Mera Priya Kavi par laghu nibandh
प्रस्तावना- मुझे पढ़ने का शौक है। मैं पाठ्य पुस्तकें तो ध्यान से पढ़ता ही हूँ, पुस्तकालय में बैठकर कवियों की रचनाओं को पढ़ने में भी मुझे बहुत आनंद आता है। मैंने हिन्दी के बहुत से कवियों की रचनाओं को ध्यान से पढ़ा है। इसमें कोई सन्देह नहीं, सभी कवियों की अपनी अपनी विशेषताएँ होती हैं। कोई वीरता के गीत गाता है तो कोई प्रेम कहानी को अपनी वाणी देता है। कोई भक्तकवि होता है तो प्रकृत्ति का चित्रण करने में लगा रहता है। मैंने बहुत से कवियों की रचनाओं का आनंद लिया है। मैं तो महात्मा तुलसीदास को ही अपना प्रिय कवि मानता हूँ।
जन्म स्थान- मेरे प्रिय कवि तुलसीदास के जन्म स्थान के बारे में भी मतभेद है। अभी तक यह निश्चित नहीं हो पाया है कि उनका जन्म स्थान कौन सा है। इसी प्रकार उनकी जन्म तिथि के बारे में भी विवाद है। सच्चाई यह है कि उन्होंने अपने जीवन के विषय में कुछ विशेष नहीं लिखा है। इसलिए उनके काव्य में थोड़ा बहुत उनके जीवन के बारे में प्रसंग मिलते हैं, उन्हीं के आधार पर अनेक विद्वान अनुमान लगाते हैं कि उनका जन्म अशुभ नक्षत्र में सम्वत् 1554 की श्रावण शुक्ला सप्तमी को हुआ था।
बाल्याकाल- तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। अशुभ नक्षत्र में जन्म होने के कारण उनके माता पिता ने उन्हें त्याग दिया था। इसलिए उनका पालन पोषण एक दासी ने किया। दुर्भाग्वष उसका भी देहान्त हो गया और तुलसीदास अनाथ होकर दर दर भटकते रहे।
शिक्षा दीक्षा- कुछ काल के बाद तुलसीदास को स्वामी नरहरिदास से भेंट हुई। नरहरिदास उन्हें अयोध्या ले गए और वहाँ उन्होंने उन्हें राम नाम की दीक्षा लेकर विद्याध्ययन आरम्भ करा दिया। 25-30 वर्ष की आयु तक वे विद्याध्ययन करते रहे।
विवाह और गृहस्थ जीवन-तुलसीदास का विवाह रत्नावली नाम की एक सुशील कन्या से हो गया। वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे। एक बार उनकी पत्नी अपने मायके चली गई। उसके बिना उन्हें अपना जीवन नीरस लगने लगा और एक दिन वे नदी को पार कर ससुराल जा पहुँचे। उनकी पत्नी रत्नावली को तुलसीदास का इतना अधीर होना अच्छा नहीं लगा। उसने तुलसीदास से कहा- हे नाथ, जितना प्रेम आप मुझसे करते हैं, उतना प्रेम यदि आप ईश्वर से करें तो आपका उद्धार हो जाए।
वैराग्य और साहित्य रचना- तुलसीदास के जीवन में उनकी पत्नी के वचनों से परिवर्तन आ गया। सांसारिक जीवन को छोड़ वे भगवान की भक्ति में लग गए। तुलसीदास ने अपने जीवन काल में 20 से भी अधिक रचनाएँ लिखी हैं। रामचरतिमानस उनकी रचनाओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध है। उनका देहान्त 125 वर्ष की आयु में सम्वत् 1631 में हुआ था।
उपसंहार- महात्मा तुलसीदास जैसा महान कवि कोई एकाध ही हुआ करता है। उन्होंने समाज और साहित्य की महान सेवा की है। उनके समान उदार और समन्वयवादी कोई कोई ही होता है।