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पुरइन पात राहत जल भीतर तरस देह न त्यागी ज्यों मन कि मन ही मा में कौनसा अलंकार है?

पुरइन पात राहत जल भीतर तरस देह न त्यागी ज्यों मन कि मन ही मा में कौनसा अलंकार है?

प्रश्न – पुरइन पात राहत जल भीतर तरस देह न त्यागी ज्यों मन कि मन ही माँझ रही में कौनसा अलंकार है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये।

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उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है क्योंकि इसमे म और प की आवृत्ति हुई है। वर्णों की आवृत्ति से कविता में चमत्कार उत्पन्न हो रहा है।

इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार का कौन सा भेद हैं?

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जब किसी काव्य पंक्ति में एक से ज्यादा वर्णों की आवृत्ति होती है तो वहाँ छेकानुप्रास होता है। प और न की आवृत्ति के कारण यहाँ छेकानुप्रास है।

जैसा कि आपने इस उदाहरण में देखा जहां पर किसी वर्ण के विशेष प्रयोग से पंक्ति में सुंदरता, लय तथा चमत्कार उत्पन्न हो जाता है उसे हम शब्दालंकार कहते हैं।

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अनुप्रास अलंकार शब्दालंकार का एक प्रकार है। काव्य में जहां समान वर्णों की एक से अधिक बार आवृत्ति होती है वहां अनुप्रास अलंकार होता है।

पुरइन पात राहत जल भीतर तरस देह न त्यागी ज्यों मन कि मन ही माँझ रही में अलंकार से संबन्धित प्रश्न परीक्षा में कई प्रकार से पूछे जाते हैं। जैसे कि – यहाँ पर कौन सा अलंकार है? दी गई पंक्तियों में कौन सा अलंकार है? दिया गया पद्यान्श कौन से अलंकार का उदाहरण है? पद्यांश की पंक्ति में कौन-कौन सा अलंकार है, आदि।

अन्य अलंकार की उपस्थिति –

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इस काव्य पंक्ति ज्यों के प्रयोग के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

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