Shani ki nazar (drishti) buri kyon mante hain?
कहा जाता है कि शनि की दृष्टि अशुभ होती है। ब्रहमवैवर्त पुराण में इसके पीछे एक कथा है। हमारे प्राचीन पुराण में से एक ब्रह्मवैवर्तपुराण में इसके पीछे एक कथा का वर्णन है, जो इस प्रकार है- सूर्य पुत्र शनि का विवाह चित्ररथ नामक गंधर्व की कन्या से हुआ था, जो स्वभाव से बहुत ही गुस्से वाली थी. एक बार उनकी पत्नी ऋतु स्नान के बाद मिलन की कामना से उनके पास पहुंची लेकिन शनि भगवान भक्ति में इतने लीन थे कि उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला.
जब शनिदेव का ध्यान भंग हुआ तब तक उनकी पत्नी का ऋतुकाल समाप्त हो चुका था। इससे क्रोधित होकर शनिदेव की पत्नी ने उन्हें श्राप दे दिया कि पत्नी होने पर भी आपने मुझे कभी प्रेम दृष्टि से नहीं देखा अब आप जिसे भी देखेंगे उसका कुछ न कुछ बुरा हो जायेगा। इसी श्राप के कारण शनि की दृष्टि में दोष माना गया है।
लेकिन शनि की नजर हमेशा ही बुरी नहीं होती कुण्डली के कुछ स्थान हैं, जिस पर शनि की नजर शुभ फल देने वाली होती है।
ज्योतिष शास्त्र में शनि की तीन तरह की दृष्टि बनाई गई है, जो कि अपने स्थान से 3, 7 और 10 वें घर पर पड़ती है। इन तीनों दृष्टियों के अलग अलग प्रभाव बताए गए हैं।
शनि की नजर से जुड़ा एक पुराण प्रसंग भी है। जिसके मुताबिक गणेश जी के जन्म के बाद जब सभी देवी देवता उनके दर्शन के लिए कैलाश पहुंचे। तब शनि देव भी वहां पहुंचे, लेकिन आंखों पर पट्टी बांधकर। उनका इस तरह आंखों पर पट्टी बांधकर आना पार्वती जी को अच्छा नहीं लग रहा था। इसीलिए पार्वती जी के बार बार अनुरोध करने पर शनिदेव ने गणेश जी को देखा और शनिदेव के दृष्टिपात से ही गणेश जी की गर्दन उनके धड़ से अलग हो गई। इसलिए शनि की दृष्टि को बुरा माना जाता है।