Panchayati Raj par laghu Nibandh
पंचायती राज का सीधा अर्थ है- पंचायत के द्वारा शासन करना। प्रश्न है कि पंचायत के द्वारा कहाँ का शासन और किसके द्वारा शासन किस अर्थ में होगा। इसके उत्तर में हमें पंचायती राज के स्वरूप, उसके परिणामों और कारणों पर विचार करना होगा।
आजादी से पहले और आजादी के बाद भी हमारे देश की ग्रामीण दशा अपेक्षित और दयनीय हो रही है। ग्राम पंचायतों के विषय में काफी समय से विचार विमर्श होते रहे हैं। आजादी के बाद इस पर अधिक ध्यान दिया गया। सन् 1952 ई. में ‘फोर्ड फाउण्डेशन’ की सहायता से ‘कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम’ और सन् 1953 ई. में ‘नेशनल एक्सटेन्शन सर्विस’ के माध्यम से ग्रामोत्थान और विकास की परियोजनाओं को लागू करने के लिए विचार विमर्श किये गये थे। इसके बाद सन् 1957 में ‘मेहता समिति’ ने ‘जनतांत्रिक विकेन्द्रीकरण’ शीर्षक के माध्यम से अपनी रिपोर्ट पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने के लिए सरकार से सिफारिश की थी। इस रिपोर्ट में यह कहा गया था कि स्थानीय निकायों सहित केन्द्र में शक्तियों और अधिकारों के ठीक ढंग से विभाजन के फलस्वरूप ही आधुनिक जनतन्त्र की स्थानीय समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इस रिपोर्ट को लागू करने में जो उत्साह आरंभ में दिखाई दिया, वह धीरे धीरे समाप्त हो गया।
सन् 1977 में पंचायती राज से सम्बन्धित ‘अशोक मेहता समिति’ का गठन केन्द्र सरकार ने किया। सन् 1978 में इस समिति ने केन्द्र सरकार को यह सुझाव दिया कि प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण कार्यपरक होना चाहिए। इसके लिए द्विस्तरीय व्यवस्था का प्रस्ताव रखा गया। इस समिति ने राज्यों के नीचे राजस्य प्रांतों को विकेन्द्रीकरण की प्रथम सीढ़ी माना और जिला परिषद तथा मंडल पंचायत की सुझाव प्रस्तुत किया। इस समिति ने ग्राम समिति को महत्व देते हुए मंडल पंचायत की प्रमुखता पर बल दिया। कई ग्राम समूह के योग से मंडल पंचायतों का निर्माण होगा। ये मंडल पंचायत ग्राम समिति के माध्यम से सक्रिय रहेंगे। ग्राम समिति सम्पूर्ण म्यूनिसिपल कार्य एवं वेलफेयर गतिविधियों का संचालन करती रहेंगी। प्रत्येक जिला परिषद कार्यपालिका के रूप में काम करेगी। इस मेहता समिति का यह भी सुझाव था कि विकास कार्यक्रमों पर जनता के नियन्त्रण के साथ ही इसके अपेक्षित विकास के कार्यक्रमों और क्षेत्रों में आधुनिक तकनीकों के प्रवेश से सीमित अर्थव्यवस्था को बढ़ाया जाए। इस समिति की रिपोर्ट को लागू करने के लिए कई राज्यों जैसे-जम्मू कश्मीर , बंगाल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश ने अपने अपने पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर दिये। सन् 1978 में पश्चिम बंगाल प्रांत में पंचायती राज को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ राजनैतिक दलों ने अपना समर्थन दिया था।
पंचायती राज का नवीनतम रूप सन् 1989 में दिखाई दिया है। इसके ऊपर विचारने पर यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि पंचायत राज के पहले चरण और इस चरण में बहुत बड़े अंतर हैं। प्रथम पंचायती राज सम्बन्धी समिति और इस नवीनतम पंचायती राज्य समिति के मूल्यांकन से पंचायती राज्य के क्रियान्वयन की सार्थकता सिद्ध होती है। देश की वर्तमान आर्थिक राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में पंचायती राज पर वाद विवाद के बाद इसका संशोधित विधेयक बहुमत से संसद में पास कर दिया गया है।
पंचायती राज हमारे समाज और राष्ट्र की प्रगति का महान सूत्र है। पंचायती राज किसी प्रकार की भेदभाव की नीति को समाप्त करने वाला समन्वयवादी विषय है। इससे न केवल ग्रामीध जीवन स्तर सुखकर तथा आनन्द कर होता है, अपितु आपसी संकीर्णता की दरारें भी पट जाती हैं और न्याय व्यवस्था का महत्व अंकित होता है।
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