किसी किसान के बाग में शरीफे का एक पेड़ था। उस पेड़ पर अत्यन्त स्वादिष्ट फल लगते थे। एक दिन एक जमींदार के पास उसे खुश करने के लिए कुछ शरीफे ले गया। जमींदार ने शरीफे खाए तो बहुत प्रसन्न हुआ। फल उसे इतने पसन्द आए कि उसने निश्चय कर लिया कि वह उस पेड़ को हथिया लेगा।
उसने अपने आदमी भेज कर वह पेड़ किसान के खेत से उखड़वाया और अपने खेतों में लगवा लिया। चूंकि बेचारा किसान गरीब था, इसलिए कुछ बोल नहीं सका। परंतु पेड़ उखाड़ने के दौरान उसकी जड़ों को बहुत हानि पहुंची। इसलिए जब नए स्थान पर उस पेड़ को लगाया गया तो वह जड़ नहीं पकड़ सका।
पेड़ धीरे-धीरे सूख कर एक दिन बरबाद हो गया। जब किसान को इस बात का पता चला तो वह उदास हो गया और धीमी आवाज में बोला- ‘स्वार्थ का यही फल होता है। अगर वह पेड़ को उखड़वाता नहीं तो आज भी उसमें स्वादिष्ट फल लगते और हम दोनों को मिलते रहते। परंतु अब तो हम दोनों को ही ऐसे फल नहीं मिलेंगे।
निष्कर्ष- स्वार्थी लोग हमेशा दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं।