Badh ka Ek Drishya par laghu nibandh (Hindi Essay on scene of flood)
प्रस्तावना- प्रकृति की लीला बड़ी विचित्र है। कभी गर्मी है तो कभी सर्दी कभी पतझड़ है तो कभी बसन्त। गर्मी के मौसम में पानी की एक एक बूंद के लिए आदमी तरसने लगता है। पर वर्षा के मौसम में चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देता है। कभी कभी वर्षा इतनी अधिक होती है कि नदी नाले पानी से उफनने लगते हैं। पानी नदी नालों के तटों को तोड़ बाहर बहने लगता है और देखते ही देखते बाढ़ का रूप ले लेता है।
उत्तरी भारत में वर्षा- गत वर्ष सारे उत्तरी भारत में बहुत वर्षा हुई थी। यमुना में पानी धीरे धीरे बढ़ने लगा था। वर्षा रूकने में नही आ रही थी। दिल्ली प्रशासन ने लोगों को बाढ़ की चेतावनी देनी शुरू कर दी थी। अचानक ही यमुना के पानी का स्तर बढ़ गया।
यमुना में बाढ़- रात के 12 बजे होंगे। यमुना का पानी दो तीन स्थानों से तट को तोड़ता हुआ नगर की ओर बहने लगा। देखते ही देखते, मुखर्जी नगर, तिमारपुर का कुछ हिस्सा और कश्मीरी गेट के पास स्थित अन्तर्राज्यीय बस अड्डा जल मग्न हो गया। पानी को घरों में घुसता देख लोगों ने संभलने का प्रयत्न किया। कुछ लोग छोटा मोटा कीमती सामान लेकर जाने लगे, पर चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देने लगा। वहाँ से बचकर जाना आसान नहीं था। अतएव कई लोगों ने पहले तो अपना सामान छतों पर, खाटों पर और अलमारियों में रखना शुरू कर दिया। उन्होंने जब देखा कि बाढ़ से बच निकलने का कोई रास्ता नहीं तो वे छत पर जाकर बैठ गए। रात जैसे जैसे समाप्त हुई। उशा की पौ फटने लगी। जैसे जैसे प्रकाश होता गया चारों और पानी ही पानी दिखाई देने लगा। दूर दूर तक पानी के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं देता था। गलियों में और सड़कों पर सात आठ फुट पानी था। ऐसे लग रहा था जैसे ये गलियाँ और सड़कें नहीं, नहरें और नाले हैं। धीरे धीरे लोग छतों से उतर कर चाय पानी के प्रबंध की चिन्ता करने लगे। थोड़ी देर में दूर से नौका में कुछ लोग आते दिखाई दिए। उन्होंने बाढ़ से घिरे लोगों में डबल रोटी, चाय और पीने के लिए पानी बाँटा। मैंने भी वहाँ से चले जाना उचित समझा और उनके साथ नौका में बैठ गया।
सरकार द्वारा व्यवस्था- दिल्ली सरकार ने कुछ स्थानो पर बाढ़ पीडि़तों के रहने का प्रबंध कर रखा था। आर्य समाज और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आदि स्वयं सेवी संस्थाओं ने भी बाढ़ पीडि़तों की सहायता का प्रबंध किया हुआ था।
सेना के जवानों ने दिन रात एक करके यमुना नदी के तट में आई दरारों को पाट दिया। इससे पानी धीरे धीरे घटने लगा। जिस क्षेत्र में पानी कम हो जाता, वहाँ सफाई की व्यवस्था कर दी गई। 15-20 दिनों में बाढ़ का पानी बिल्कुल समाप्त हो गया।
उपसंहार- अब यद्यपि स्थिति सामान्य है, फिर भी बाढ़ का वह दृश्य लोगों से नहीं भूला जाता। जब कभी पाँच सात व्यक्ति इकट्ठे होते हैं, वे बाढ़ की बातें करने लगते हैं। बाढ़ का वह दृश्य हम शायद ही भूल पाएँ।