“हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है और इसलिए इसे हमारे ऊपर नहीं थोपा जाना चाहिए” – यह आवाज है आजकल बेंगलुरु की नम्मा मेट्रो में होने वाले हिंदी अनाउंसमेंट और हिंदी साइनबोर्ड का विरोध कर रहे बंगलुरु निवासियों की. सोशल मीडिया पर भी #NammaMetroHindiBeda और #NammaMetroKannadaSaku के हैशटैग के साथ बेंगलुरु निवासी BMRCL पर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं. एक ट्विटर पर कराये गए सर्वे में 89% बेंगलुरु निवासियों ने मेट्रो में हिंदी के अनिवार्य किये जाने के खिलाफ अपनी राय दी है. बेंगलुरु निवासी केवल दो ही भाषाओँ के पक्ष में हैं – कन्नड़ और इंग्लिश.
जहां कुछ बेंगलुरु निवासियों का मानना है की उन्हें त्रिभाषा फॉर्मूले को अपनाना चाहिए वहीँ अधिकांश इसके खिलाफ हैं. कुछ लोगों का विचार है कि बेंगलुरु एक मिक्स्ड आबादी वाला शहर है जिसमें २५ से ज्यादा राज्य और अनेक देशों से लोग रहते हैं. ऐसे शहर में भाषा का जिनगोइज़म ठीक नहीं है. ऐसे लोगों के अनुसार नम्मा मेट्रो में हिंदी का भी कन्नड़ और इंग्लिश की तरह इस्तेमाल होना चाहिए. जरुरी है कि कन्नड़ प्रमुख भाषा हो और इंग्लिश और हिंदी का भी सपोर्ट किया जाये.
मेट्रो में हिंदी साइनबोर्ड के इस्तेमाल के समर्थकों का कहना है कि नम्मा मेट्रो का इस्तेमाल करने वाले यात्री समाज के विभिन्न वर्गों से आते हैं. इनमें से अधिकाँश कन्नड़भाषी हैं किन्तु हो सकता है कि कुछ केवल हिंदी ही समझते हों. तीनों भाषा जानने वाले भी कुछ लोग होंगे लेकिन बहुत कम. कन्नड़ में “नम्मा” का अर्थ है “हमारा’ यह तभी सार्थक हो सकता है जब उसमें देश के सभी नागरिकों के लिए सामान व्यवहार हो.
वहीं दूसरी तरफ हिंदी का विरोध करने वाले बेंगलुरु निवासियों का मानना है कि क्योंकि हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है इसलिए कन्नड़ और इंग्लिश के सिवाय और किसी भाषा की नम्मा मेट्रो में इस्तेमाल की जरुरत नहीं है.
बता दें कि बहुत पहले केंद्रीय विद्यालयों में तीन भाषाएँ पढ़ाई जाती थीं – कन्नड़ प्रमुख थी और हिंदी और इंग्लिश सेकंड और थर्ड भाषा के रूप में पढ़ाई जाती थी. फिर दक्षिण भारत में साथ के दशक में हिंदी का जबरदस्त विरोध हुआ और दक्षिण के सभी राज्य जैसे आंध्रा, तमिलनाडु और कर्नाटक इस विरोध में शामिल हुए.
हिंदी विरोधियों का कहना है कि नम्मा मेट्रो एक कर्णाटक की राज्य सरकार के अधीन चलने वाली इकाई है जो सिर्फ बेंगलुरु में चलती है. बेंगलुरु से दिल्ली या लखनऊ जाने वाली रेल में हिंदी के साइनबोर्ड का औचित्य है लेकिन बेंगलुरु की लोकल मेट्रो में हिंदी की कोई आवश्यकता नहीं है.