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Short Hindi Essay on Meri Priya Pustak मेरी प्रिय पुस्तक पर लघु निबंध

Meri Priya Pustak par laghu nibandh

प्रस्तावना- आज का युग विज्ञान का युग है। आजकल प्रतिदिन सैंकड़ों नई-नई पुस्तकें छपती रहती हैं। हमारे विद्यालय में भी नई-नई पुस्तकें आती रहती हैं। मुझे बहुत सी पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिला है। अब तक मैंने कहानी, उपन्यास, नाटक आदि की कई पुस्तकें पढ़ डाली हैं। परन्तु मेरे मन पर जिस पुस्तक का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है, वह रामचरितमानस।Short Essay on Meri Priye Pustak

रामचरितमानस- रामचरितमानस को तुलसीदास जी ने लिखा है। वे बहुत बड़े कवि थे, पर घमंड नाम भी उनमें नहीं था। रामचरितमानस में लिखा यह दोहा उनके सरल व्यक्तित्व का परिचय देता है-

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राम सों बड़ौ है कौन, मोसों कौन छोटी।

राम सों खरौ है कौन, मोसों कौन खोटी।

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तुलसीदास में सरल भाशा में गंभीर बात कहने का गुण है। भाव कितने ही ऊँचे हैं और अनुकरण करने योग्य हैं। उनका एक-एक शब्द रस से युक्त और प्रेरणादायक है-

सच्चे मित्र की विशेषता बताते हुए उन्होंने लिखा है-

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जे न मित्र दुख होहिं दुखांरी,

तिनहिं विलोकत पातक भारी।।

मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस में सात कांड हैं- बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, सुन्दरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड।

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तुलसीदास ने इस ग्रंथ को आज से चार सौ वर्ष पहले लिखा था। यह ग्रंथ पुराना होते हुए भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें तुलसीदास ने मानव जीवन का समग्र चित्र उपस्थित किया है। राम आदर्श पुत्र हैं, आदर्श भाई हैं, आदर्श राजा हैं, आदर्श स्वामी हैं। उनमें त्याग की अद्भुत क्षमता है।

तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ में भारतीय समाज का सच्चा चित्र प्रस्तुत किया है। राजा प्रजा का परस्पर कैसा संबंध होना चाहिए। माता पिता का, भाई भाई का पति पत्नी का परस्पर कैसा सम्बन्ध होना चाहिए, इसका विस्तृत चित्रण शायद ही किसी और ग्रंथ में पढ़ने को मिले।

राजा कैसा होना चाहिए, इस सम्बन्ध में उन्होंने लिखा है-

मुखिया मुख से चाहिए, खान पान सो एक।

पाले, पोसे सकल अंग तुलसी सहित विवेक।।

अच्छी संगति का महत्व उन्होंने इस प्रकार स्पष्ट किया है-

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जहाँ सुमति, तहँ सम्पति नाना।

जहाँ कुमति तहँ विपति निदाना।।

तुलसीदास की इस पुस्तक में भाव और भाषा दोनों का सौंदर्य देखने को मिलता है। मानस की भाषा अवधी है। उन्होंने इसमें भोजपुरी, मराठी, अरबी आदि भाषाओं के उन शब्दों का प्रयोग किया है जो बोलचाल में भी प्रयोग में आते हैं भाषा सरल और विषय के अनुकूल है।

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तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ में परस्पर भाईचारे को प्रमुखता दी है। यह ग्रंथ कला पक्ष और भाव पक्ष दोनों दृष्टियों से ही उत्तम रचना है। इसलिए यह ग्रंथ मुझे सबसे प्रिय है।

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