Shani par tel kyon chadhate hain?
शनि पर तेल चढ़ाने कस धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों महत्व है। शनि न्यायप्रिय ग्रह है और श्रम से प्रसन्न होते हैं। शनि की नाराजगी श्रम से दूर की जा सकती है लेकिन उस श्रम के लिए हमारे शरीर में शक्ति, स्वास्थ्य और साम्रथ्य रहे, इसके लिए शनि का तेल चढ़ा कर प्रसन्न किया जाता है। पुराणों में शनि को तेल चढ़ाने के पीछे कई भिन्न भिन्न कथाएँ हैं। प्रमुखतः ये सारी कथाएँ रामायण काल और विशेष रूप से भगवान हनुमान से जुड़ी हैं।
अलग अलग कथाओं में शनि को तेल चढ़ाने की चर्चा है। शनि नीले रंग का क्रूर ग्रह माना जाता है, जिसका स्वभाव कुछ उदण्ड था। अपने स्वभाव के चलते उसने श्री हनुमान जी को तंग करना शुरू कर दिया।
जब भगवान की सेना ने सागर सेतु बांध लिया, तब राक्षस इसे हानि न पहुंचा सकें, उसके लिए पवन सुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौपी गई। जब हनुमान जी शाम के समय अपने इष्टदेव राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर मैं देवताओ में शक्तिशाली शनि हूँ। सुना हैं, तुम बहुत बलशाली हो। आँखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ।
इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघन मत डालिए। आप मेरे आदरणीय है। कृपा करके आप यहा से चले जाइए। बहुत समझाने पर भी वह नहीं माना तब हनुमान जी ने उसको सबक सिखाया।
हनुमान की मार सी पीड़ित शनि ने उनसे क्षमा याचन की तो करूणावश हनुमान जी ने उनको घावों पर लगाने के लिए तेल दिया। शनि महाराज ने वचन दिए तो हनुमान का पूजन करेगा तथा शनिवार को मुझ पर तेल चढ़ाएगा उसका मैं कल्याण करूँगा।
धार्मिक महत्व के साथ ही इसका वैज्ञानिक आधार भी है। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि शनिवार को तेल चढ़ाने का सीधा संबंध है। ज्योतिष शास्त्र में शनि को त्वचा, दांत, कान, हड्डियों और घुटनों में स्थान दिया गया है। इससे त्वचा रूखी, दांत, कान कमजोर तथा हड्डियों और घुटनों में विकार उत्पन्न होता है। तेल की मालिश से इन सभी अंगों को आराम मिलता है।
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अतः शनि को तेल अर्पण का मतलब यही है कि अपने इन उपरोक्त अंगों की तेल मालिश द्वारा रक्षा करें। दांतों पर सरसों का तेल और नमक की मालिश। कानों में सरसों तेल की बूंद डालें। त्वचा, हड्डी, घुटनों पर सरसों के तेल की मालिश करनी चाहिए। शनि का इन सभी अंगों में वास माना गया है, इसलिए तेल चढ़ाने से वे हमारे इन अंगों की रक्षा करते हैं और उनमें शक्ति का संचार भी करते हैं।
एक दूसरी कथा के अनुसार जब रावण अपने अहंकार में चूर था और उसने अपने बल से सभी ग्रहों को बंदी बना लिया था। शनिदेव को भी उसने बंदीग्रह में उलटा लटका दिया था। उसी समय हनुमान जी भगवान राम के दूत बनकर लंका पहुंचे थे। रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगवा दी। क्रोधित होकर हनुमान जी ने पूरी लंका जला दी थी. लंका जल गई और सारे ग्रह आजाद हो गए, लेकिन उल्टा लटका होने के कारण शनि के शरीर में भयंकर पीड़ा हो रही थी और वह दर्द से कराह रहे थे। शनि के दर्द को शांत करने के लिए हुनमान जी ने उनके शरीर पर तेल से मालिश की और शनि को दर्द से मुक्त किया, उसी समय शनि ने कहा था कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से मुझ पर तेल चढ़ाएगा उसे सारी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। तभी से शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई।