Dwar par var (dulhe) ki aarti kyon utari jati hai?
पुराने जमाने में विवाह संबंध, सगाई आदि कराना नाई और ब्राह्मणों के ही जिम्मे था। वे जैसी रिपोर्ट आकर घर के मुखिया को देते थे, उसी पर सब कुछ निर्भर करता था। ये मध्यस्थ काफी विश्वासी भी होते थे। लेकिन इसके बावजूद माँ की ममता नहीं मानती थी।
लड़की की माँ एवं स्त्रियां के मन में एक शंका बनी रहती थी कि पुरूष वर्ग ने जो वर चुना है वह ठीक है या नहीं। इसीलिए गृह प्रवेश करने के पहले द्वार पूजा एवं वर की आरती का विधान बनाया गया। उस जमाने में हेलोजिन और मर्करी तो थी नहीं।
जब बारात आती तो 21 दीपकों की रोशनी में सास या कोई बड़ी अनुभवी स्त्री निरीक्षण करती कि वर लंगड़ा लूला, काना आदि कोई दोषमय तो नहीं है। कच्चा सूत से वर की छाती, लम्बाई आदि का नाप करने का विधान भी था। इस प्रक्रिया के बाद संतुष्ट होने पर ही वर को घर में आने की अनुमति मिलती थी।
कई बार सुना गया कि वर ठीक न होने के कारण बारात को द्वार से ही वापस लौट जाता पड़ता था। इसीलिए वर आने पर द्वार पर उसकी आरती उतारने का विधान बनाया गया।