पिछले साल नवम्बर में मोदी सरकार द्वारा काले धन को ख़त्म करने की ऐतिहासिक मुहीम के नाम से की गयी नोट बंदी (विमुद्रीकरण या demonetization) पूरी तरह से असफल साबित हुई है. यह कोई आम जनता या विपक्ष का भाजपा की केंद्र सरकार पर आरोप नहीं है बल्कि खुद सरकार का रिज़र्व बैंक अपनी ऑफिशियल रिपोर्ट में कह चुका है कि काला धन वापस लाने के अपने उद्देश्य में नोटबंदी नाकाम रही है.
चलो मान लेते हैं कि नोटबंदी नाकाम हो गयी लेकिन सवाल उठता है कि आखिर क्यों? ऐसा क्या हुआ कि मोदी का ऐसा कदम जिसे ऐतिहासिक बताया गया था, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने से चूक गया?
जिस सवाल का जवाब भारतवासी पिछले 10 महीनों से मांग रहे हैं वह हमें रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट में मिलता है. रिज़र्व बैंक के अनुसार 500 और 1000 के जिन नोटों का चलन बंद किया गया था उनकी कुल कीमत 15.44 लाख करोड़ रुपये थी. नोटबंदी का घोषित उद्देश्य था “काला धन’ बाहर लाना और “नकली मुद्रा” को पकड़ना. नोटबंदी के समय जारी सरकारी प्रेसविज्ञप्ति में इसका स्पष्ट उल्लेख है.
आशा जताई गयी थी कि कैश के रूप में रखा गया काला धन बैंकों में जमा नहीं किया जा सकेगा क्यूंकि उसका स्रोत बताना कठिन होगा. साथ ही यह भी कि नकद में काला धन रखने वाले व्यक्ति अपनी पहचान सामने आने से बचेंगे. और इस तरह से एक बड़े पैमाने पर काले धन का सफाया हो जायेगा.
लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट हमें कुछ और ही बताती है.
आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार 15.44 लाख करोड़ में से 15.28 लाख करोड़ 30 जून तक बैंकों में वापस जमाकराये जा चुके थे. मतलब यह कि 99% बन किये गए 500 और 1000 रुपये के नोट बैंकों में जमा किये जा चुके हैं. याने अगर काला धन देश में 500 और 1000 के नोटों की शक्ल में था भी तो वह बड़े आराम से बैंकों में वापस जमा हो चुका है.
ऐसा कैसे हुआ?
इसका एक बड़ा ही आसान सा जवाब है – जिनके पास कैश में काला धन था उन्होंने उसे बैंकों में जमा करने के लिए किसी दुसरे व्यक्ति को ढूंढ निकाला.
जहाँ तक नकली नोट पकड़ने का सवाल है इस मामले में भी कुछ खास हासिल होता नजर नहीं आता. आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष (नोटबंदी का साल) में यानी 31 मार्च 2017 तक 500 और 1000 रुपये के कुल 573891 नोट बरामद किये गए. जबकि इससे पिछले साल याने अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2016 के बीच पकडे गए 500 और 1000 रुपये के नकली नोटों की संख्या 404794, यानी कुछ खास फर्क नहीं और ऐसा बिना डिमॉनेटाइजेशन के हो गया था.
नतीजा? नोटबंदी अपने दोनों मुख्य उद्देश्यों – काला धन पकड़ना और नकली नोट पकड़ना – में नाकाम साबित हुई है.
मजे की बात यह कि सरकार के पास कोई अनुमान भी नहीं था कि कुल कितना काला धन कैश में मौजूद है. यह खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने १६ दिसंबर को संसद में स्वीकार किया था. हालांकि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के छापों के आधार पर कहा जा सकता है कि काला धन रखने वाले अपनी कुल अघोषित आय का ५ % ही कैश के रूप में रखते हैं.
खैर, मूल रूप से नकद लें दें पर आधारित भारत की अर्थव्यवस्था नोटबंदी बुरी तरह से प्रभावित हुई.
सबसे ज्यादा प्रभाव कृषि क्षेत्र और लघु उद्योग धंधों पर पड़ा. बहुत से राज्यों मं तो अगले साल किसानों का लोन माफ़ करने तक की नौबत आ गयी.
जहाँ तक मोदी सरकार का सवाल है उसने न तो अभी तक नोटबंदी को लेकर अपनी असफलता को स्वीकार किया है और आगे भी ऐसी उम्मीद करना बेमानी ही होगा.
रही बात काले धन को काबू करने के लिए नोटबंदी करने की तो इतना जान लेना काफी होगा कि आज तक किसी भी मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देश ने नोटबंदी जैसा कदम नहीं उठाया है.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को कितना नुक्सान पहुंचा है इस का सही आंकलन अभी बाकी है.