Mahavir Swami par laghu nibandh
प्रस्तावना- हमारा देश भारत अवतारी पुरूषों का देश है। इस देश में जितने महापुरूषों का जन्म हुआ है, उतने महापुरूष शायद ही किसी दूसरे देश में पैदा हुए हों। मर्यादा पुरूषोत्तम राम, योगिराज कृष्ण, धर्मराज युधिष्ठिर, विवेकानन्द जैसे महान पुरूष इस देश में ही पैदा हुए हैं ऐसी ही महान पुरूषों में एक थे महावीर स्वामी।
जन्म- जैन धर्म के चैबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी का जन्म आज से लगभग 2600 वर्ष पहले वैशाली नगर, बिहार में हुआ था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला देवी था। इनके जन्म पर इनके वंश और राज्य का प्रभाव और भी बढ़ गया। इससे इनके माता पिता को बहुत प्रसन्नता हुई। माता पिता ने प्रसन्न होकर इनका नाम वर्द्धमान रख दिया।
बाल्य काल- वर्द्धमान बचपन से ही होनहार थे। इनकी बुद्धि तीव्र थी। इन्हें भी सांसारिक सुखों से कोई लगाव नहीं था। वे एकान्त से प्रेम करते थे। भगवान की भक्ति में वे अपना समय व्यतीत करते थे। उन्होंने अपने मनोबल से एक विषैले साँप् और मस्त हाथी को अपने वश में कर लिया था। इसलिए उनका नाम महावीर रख दिया गया।
विवाह- सांसारिक सुखों से महावीर को कोई लगाव नहीं था। यह देख उनके माता पिता ने उनका विवाह कर दिया। जब महावीर स्वामी 28 वर्ष के थे, तब इनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु से इनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। दो वर्ष के बाद महावीर सुख सुविधाओं और राज पाट को छोड़ तपस्या करने जंगलों में चले गए। बाहर वर्ष तक उन्होंने कठोर तपस्या की। इसके बाद उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ।
महावीर स्वामी के उपदेश- महावीर स्वामी ने नगर नगर और गाँव गाँव घूम कर जैन धर्म का प्रचार किया। उन्होंने लोगों को अच्छा आचरण, खान पान में पवित्रता और सभी प्राणियों पर दया करने की शिक्षा दी। जैन धर्म पर चलने वालों को जैनी कहते हैं। जैन धर्म के लोग बहुत धनी हैं। उनके मन्दिर, धर्मशालाएँ, औषधालय आदि सारे भारत में प्रसिद्ध हैं। उनके उपदेश संक्षेप में इस प्रकार हैं।
- सत्य पर चलना
- चोरी न करना
- आवश्यकता से अधिक धन संग्रह न करना
- अहिंसा
- शुद्ध आचरण
इन सिद्धान्तों पर चलकर मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हमें आत्म कल्याण के लिए इन सिद्धान्तों पर चलना चाहिए।
मृत्यु- महावीर स्वामी का निर्वाण बिहार प्रान्त के पावा पुरी नामक स्थान पर हुआ था। तब उनकी आयु 72 वर्ष की थी।
उपसंहार- हमें भी महावीर स्वामी के आदर्शों पर चलना चाहिए। आज के संसार में जब घृणा, वैर, द्वेष बढ़ रहे हैं, महावीर स्वामी के उपदेशों पर चलकर ही जीवन में शान्ति और सुख संभव है।