संध्या समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे। दिन-भर के भूखे थे, लेकिन जब नांद में लगाए गए तो एक ने भी उसमें मुंह नहीं डाला। दिल भारी हो रहा था। जिसे उन्होंने अपना घर समझ रखा था, वह आज उनसे छूट गया। यह नया घर, नया गांव, नए आदमी उन्हें बेगाने-से लगते थे।

दोनों ने अपनी मूक भाषा में सलाह की, एक-दूसरे को कनखियों से देखा और लेट गये। जब गांव में सोता पड़ गया तो दोनों ने जोर मारकर पगहा तुड़ा डाले और घर की तरफ चले। पगहे बहुत मजबूत थे। अनुमान न हो सकता था कि कोई बैल उन्हें तोड़ सकेगा, पर इन दोनों में इस समय दूनी शक्ति आ गई थी। एक-एक झटके में रस्सियाँ टूट गईं।

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झूरी प्रातः काल सो कर उठा तो देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। दोनों की गरदनों में आधा-आधा गरांव लटक रहा था। घुटने तक पांव कीचड़ से भरे हैं और दोनों की आंखों में विद्रोहमय स्नेह झलक रहा है।

झूरी बैलों को देखकर स्नेह से गद्गद हो गया। दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। प्रेमालिंगन और चुम्बन का वह दृश्य बड़ा ही मनोहर था।

घर और गाँव के लड़के जमा हो गए। और तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत करने लगे। गांव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्त्वपूर्ण थी, बाल-सभा ने निश्चय किया, दोनों पशु-वीरों का अभिनन्दन पत्र देना चाहिए। कोई अपने घर से रोटियां लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी।

एक बालक ने कहा- ‘‘ऐसे बैल किसी के पास न होंगे।’’

दूसरे ने समर्थन किया- ‘‘इतनी दूर से दोनों अकेले चले आए।’

तीसरा बोला- ‘बैल नहीं हैं वे, उस जन्म के आदमी हैं।’

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इसका प्रतिवाद करने का किसी को साहस नहीं हुआ। झूरी की स्त्री ने बैलों को द्वार पर देखा तो जल उठी। बोली -‘कैसे नमक-हराम बैल हैं कि एक दिन वहां काम न किया, भाग खड़े हुए।’

झूरी अपने बैलों पर यह आक्षेप न सुन सका-‘नमक हराम क्यों हैं ? चारा-दाना न दिया होगा तो क्या करते ?’

स्त्री ने रोब के साथ कहा-‘बस, तुम्हीं तो बैलों को खिलाना जानते हो, और तो सभी पानी पिला-पिलाकर रखते हैं।’

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झूरी ने चिढ़ाया-‘चारा मिलता तो क्यों भागते ?’

स्त्री चिढ़ गयी-‘भागे इसलिए कि वे लोग तुम जैसे बुद्धुओं की तरह बैल को सहलाते नहीं, खिलाते हैं तो रगड़कर जोतते भी हैं। ये दोनों ठहरे कामचोर, भाग निकले। अब देखूं कहां से खली और चोकर मिलता है। सूखे भूसे के सिवा कुछ न दूंगी, खाएं चाहें मरें।’

वही हुआ। मजूर की बड़ी ताकीद की गई कि बैलों को खाली सूखा भूसा दिया जाए।

बैलों ने नांद में मुंह डाला तो फीका-फीका, न कोई चिकनाहट, न कोई रस !

क्या खाएं ? आशा-भरी आंखों से द्वार की ओर ताकने लगे। झूरी ने मजूर से कहा-‘थोड़ी–सी खली क्यों नहीं डाल देता बे ?’

‘मालकिन मुझे मार ही डालेंगी।’

‘चुराकर डाल आ।’

‘ना दादा, पीछे से तुम भी उन्हीं की-सी कहोगे।’

दूसरे दिन झूरी का साला फिर आया और बैलों को ले चला। अबकी उसने दोनों को गाड़ी में जोता।

दो-चार बार मोती ने गाड़ी को खाई में गिराना चाहा, पर हीरा ने संभाल लिया। वह ज्यादा सहनशील था।

संध्या-समय घर पहुंचकर उसने दोनों को मोटी रस्सियों से बांधा और कल की शरारत का मजा चखाया फिर वही सूखा भूसा डाल दिया। अपने दोनों बालों को खली चूनी सब कुछ दी।

दोनों बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था। झूरी ने इन्हें फूल की छड़ी से भी छूता था। उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे। यहां मार पड़ी। आहत सम्मान की व्यथा तो थी ही, उस पर मिला सूखा भूसा !

नांद की तरफ आंखें तक न उठाईं।

दूसरे दिन गया ने बैलों को हल में जोता, पर इन दोनों ने जैसे पांव न उठाने की कसम खा ली थी। वह मारते-मारते थक गया, पर दोनों ने पांव न उठाया। एक बार जब उस निर्दयी ने हीरा की नाक पर खूब डंडे जमाये तो मोती को गुस्सा काबू से बाहर हो गया। हल लेकर भागा। हल, रस्सी, जुआ, जोत, सब टूट-टाटकर बराबर हो गया। गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होतीं तो दोनों पकड़ाई में न आते।

हीरा ने मूक-भाषा में कहा-भागना व्यर्थ है।’

मोती ने उत्तर दिया-‘तुम्हारी तो इसने जान ही ले ली थी।’

‘अबकी बड़ी मार पड़ेगी।’

‘पड़ने दो, बैल का जन्म लिया है तो मार से कहां तक बचेंगे ?’

‘गया दो आदमियों के साथ दौड़ा आ रहा है, दोनों के हाथों में लाठियां हैं।’

मोती बोला-‘कहो तो दिखा दूं मजा मैं भी, लाठी लेकर आ रहा है।’

हीरा ने समझाया-‘नहीं भाई ! खड़े हो जाओ।’

‘मुझे मारेगा तो मैं एक-दो को गिरा दूंगा।’

‘नहीं हमारी जाति का यह धर्म नहीं है।’

मोती दिल में ऐंठकर रह गया। गया आ पहुंचा और दोनों को पकड़ कर ले चला। कुशल हुई कि उसने इस वक्त मारपीट न की, नहीं तो मोती पलट पड़ता। उसके तेवर देख गया और उसके सहायक समझ गए कि इस वक्त टाल जाना ही भलमनसाहत है।

आज दोनों के सामने फिर वही सूखा भूसा लाया गया, दोनों चुपचाप खड़े रहे।

घर में लोग भोजन करने लगे। उस वक्त छोटी-सी लड़की दो रोटियां लिए निकली और दोनों के मुंह में देकर चली गई। उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शान्त होती, पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। यहां भी किसी सज्जन का वास है। लड़की भैरो की थी। उसकी मां मर चुकी थी। सौतेली मां उसे मारती रहती थी, इसलिए इन बैलों से एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी।

दोनों दिन-भर जाते, डंडे खाते, अड़ते, शाम को थान पर बांध दिए जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियां खिला जाती। प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो-दो गाल सूखा भूसा खाकर भी दोनों दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आंखों में रोम-रोम में विद्रोह भरा हुआ था।

एक दिन मोती ने मूक-भाषा में कहा-‘अब तो नहीं सहा जाता हीरा !

‘क्या करना चाहते हो ?’

‘एकाध को सींगों पर उठाकर फेंक दूंगा।’

‘लेकिन जानते हो, वह प्यारी लड़की, जो हमें रोटियां खिलाती है, उसी की लड़की है, जो इस घर का मालिक है, यह बेचारी अनाथ हो जाएगी।’

‘तो मालकिन को फेंक दूं, वही तो इस लड़की को मारती है।

‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।’

‘तुम तो किसी तरह निकलने ही नहीं देते, बताओ, तुड़ाकर भाग चलें।’

‘हां, यह मैं स्वीकार करता, लेकिन इतनी मोटी रस्सी टूटेगी कैसे।’

इसका एक उपाय है, पहले रस्सी को थोड़ा चबा लो। फिर एक झटके में जाती है।’

रात को जब बालिका रोटियां खिला कर चली गई तो दोनों रस्सियां चबने लगे, पर मोटी रस्सी मुंह में न आती थी। बेचारे बार-बार जोर लगाकर रह जाते थे।

साहसा घर का द्वार खुला और वह लड़की निकली। दोनों सिर झुकाकर उसका हाथ चाटने लगे। दोनों की पूंछें खड़ी हो गईं। उसने उनके माथे सहलाए और बोली-‘खोल देती हूँ, चुपके से भाग जाओ, नहीं तो ये लोग मार डालेंगे। आज घर में सलाह हो रही है कि इनकी नाकों में नाथ डाल दी जाएं।’

उसने गरांव खोल दिया, पर दोनों चुप खड़े रहे।

मोती ने अपनी भाषा में पूंछा-‘अब चलते क्यों नहीं ?’

हीरा ने कहा-‘चलें तो, लेकिन कल इस अनाथ पर आफत आएगी, सब इसी पर संदेह करेंगे।

साहसा बालिका चिल्लाई-‘दोनों फूफा वाले बैल भागे जे रहे हैं, ओ दादा! दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, ओ दादा! दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, जल्दी दौड़ो।

गया हड़बड़ाकर भीतर से निकला और बैलों को पकड़ने चला। वे दोनों भागे। गया ने पीछा किया, और भी तेज हुए, गया ने शोर मचाया। फिर गांव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा। दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल गया। सीधे दौड़ते चले गए। यहां तक कि मार्ग का ज्ञान रहा। जिस परिचित मार्ग से आए थे, उसका यहां पता न था। नए-नए गांव मिलने लगे। तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए।

हीरा ने कहा-‘मुझे मालूम होता है, राह भूल गए।’

‘तुम भी बेतहाशा भागे, वहीं उसे मार गिराना था।’

‘उसे मार गिराते तो दुनिया क्या कहती ? वह अपने धर्म छोड़ दे, लेकिन हम अपना धर्म क्यों छोडें ?’

दोनों भूख से व्याकुल हो रहे थे। खेत में मटर खड़ी थी। चरने लगे। रह-रहकर आहट लेते रहे थे। कोई आता तो नहीं है।

जब पेट भर गया, दोनों ने आजादी का अनुभव किया तो मस्त होकर उछलने-कूदने लगे। पहले दोनों ने डकार ली। फिर सींग मिलाए और एक-दूसरे को ठेकने लगे। मोती ने हीरा को कई कदम पीछे हटा दिया, यहां तक कि वह खाई में गिर गया। तब उसे भी क्रोध आ गया। संभलकर उठा और मोती से भिड़ गया। मोती ने देखा कि खेल में झगड़ा हुआ चाहता है तो किनारे हट गया।

अरे ! यह क्या ? कोई सांड़ डौंकता चला आ रहा है। हां, सांड़ ही है। वह सामने आ पहुंचा। दोनों मित्र बगलें झांक रहे थे। सांड़ पूरा हाथी था। उससे भिड़ना जान से हाथ धोना है, लेकिन न भिड़ने पर भी जान बचती नजर नहीं आती। इन्हीं की तरफ आ भी रहा है। कितनी भयंकर सूरत है !

मोती ने मूक-भाषा में कहा-‘बुरे फंसे, जान बचेगी ? कोई उपाय सोचो।’

हीरा ने चिंतित स्वर में कहा-‘अपने घमंड में फूला हुआ है, आरजू-विनती न सुनेगा।’

‘भाग क्यों न चलें?’

‘भागना कायरता है।’

‘तो फिर यहीं मरो। बंदा तो नौ दो ग्यारह होता है।’

‘और जो दौड़ाए?’

‘ तो फिर कोई उपाए सोचो जल्द!’

‘उपाय यह है कि उस पर दोनों जने एक साथ चोट करें। मैं आगे से रगेदता हूँ, तुम पीछे से रगेदो, दोहरी मार पड़ेगी तो भाग खड़ा होगा। मेरी ओर झपटे, तुम बगल से उसके पेट में सींग घुसेड़ देना। जान जोखिम है, पर दूसरा उपाय नहीं है।

दोनों मित्र जान हथेली पर लेकर लपके। सांड़ को भी संगठित शत्रुओं से लड़ने का तजुरबा न था।

वह तो एक शत्रु से मल्लयुद्ध करने का आदी था। ज्यों-ही हीरा पर झपटा, मोती ने पीछे से दौड़ाया। सांड़ उसकी तरफ मुड़ा तो हीरा ने रगेदा। सांड़ चाहता था, कि एक-एक करके दोनों को गिरा ले, पर ये दोनों भी उस्ताद थे। उसे वह अवसर न देते थे। एक बार सांड़ झल्लाकर हीरा का अन्त कर देने के लिए चला कि मोती ने बगल से आकर उसके पेट में सींग भोंक दिया। सांड़ क्रोध में आकर पीछे फिरा तो हीरा ने दूसरे पहलू में सींगे चुभा दिया।

आखिर बेचारा जख्मी होकर भागा और दोनों मित्रों ने दूर तक उसका पीछा किया। यहां तक कि सांड़ बेदम होकर गिर पड़ा। तब दोनों ने उसे छोड़ दिया। दोनों मित्र जीत के नशे में झूमते चले जाते थे।

मोती ने सांकेतिक भाषा में कहा-‘मेरा जी चाहता था कि बचा को मार ही डालूं।’

हीरा ने तिरस्कार किया-‘गिरे हुए बैरी पर सींग न चलाना चाहिए।’

‘यह सब ढोंग है, बैरी को ऐसा मारना चाहिए कि फिर न उठे।’

‘अब घर कैसे पहुंचोगे वह सोचो।’

‘पहले कुछ खा लें, तो सोचें।’

सामने मटर का खेत था ही, मोती उसमें घुस गया। हीरा मना करता रहा, पर उसने एक न सुनी। अभी दो ही चार ग्रास खाये थे कि आदमी लाठियां लिए दौड़ पड़े और दोनों मित्र को घेर लिया, हीरा तो मेड़ पर था निकल गया। मोती सींचे हुए खेत में था। उसके खुर कीचड़ में धंसने लगे। न भाग सका। पकड़ लिया। हीरा ने देखा, संगी संकट में है तो लौट पड़ा। फंसेंगे तो दोनों फंसेंगे। रखवालों ने उसे भी पकड़ लिया।

प्रातःकाल दोनों मित्र कांजी हौस में बंद कर दिए गए।

दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा साबिका पड़ा था कि सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी न मिला। समझ में न आता था, यह कैसा स्वामी है। इससे तो गया फिर भी अच्छा था। यहां कई भैंसे थीं, कई बकरियां, कई घोड़े, कई गधे, पर किसी के सामने चारा न था, सब जमीन पर मुर्दों की तरह पड़े थे।

कई तो इतने कमजोर हो गये थे कि खड़े भी न हो सकते थे। सारा दिन मित्र फाटक की ओर टकटकी लगाए रहते, पर कोई चारा न लेकर आता दिखाई दिया। तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की, पर इससे क्या तृप्ति होती।

रात को भी जब कुछ भोजन न मिला तो हीरा के दिल में विद्रोह की ज्वाला दहक उठी। मोती से बोला-‘अब नहीं रहा जाता मोती !

मोती ने सिर लटकाए हुए जवाब दिया-‘मुझे तो मालूम होता है कि प्राण निकल रहे हैं।’

‘आओ दीवार तोड़ डालें।’

‘मुझसे तो अब कुछ नहीं होगा।’

‘बस इसी बूत पर अकड़ते थे !’

‘सारी अकड़ निकल गई।’

बाड़े की दीवार कच्ची थी। हीरा मजबूत तो था ही, अपने नुकीले सींग दीवार में गड़ा दिए और जोर मारा तो मिट्टी का एक चिप्पड़ निकल आया। फिर तो उसका साहस बढ़ा उसने दौड़-दौड़कर दीवार पर चोटें कीं और हर चोट में थोड़ी-थोड़ी मिट्टी गिराने लगा।

उसी समय कांजी हौस का चौकीदार लालटेन लेकर जानवरों की हाजिरी लेने आ निकला। हीरा का उद्दंड्डपन्न देखकर उसे कई डंडे रसीद किए और मोटी-सी रस्सी से बांध दिया।

मोती ने पड़े-पड़े कहा-‘आखिर मार खाई, क्या मिला?’

‘अपने बूते-भर जोर तो मार दिया।’

‘ऐसा जोर मारना किस काम का कि और बंधन में पड़ गए।’

‘जोर तो मारता ही जाऊंगा, चाहे कितने ही बंधन पड़ते जाएं।’

‘जान से हाथ धोना पड़ेगा।’

‘कुछ परवाह नहीं। यों भी तो मरना ही है। सोचो, दीवार खुद जाती तो कितनी जाने बच जातीं। इतने भाई यहां बंद हैं। किसी की देह में जान नहीं है। दो-चार दिन यही हाल रहा तो मर जाएंगे।’

‘हां, यह बात तो है। अच्छा, तो ला फिर मैं भी जोर लगाता हूँ।’

मोती ने भी दीवार में सींग मारा, थोड़ी-सी मिट्टी गिरी और फिर हिम्मत बढ़ी, फिर तो वह दीवार में सींग लगाकर इस तरह जोर करने लगा, मानो किसी प्रतिद्वंदी से लड़ रहा है। आखिर कोई दो घंटे की जोर-आजमाई के बाद दीवार ऊपर से लगभग एक हाथ गिर गई, उसने दूनी शक्ति से दूसरा धक्का मारा तो आधी दीवार गिर पड़ी।

दीवार का गिरना था कि अधमरे-से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे, तीनों घोड़ियां सरपट भाग निकलीं। फिर बकरियां निकलीं, इसके बाद भैंस भी खसक गई, पर गधे अभी तक ज्यों के त्यों खड़े थे।

हीरा ने पूछा-‘तुम दोनों क्यों नहीं भाग जाते?’

एक गधे ने कहा-‘जो कहीं फिर पकड़ लिए जाएं।’

‘तो क्या हरज है, अभी तो भागने का अवसर है।’

‘हमें तो डर लगता है। हम यहीं पड़े रहेंगे।’

आधी रात से ऊपर जा चुकी थी। दोनों गधे अभी तक खड़े सोच रहे थे कि भागें, या न भागें, और मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था। जब वह हार गया तो हीरा ने कहा-‘तुम जाओ, मुझे यहीं पड़ा रहने दो, शायद कहीं भेंट हो जाए।’

मोती ने आंखों में आंसू लाकर कहा-‘तुम मुझे इतना स्वार्थी समझते हो, हीरा हम और तुम इतने दिनों एक साथ रहे हैं। आज तुम विपत्ति में पड़ गए हो तो मैं तुम्हें छोड़कर अलग हो जाऊं ?’

हीरा ने कहा-‘बहुत मार पड़ेगी, लोग समझ जाएंगे, यह तुम्हारी शरारत है।’

मोती ने गर्व से बोला-‘जिस अपराध के लिए तुम्हारे गले में बंधना पड़ा, उसके लिए अगर मुझे मार पड़े, तो क्या चिंता। इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई, वे सब तो आशीर्वाद देंगे।’

यह कहते हुए मोती ने दोनों गधों को सींगों से मार-मार कर बाड़े से बाहर निकाला और तब अपने बंधु के पास आकर सो रहा।

भोर होते ही मुंशी और चौकीदार तथा अन्य कर्मचारियों में कैसी खलबली मची, इसके लिखने की जरूरत नहीं। बस, इतना ही काफी है कि मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे भी मोटी रस्सी से बांध दिया गया।

एक सप्ताह तक दोनों मित्र वहां बंधे पड़े रहे। किसी ने चारे का एक तृण भी न डाला। हां, एक बार पानी दिखा दिया जाता था। यही उनका आधार था। दोनों इतने दुर्बल हो गए थे कि उठा तक नहीं जाता था, ठठरियां निकल आईं थीं। एक दिन बाड़े के सामने डुग्गी बजने लगी और दोपहर होते-होते वहां पचास-साठ आदमी जमा हो गए। तब दोनों मित्र निकाले गए और लोग आकर उनकी सूरत देखते और मन फीका करके चले जाते।

ऐसे मृतक बैलों का कौन खरीददार होता ? सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आंखें लाल थीं और मुद्रा अत्यन्त कठोर, आया और दोनों मित्र के कूल्हों में उंगली गोदकर मुंशीजी से बातें करने लगा। चेहरा देखकर अंतर्ज्ञान से दोनों मित्रों का दिल कांप उठे। वह क्यों है और क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हें कोई संदेह न हुआ। दोनों ने एक-दूसरे को भीत नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया।

हीरा ने कहा-‘गया के घर से नाहक भागे, अब तो जान न बचेगी।’ मोती ने अश्रद्धा के भाव से उत्तर दिया-‘कहते हैं, भगवान सबके ऊपर दया करते हैं, उन्हें हमारे ऊपर दया क्यों नहीं आती ?’

‘भगवान के लिए हमारा जीना मरना दोनों बराबर है। चलो, अच्छा ही है, कुछ दिन उसके पास तो रहेंगे। एक बार उस भगवान ने उस लड़की के रूप में हमें बचाया था। क्या अब न बचाएंगे ?’

‘यह आदमी छुरी चलाएगा, देख लेना।’

‘तो क्या चिंता है ? मांस, खाल, सींग, हड्डी सब किसी के काम आ जाएगा।’

नीलाम हो जाने के बाद दोनों मित्र उस दढ़ियल के साथ चले। दोनों की बोटी-बोटी कांप रही थी। बेचारे पांव तक न उठा सकते थे, पर भय के मारे गिरते-प़डते भागे जाते थे, क्योंकि वह जरा भी चाल धीमी हो जाने पर डंडा जमा देता था।

राह में गाय-बैलों का एक रेवड़ हरे-भरे हार में चरता नजर आया। सभी जानवर प्रसन्न थे, चिकने, चपल। कोई उछलता था, कोई आनंद से बैठा पागुर करता था कितना सुखी जीवन था इनका, पर कितने स्वार्थी हैं सब। किसी को चिंता नहीं कि उनके दो बाई बधिक के हाथ पड़े कैसे दुःखी हैं।

सहसा दोनों को ऐसा मालूम हुआ कि परिचित राह है। हां, इसी रास्ते से गया उन्हें ले गया था। वही खेत, वही बाग, वही गांव मिलने लगे, प्रतिक्षण उनकी चाल तेज होने लगी। सारी थकान, सारी दुर्बलता गायब हो गई। आह ! यह लो ! अपना ही हार आ गया। इसी कुएं पर हम पुर चलाने आया करते थे, यही कुआं है।

मोती ने कहा-‘हमारा घर नजदीक आ गया है।’

हीरा बोला -‘भगवान की दया है।’

‘मैं तो अब घर भागता हूँ।’

‘यह जाने देगा ?’

इसे मैं मार गिराता हूँ।

‘नहीं-नहीं, दौड़कर थान पर चलो। वहां से आगे हम न जाएंगे।’

दोनों उन्मत्त होकर बछड़ों की भांति कुलेलें करते हुए घर की ओर दौड़े। वह हमारा थान है। दोनों दौड़कर अपने थान पर आए और खड़े हो गए। दढ़ियल भी पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था।

झूरी द्वार पर बैठा धूप खा रहा था। बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें बारी-बारी से गले लगाने लगा। मित्रों की आंखों से आनन्द के आंसू बहने लगे। एक झूरी का हाथ चाट रहा था।

दढ़ियल ने जाकर बैलों की रस्सियां पकड़ लीं। झूरी ने कहा-‘मेरे बैल हैं।’

‘तुम्हारे बैल कैसे हैं ? मैं मवेसीखाने से नीलाम लिए आता हूँ।’

‘‘मैं तो समझता हूँ, चुराए लिए जाते हो! चुपके से चले जाओ, मेरे बैल हैं। मैं बेचूंगा तो बिकेंगे। किसी को मेरे बैल नीलाम करने का क्या अख्तियार हैं ?’

‘जाकर थाने में रपट कर दूँगा।’

‘मेरे बैल हैं। इसका सबूत यह है कि मेरे द्वार पर खड़े हैं।

दढ़ियल झल्लाकर बैलों को जबरदस्ती पकड़ ले जाने के लिए बढ़ा। उसी वक्त मोती ने सींग चलाया। दढ़ियल पीछे हटा। मोती ने पीछा किया। दढ़ियल भागा। मोती पीछे दौड़ा, गांव के बाहर निकल जाने पर वह रुका, पर खड़ा दढ़ियल का रास्ता वह देख रहा था, दढ़ियल दूर खड़ा धमकियां दे रहा था, गालियां निकाल रहा था, पत्थर फेंक रहा था, और मोती विजयी शूर की भांति उसका रास्ता रोके खड़ा था। गांव के लोग यह तमाशा देखते थे और हँसते थे। जब दढ़ियल हारकर चला गया तो मोती अकड़ता हुआ लौटा। हीरा ने कहा-‘मैं तो डर गया था कि कहीं तुम गुस्से में आकर मार न बैठो।’

‘अब न आएगा।’

‘आएगा तो दूर से ही खबर लूंगा। देखूं, कैसे ले जाता है।’

‘जो गोली मरवा दे ?’

‘मर जाऊंगा, पर उसके काम न आऊंगा।’

‘हमारी जान को कोई जान ही नहीं समझता।’

‘इसलिए कि हम इतने सीधे हैं।’

जरा देर में नाँदों में खली भूसा, चोकर और दाना भर दिया गया और दोनों मित्र खाने लगे। झूरी खड़ा दोनों को सहला रहा था। वह उनसे लिपट गया।

झूरी की पत्नी भी भीतर से दौड़ी-दौड़ी आई। उसने ने आकर दोनों बैलों के माथे चूम लिए।

DO BAILON KI KAHANI – MUNSHI PREMCHAND

jaanavarom mem gadha sabase jyaada buddhimaan samajha jaata hai. ham jab kisee aadamee ko pahale darje ka bevakooph kahana chaahate haim, to use gadha kahate haim. gadha sachamuch bevakooph hai ya usake seedhepana, usakee niraapad sahishnuta ne use yah padavee de dee hai, isaka nishchay naheem kiya ja sakataa. gaayem seeng maaratee haim, byaahee huee gaay to anaayaas hee simhanee ka roop dhaaran kar letee hai. kutta bhee bahut gareeb jaanavar hai, lekin kabhee-kabhee use bhee krodh a hee jaata hai, kintu gadhe ko kabhee krodh karate naheem sunaa, n dekhaa. jitana chaaho gareeb ko maaro, chaahe jaisee kharaaba, saree huee ghaas saamane d’aal do, usake chehare par kabhee asantosh kee chhaaya bhee naheem dikhaaee degee. vaishaakh mem chaahe ekaadh baar kulel kar leta hai, par hamane to use kabhee khush hote naheem dekhaa. usake chehare par sthaaee vishaad sthaayee roop se chhaaya rahata hai. sukha-duh’kha, haani-laabh kisee bhee dasha mem use badalate naheem dekhaa. ri’shiyom-muniyom ke jitane gun haim, ve sabhee usamem paraakaasht’ha ko pahum’ch gae haim, par aadamee use bevakooph kahata hai. sadgunom ka itana anaadara!

kadaachit seedhaapan samsaar ke lie upayukt naheem hai. dekhie na, bhaaratavaasiyom kee aphreeka mem kya durdasha ho rahee hai ? kyom amareeka mem unhem ghusane naheem diya jaataa? bechaare sharaab naheem peete, chaar paise kusamay ke lie bachaakar rakhate haim, jee torakar kaam karate haim, kisee se laraaee-jhagara naheem karate, chaar baatem sunakar gam kha jaate haim phir bhee badanaam haim. kaha jaata hai, ve jeevan ke aadarsh ko neecha karate haim. agar ve eent’ ka javaab patthar se dena seekh jaate to shaayad sabhy kahalaane lagate. jaapaan kee misaal saamane hai. ek hee vijay ne use samsaar kee sabhy jaatiyom mem gany bana diyaa. lekin gadhe ka ek chhot’a bhaaee aur bhee hai, jo usase kam hee gadha hai. aur vah hai ‘baila’. jis arth mem ham ‘gadhaa’ ka prayog karate haim, kuchh usee se milate-julate arth mem ‘bachhiya ke taaoo’ ka bhee prayog karate haim. kuchh log bail ko shaayad bevakoophee mem sarvashresht’h kahenge, magar hamaara vichaar aisa naheem hai. bail kabhee-kabhee maarata bhee hai, kabhee-kabhee ariyal bail bhee dekhane mem aata hai. aur bhee kaee reetiyom se apana asantosh prakat’ kar deta hai, ataevam usaka sthaan gadhe se neecha hai.

jhooree k paas do bail the- heera aur motee. dekhane mem sundara, kaam mem chaukasa, d’eel mem oonche. bahut dinom saath rahate-rahate donom mem bhaaeechaara ho gaya thaa. donom aamane-saamane ya aasa-paas bait’he hue eka-doosare se mook bhaasha mem vichaara-vinimay kiya karate the. eka-doosare ke man kee baat ko kaise samajha jaata hai, ham kah naheem sakate. avashy hee unamem koee aisee gupt shakti thee, jisase jeevom mem shresht’hata ka daava karane vaala manushy vanchit hai. donom eka-doosare ko chaat’akar soom’ghakar apana prem prakat’ karate, kabhee-kabhee donom seeng bhee mila liya karate the, vigrah ke naate se naheem, keval vinod ke bhaav se, aatmeeyata ke bhaav se, jaise donom mem ghanisht’hata hote hee dhaula-dhappa hone lagata hai. isake bina dostee kuchh phusaphasee, kuchh halkee-see rahatee hai, phir jyaada vishvaas naheem kiya ja sakataa. jis vakt ye donom bail hal ya gaaree mem jot die jaate aur garadan hilaa-hilaakar chalate, us samay har ek kee chesht’a hotee ki jyaadaa-se-jyaada bojh meree hee gardan par rahe.

dina-bhar ke baad dopahar ya sandhya ko donom khulate to eka-doosare ko chaat’a-choot’ kar apanee thakaan mit’a liya karate, naand mem khalee-bhoosa par jaane ke baad donom saath ut’hate, saath naand mem mum’h d’aalate aur saath hee bait’hate the. ek mum’h hat’a leta to doosara bhee hat’a leta thaa.

samyog kee baata, jhooree ne ek baar goeem ko sasuraal bhej diyaa. bailom ko kya maalooma, ve kahaam’ bheje ja rahe haim. samajhe, maalik ne hamem bech diyaa. apana yom becha jaana unhem achchha laga ya buraa, kaun jaane, par jhooree ke saale gaya ko ghar tak goeem le jaane mem daantom paseena a gayaa. peechhe se haankata to donom daaem’-baam’e bhaagate, pagahiya pakarakar aage se kheenchata to donom peechhe kee or jor lagaate. maarata to donom seenge neechee karake hunkaarate. agar eeshvar ne unhem vaanee dee hotee to jhooree se poochhate-tum ham gareebom ko kyom nikaal rahe ho ?

hamane to tumhaaree seva karane mem koee kasar naheem ut’ha rakhee. agar itanee mehanat se kaam n chalata thaa, aur kaam le lete. hamem to tumhaaree chaakaree mem mar jaana kabool thaa. hamane kabhee daane-chaare kee shikaayat naheem kee. tumane jo kuchh khilaayaa, vah sir jhukaakar kha liyaa, phir tumane hamem is jaalim ke haath kyom bench diya ?

sandhya samay donom bail apane nae sthaan par pahum’che. dina-bhar ke bhookhe the, lekin jab naand mem lagaae gae to ek ne bhee usamem mumh naheem d’aalaa. dil bhaaree ho raha thaa. jise unhomne apana ghar samajh rakha thaa, vah aaj unase chhoot’ gayaa. yah naya ghara, naya gaamva, nae aadamee unhem begaane-se lagate the.

donom ne apanee mook bhaasha mem salaah kee, eka-doosare ko kanakhiyom se dekha aur let’ gaye. jab gaamv mem sota par gaya to donom ne jor maarakar pagaha tura d’aale aur ghar kee taraph chale. pagahe bahut majaboot the. anumaan n ho sakata tha ki koee bail unhem tor sakegaa, par in donom mem is samay doonee shakti a gaee thee. eka-ek jhat’ake mem rassiyaam’ t’oot’ gaeem.

jhooree praatah’ kaal so kar ut’ha to dekha ki donom bail charanee par khare haim. donom kee garadanom mem aadhaa-aadha garaamv lat’ak raha thaa. ghut’ane tak paamv keechar se bhare haim aur donom kee aankhom mem vidrohamay sneh jhalak raha hai.

jhooree bailom ko dekhakar sneh se gadgad ho gayaa. daurakar unhem gale laga liyaa. premaalingan aur chumban ka vah dri’shy bara hee manohar thaa.

ghar aur gaam’v ke larake jama ho gae. aur taaliyaam’ bajaa-bajaakar unaka svaagat karane lage. gaamv ke itihaas mem yah ghat’ana abhootapoorv n hone par bhee mahattvapoorn thee, baala-sabha ne nishchay kiyaa, donom pashu-veerom ka abhinandan patr dena chaahie. koee apane ghar se rot’iyaam laayaa, koee gura, koee chokara, koee bhoosee.

ek baalak ne kahaa- ‘‘aise bail kisee ke paas n honge.’’

doosare ne samarthan kiyaa- ‘‘itanee door se donom akele chale aae.’

teesara bolaa- ‘bail naheem haim ve, us janm ke aadamee haim.’

isaka prativaad karane ka kisee ko saahas naheem huaa. jhooree kee stree ne bailom ko dvaar par dekha to jal ut’hee. bolee -‘kaise namaka-haraam bail haim ki ek din vahaam kaam n kiyaa, bhaag khare hue.’

jhooree apane bailom par yah aakshep n sun sakaa-‘namak haraam kyom haim ? chaaraa-daana n diya hoga to kya karate ?’

stree ne rob ke saath kahaa-‘basa, tumheem to bailom ko khilaana jaanate ho, aur to sabhee paanee pilaa-pilaakar rakhate haim.’

jhooree ne chirhaayaa-‘chaara milata to kyom bhaagate ?’

stree chirh gayee-‘bhaage isalie ki ve log tum jaise buddhuom kee tarah bail ko sahalaate naheem, khilaate haim to ragarakar jotate bhee haim. ye donom t’hahare kaamachora, bhaag nikale. ab dekhoom kahaam se khalee aur chokar milata hai. sookhe bhoose ke siva kuchh n doongee, khaaem chaahem marem.’

vahee huaa. majoor kee baree taakeed kee gaee ki bailom ko khaalee sookha bhoosa diya jaae.

bailom ne naand mem mumh d’aala to pheekaa-pheekaa, n koee chikanaahat’a, n koee ras !

kya khaaem ? aashaa-bharee aankhom se dvaar kee or taakane lage. jhooree ne majoor se kahaa-‘thoree–see khalee kyom naheem d’aal deta be ?’

‘maalakin mujhe maar hee d’aalengee.’

‘churaakar d’aal aa.’

‘na daadaa, peechhe se tum bhee unheem kee-see kahoge.’

doosare din jhooree ka saala phir aaya aur bailom ko le chalaa. abakee usane donom ko gaaree mem jotaa.

do-chaar baar motee ne gaaree ko khaaee mem giraana chaahaa, par heera ne sambhaal liyaa. vah jyaada sahanasheel thaa.

sandhyaa-samay ghar pahunchakar usane donom ko mot’ee rassiyom se baandha aur kal kee sharaarat ka maja chakhaaya phir vahee sookha bhoosa d’aal diyaa. apane donom baalom ko khalee choonee sab kuchh dee.

donom bailom ka aisa apamaan kabhee n hua thaa. jhooree ne inhem phool kee chharee se bhee chhoota thaa. usakee t’it’akaar par donom urane lagate the. yahaam maar paree. aahat sammaan kee vyatha to thee hee, us par mila sookha bhoosa !

naand kee taraph aankhem tak n ut’haaeem.

doosare din gaya ne bailom ko hal mem jotaa, par in donom ne jaise paamv n ut’haane kee kasam kha lee thee. vah maarate-maarate thak gayaa, par donom ne paamv n ut’haayaa. ek baar jab us nirdayee ne heera kee naak par khoob d’and’e jamaaye to motee ko gussa kaaboo se baahar ho gayaa. hal lekar bhaagaa. hala, rassee, juaa, jota, sab t’oot’a-t’aat’akar baraabar ho gayaa. gale mem baree-baree rassiyaam’ n hoteem to donom pakaraaee mem n aate.

heera ne mooka-bhaasha mem kahaa-bhaagana vyarth hai.’

motee ne uttar diyaa-‘tumhaaree to isane jaan hee le lee thee.’

‘abakee baree maar paregee.’

‘parane do, bail ka janm liya hai to maar se kahaam tak bachenge ?’

‘gaya do aadamiyom ke saath daura a raha hai, donom ke haathom mem laat’hiyaam haim.’

motee bolaa-‘kaho to dikha doom maja maim bhee, laat’hee lekar a raha hai.’

heera ne samajhaayaa-‘naheem bhaaee ! khare ho jaao.’

‘mujhe maarega to maim eka-do ko gira doongaa.’

‘naheem hamaaree jaati ka yah dharm naheem hai.’

motee dil mem aint’hakar rah gayaa. gaya a pahuncha aur donom ko pakar kar le chalaa. kushal huee ki usane is vakt maarapeet’ n kee, naheem to motee palat’ parataa. usake tevar dekh gaya aur usake sahaayak samajh gae ki is vakt t’aal jaana hee bhalamanasaahat hai.

aaj donom ke saamane phir vahee sookha bhoosa laaya gayaa, donom chupachaap khare rahe.

ghar mem log bhojan karane lage. us vakt chhot’ee-see larakee do rot’iyaam lie nikalee aur donom ke mumh mem dekar chalee gaee. us ek rot’ee se inakee bhookh to kya shaant hotee, par donom ke hri’day ko maano bhojan mil gayaa. yahaam bhee kisee sajjan ka vaas hai. larakee bhairo kee thee. usakee maam mar chukee thee. sautelee maam use maaratee rahatee thee, isalie in bailom se ek prakaar kee aatmeeyata ho gaee thee.

donom dina-bhar jaate, d’and’e khaate, arate, shaam ko thaan par baandh die jaate aur raat ko vahee baalika unhem do rot’iyaam khila jaatee. prem ke is prasaad kee yah barakat thee ki do-do gaal sookha bhoosa khaakar bhee donom durbal n hote the, magar donom kee aankhom mem roma-rom mem vidroh bhara hua thaa.

ek din motee ne mooka-bhaasha mem kahaa-‘ab to naheem saha jaata heera !

‘kya karana chaahate ho ?’

‘ekaadh ko seengom par ut’haakar phenk doongaa.’

‘lekin jaanate ho, vah pyaaree larakee, jo hamem rot’iyaam khilaatee hai, usee kee larakee hai, jo is ghar ka maalik hai, yah bechaaree anaath ho jaaegee.’

‘to maalakin ko phenk doom, vahee to is larakee ko maaratee hai.

‘lekin aurat jaat par seeng chalaana mana hai, yah bhool jaate ho.’

‘tum to kisee tarah nikalane hee naheem dete, bataao, turaakar bhaag chalem.’

‘haam, yah maim sveekaar karataa, lekin itanee mot’ee rassee t’oot’egee kaise.’

isaka ek upaay hai, pahale rassee ko thora chaba lo. phir ek jhat’ake mem jaatee hai.’

raat ko jab baalika rot’iyaam khila kar chalee gaee to donom rassiyaam chabane lage, par mot’ee rassee mumh mem n aatee thee. bechaare baara-baar jor lagaakar rah jaate the.

saahasa ghar ka dvaar khula aur vah larakee nikalee. donom sir jhukaakar usaka haath chaat’ane lage. donom kee poonchhem kharee ho gaeem. usane unake maathe sahalaae aur bolee-‘khol detee hoom’, chupake se bhaag jaao, naheem to ye log maar d’aalenge. aaj ghar mem salaah ho rahee hai ki inakee naakom mem naath d’aal dee jaaem.’

usane garaamv khol diyaa, par donom chup khare rahe.

motee ne apanee bhaasha mem poonchhaa-‘ab chalate kyom naheem ?’

heera ne kahaa-‘chalem to, lekin kal is anaath par aaphat aaegee, sab isee par sandeh karenge.

saahasa baalika chillaaee-‘donom phoopha vaale bail bhaage je rahe haim, o daadaa! daadaa! donom bail bhaage ja rahe haim, o daadaa! daadaa! donom bail bhaage ja rahe haim, jaldee dauro.

gaya harabaraakar bheetar se nikala aur bailom ko pakarane chalaa. ve donom bhaage. gaya ne peechha kiyaa, aur bhee tej hue, gaya ne shor machaayaa. phir gaamv ke kuchh aadamiyom ko bhee saath lene ke lie laut’aa. donom mitrom ko bhaagane ka mauka mil gayaa. seedhe daurate chale gae. yahaam tak ki maarg ka jnyaan rahaa. jis parichit maarg se aae the, usaka yahaam pata n thaa. nae-nae gaamv milane lage. tab donom ek khet ke kinaare khare hokar sochane lage, ab kya karana chaahie.

heera ne kahaa-‘mujhe maaloom hota hai, raah bhool gae.’

‘tum bhee betahaasha bhaage, vaheem use maar giraana thaa.’

‘use maar giraate to duniya kya kahatee ? vah apane dharm chhor de, lekin ham apana dharm kyom chhod’em ?’

donom bhookh se vyaakul ho rahe the. khet mem mat’ar kharee thee. charane lage. raha-rahakar aahat’ lete rahe the. koee aata to naheem hai.

jab pet’ bhar gayaa, donom ne aajaadee ka anubhav kiya to mast hokar uchhalane-koodane lage. pahale donom ne d’akaar lee. phir seeng milaae aur eka-doosare ko t’hekane lage. motee ne heera ko kaee kadam peechhe hat’a diyaa, yahaam tak ki vah khaaee mem gir gayaa. tab use bhee krodh a gayaa. sambhalakar ut’ha aur motee se bhir gayaa. motee ne dekha ki khel mem jhagara hua chaahata hai to kinaare hat’ gayaa.

are ! yah kya ? koee saamr d’aunkata chala a raha hai. haam, saamr hee hai. vah saamane a pahunchaa. donom mitr bagalem jhaank rahe the. saamr poora haathee thaa. usase bhirana jaan se haath dhona hai, lekin n bhirane par bhee jaan bachatee najar naheem aatee. inheem kee taraph a bhee raha hai. kitanee bhayankar soorat hai !

motee ne mooka-bhaasha mem kahaa-‘bure phamse, jaan bachegee ? koee upaay socho.’

heera ne chintit svar mem kahaa-‘apane ghamand’ mem phoola hua hai, aarajoo-vinatee n sunegaa.’

‘bhaag kyom n chalem?’

‘bhaagana kaayarata hai.’

‘to phir yaheem maro. banda to nau do gyaarah hota hai.’

‘aur jo dauraae?’

‘ to phir koee upaae socho jalda!’

‘upaay yah hai ki us par donom jane ek saath chot’ karem. maim aage se ragedata hoom’, tum peechhe se ragedo, doharee maar paregee to bhaag khara hogaa. meree or jhapat’e, tum bagal se usake pet’ mem seeng ghuser denaa. jaan jokhim hai, par doosara upaay naheem hai.

donom mitr jaan hathelee par lekar lapake. saamr ko bhee sangat’hit shatruom se larane ka tajuraba n thaa.

vah to ek shatru se mallayuddh karane ka aadee thaa. jyom-hee heera par jhapat’aa, motee ne peechhe se dauraayaa. saamr usakee taraph mura to heera ne ragedaa. saamr chaahata thaa, ki eka-ek karake donom ko gira le, par ye donom bhee ustaad the. use vah avasar n dete the. ek baar saamr jhallaakar heera ka ant kar dene ke lie chala ki motee ne bagal se aakar usake pet’ mem seeng bhonk diyaa. saamr krodh mem aakar peechhe phira to heera ne doosare pahaloo mem seenge chubha diyaa.

aakhir bechaara jakhmee hokar bhaaga aur donom mitrom ne door tak usaka peechha kiyaa. yahaam tak ki saamr bedam hokar gir paraa. tab donom ne use chhor diyaa. donom mitr jeet ke nashe mem jhoomate chale jaate the.

motee ne saanketik bhaasha mem kahaa-‘mera jee chaahata tha ki bacha ko maar hee d’aaloom.’

heera ne tiraskaar kiyaa-‘gire hue bairee par seeng n chalaana chaahie.’

‘yah sab d’hong hai, bairee ko aisa maarana chaahie ki phir n ut’he.’

‘ab ghar kaise pahunchoge vah socho.’

‘pahale kuchh kha lem, to sochem.’

saamane mat’ar ka khet tha hee, motee usamem ghus gayaa. heera mana karata rahaa, par usane ek n sunee. abhee do hee chaar graas khaaye the ki aadamee laat’hiyaam lie daur pare aur donom mitr ko gher liyaa, heera to mer par tha nikal gayaa. motee seenche hue khet mem thaa. usake khur keechar mem dhamsane lage. n bhaag sakaa. pakar liyaa. heera ne dekhaa, sangee sankat’ mem hai to laut’ paraa. phamsenge to donom phamsenge. rakhavaalom ne use bhee pakar liyaa.

praatah’kaal donom mitr kaanjee haus mem band kar die gae.

donom mitrom ko jeevan mem pahalee baar aisa saabika para tha ki saara din beet gaya aur khaane ko ek tinaka bhee n milaa. samajh mem n aata thaa, yah kaisa svaamee hai. isase to gaya phir bhee achchha thaa. yahaam kaee bhaimse theem, kaee bakariyaam, kaee ghore, kaee gadhe, par kisee ke saamane chaara n thaa, sab jameen par murdom kee tarah pare the.

kaee to itane kamajor ho gaye the ki khare bhee n ho sakate the. saara din mitr phaat’ak kee or t’akat’akee lagaae rahate, par koee chaara n lekar aata dikhaaee diyaa. tab donom ne deevaar kee namakeen mit’t’ee chaat’anee shuroo kee, par isase kya tri’pti hotee.

raat ko bhee jab kuchh bhojan n mila to heera ke dil mem vidroh kee jvaala dahak ut’hee. motee se bolaa-‘ab naheem raha jaata motee !

motee ne sir lat’akaae hue javaab diyaa-‘mujhe to maaloom hota hai ki praan nikal rahe haim.’

‘aao deevaar tor d’aalem.’

‘mujhase to ab kuchh naheem hogaa.’

‘bas isee boot par akarate the !’

‘saaree akar nikal gaee.’

baare kee deevaar kachchee thee. heera majaboot to tha hee, apane nukeele seeng deevaar mem gara die aur jor maara to mit’t’ee ka ek chippar nikal aayaa. phir to usaka saahas barha usane daura-daurakar deevaar par chot’em keem aur har chot’ mem thoree-thoree mit’t’ee giraane lagaa.

usee samay kaanjee haus ka chaukeedaar laalat’en lekar jaanavarom kee haajiree lene a nikalaa. heera ka uddand’d’apann dekhakar use kaee d’and’e raseed kie aur mot’ee-see rassee se baandh diyaa.

motee ne pare-pare kahaa-‘aakhir maar khaaee, kya milaa?’

‘apane boote-bhar jor to maar diyaa.’

‘aisa jor maarana kis kaam ka ki aur bandhan mem par gae.’

‘jor to maarata hee jaaoongaa, chaahe kitane hee bandhan parate jaaem.’

‘jaan se haath dhona paregaa.’

‘kuchh paravaah naheem. yom bhee to marana hee hai. socho, deevaar khud jaatee to kitanee jaane bach jaateem. itane bhaaee yahaam band haim. kisee kee deh mem jaan naheem hai. do-chaar din yahee haal raha to mar jaaenge.’

‘haam, yah baat to hai. achchhaa, to la phir maim bhee jor lagaata hoom’.’

motee ne bhee deevaar mem seeng maaraa, thoree-see mit’t’ee giree aur phir himmat barhee, phir to vah deevaar mem seeng lagaakar is tarah jor karane lagaa, maano kisee pratidvandee se lar raha hai. aakhir koee do ghant’e kee jora-aajamaaee ke baad deevaar oopar se lagabhag ek haath gir gaee, usane doonee shakti se doosara dhakka maara to aadhee deevaar gir paree.

deevaar ka girana tha ki adhamare-se pare hue sabhee jaanavar chet ut’he, teenom ghoriyaam sarapat’ bhaag nikaleem. phir bakariyaam nikaleem, isake baad bhaims bhee khasak gaee, par gadhe abhee tak jyom ke tyom khare the.

heera ne poochhaa-‘tum donom kyom naheem bhaag jaate?’

ek gadhe ne kahaa-‘jo kaheem phir pakar lie jaaem.’

‘to kya haraj hai, abhee to bhaagane ka avasar hai.’

‘hamem to d’ar lagata hai. ham yaheem pare rahenge.’

aadhee raat se oopar ja chukee thee. donom gadhe abhee tak khare soch rahe the ki bhaagem, ya n bhaagem, aur motee apane mitr kee rassee torane mem laga hua thaa. jab vah haar gaya to heera ne kahaa-‘tum jaao, mujhe yaheem para rahane do, shaayad kaheem bhent’ ho jaae.’

motee ne aankhom mem aamsoo laakar kahaa-‘tum mujhe itana svaarthee samajhate ho, heera ham aur tum itane dinom ek saath rahe haim. aaj tum vipatti mem par gae ho to maim tumhem chhorakar alag ho jaaoom ?’

heera ne kahaa-‘bahut maar paregee, log samajh jaaenge, yah tumhaaree sharaarat hai.’

motee ne garv se bolaa-‘jis aparaadh ke lie tumhaare gale mem bandhana paraa, usake lie agar mujhe maar pare, to kya chintaa. itana to ho hee gaya ki nau-das praaniyom kee jaan bach gaee, ve sab to aasheervaad denge.’

yah kahate hue motee ne donom gadhom ko seengom se maara-maar kar baare se baahar nikaala aur tab apane bandhu ke paas aakar so rahaa.

bhor hote hee mumshee aur chaukeedaar tatha any karmachaariyom mem kaisee khalabalee machee, isake likhane kee jaroorat naheem. basa, itana hee kaaphee hai ki motee kee khoob marammat huee aur use bhee mot’ee rassee se baandh diya gayaa.

ek saptaah tak donom mitr vahaam bandhe pare rahe. kisee ne chaare ka ek tri’n bhee n d’aalaa. haam, ek baar paanee dikha diya jaata thaa. yahee unaka aadhaar thaa. donom itane durbal ho gae the ki ut’ha tak naheem jaata thaa, t’hat’hariyaam nikal aaeem theem. ek din baare ke saamane d’uggee bajane lagee aur dopahar hote-hote vahaam pachaasa-saat’h aadamee jama ho gae. tab donom mitr nikaale gae aur log aakar unakee soorat dekhate aur man pheeka karake chale jaate.

aise mri’tak bailom ka kaun khareedadaar hota ? sahasa ek darhiyal aadamee, jisakee aankhem laal theem aur mudra atyant kat’hora, aaya aur donom mitr ke koolhom mem ungalee godakar mumsheejee se baatem karane lagaa. chehara dekhakar antarjnyaan se donom mitrom ka dil kaamp ut’he. vah kyom hai aur kyom t’at’ol raha hai, is vishay mem unhem koee sandeh n huaa. donom ne eka-doosare ko bheet netrom se dekha aur sir jhuka liyaa.

heera ne kahaa-‘gaya ke ghar se naahak bhaage, ab to jaan n bachegee.’ motee ne ashraddha ke bhaav se uttar diyaa-‘kahate haim, bhagavaan sabake oopar daya karate haim, unhem hamaare oopar daya kyom naheem aatee ?’

‘bhagavaan ke lie hamaara jeena marana donom baraabar hai. chalo, achchha hee hai, kuchh din usake paas to rahenge. ek baar us bhagavaan ne us larakee ke roop mem hamem bachaaya thaa. kya ab n bachaaenge ?’

‘yah aadamee chhuree chalaaegaa, dekh lenaa.’

‘to kya chinta hai ? maamsa, khaala, seenga, had’d’ee sab kisee ke kaam a jaaegaa.’

neelaam ho jaane ke baad donom mitr us darhiyal ke saath chale. donom kee bot’ee-bot’ee kaamp rahee thee. bechaare paamv tak n ut’ha sakate the, par bhay ke maare girate-pad’ate bhaage jaate the, kyonki vah jara bhee chaal dheemee ho jaane par d’and’a jama deta thaa.

raah mem gaaya-bailom ka ek revar hare-bhare haar mem charata najar aayaa. sabhee jaanavar prasann the, chikane, chapala. koee uchhalata thaa, koee aanand se bait’ha paagur karata tha kitana sukhee jeevan tha inakaa, par kitane svaarthee haim saba. kisee ko chinta naheem ki unake do baaee badhik ke haath pare kaise duh’khee haim.

sahasa donom ko aisa maaloom hua ki parichit raah hai. haam, isee raaste se gaya unhem le gaya thaa. vahee kheta, vahee baaga, vahee gaamv milane lage, pratikshan unakee chaal tej hone lagee. saaree thakaana, saaree durbalata gaayab ho gaee. aah ! yah lo ! apana hee haar a gayaa. isee kuem par ham pur chalaane aaya karate the, yahee kuaam hai.

motee ne kahaa-‘hamaara ghar najadeek a gaya hai.’

heera bola -‘bhagavaan kee daya hai.’

‘maim to ab ghar bhaagata hoom’.’

‘yah jaane dega ?’

ise maim maar giraata hoom’.

‘naheem-naheem, daurakar thaan par chalo. vahaam se aage ham n jaaenge.’

donom unmatt hokar bachharom kee bhaanti kulelem karate hue ghar kee or daure. vah hamaara thaan hai. donom daurakar apane thaan par aae aur khare ho gae. darhiyal bhee peechhe-peechhe daura chala aata thaa.

jhooree dvaar par bait’ha dhoop kha raha thaa. bailom ko dekhate hee daura aur unhem baaree-baaree se gale lagaane lagaa. mitrom kee aankhom se aanand ke aamsoo bahane lage. ek jhooree ka haath chaat’ raha thaa.

darhiyal ne jaakar bailom kee rassiyaam pakar leem. jhooree ne kahaa-‘mere bail haim.’

‘tumhaare bail kaise haim ? maim maveseekhaane se neelaam lie aata hoom’.’

‘‘maim to samajhata hoom’, churaae lie jaate ho! chupake se chale jaao, mere bail haim. maim bechoonga to bikenge. kisee ko mere bail neelaam karane ka kya akhtiyaar haim ?’

‘jaakar thaane mem rapat’ kar doom’gaa.’

‘mere bail haim. isaka saboot yah hai ki mere dvaar par khare haim.

darhiyal jhallaakar bailom ko jabaradastee pakar le jaane ke lie barhaa. usee vakt motee ne seeng chalaayaa. darhiyal peechhe hat’aa. motee ne peechha kiyaa. darhiyal bhaagaa. motee peechhe dauraa, gaamv ke baahar nikal jaane par vah rukaa, par khara darhiyal ka raasta vah dekh raha thaa, darhiyal door khara dhamakiyaam de raha thaa, gaaliyaam nikaal raha thaa, patthar phenk raha thaa, aur motee vijayee shoor kee bhaanti usaka raasta roke khara thaa. gaamv ke log yah tamaasha dekhate the aur ham’sate the. jab darhiyal haarakar chala gaya to motee akarata hua laut’aa. heera ne kahaa-‘maim to d’ar gaya tha ki kaheem tum gusse mem aakar maar n bait’ho.’

‘ab n aaegaa.’

‘aaega to door se hee khabar loongaa. dekhoom, kaise le jaata hai.’

‘jo golee marava de ?’

‘mar jaaoongaa, par usake kaam n aaoongaa.’

‘hamaaree jaan ko koee jaan hee naheem samajhataa.’

‘isalie ki ham itane seedhe haim.’

jara der mem naam’dom mem khalee bhoosaa, chokar aur daana bhar diya gaya aur donom mitr khaane lage. jhooree khara donom ko sahala raha thaa. vah unase lipat’ gayaa.

jhooree kee patnee bhee bheetar se dauree-dauree aaee. usane ne aakar donom bailom ke maathe choom lie.

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