Masur ki dal kyon nahin khani chahiye?
हमारे धर्मशास्त्रों के अनुसार कुछ चीजों को त्याज्य माना गया है। माना जाता है कि सात्विक भोजन लेने से साधक का ध्यान साधना से नहीं भटकता है। लहसुन व प्याज की तरह मसूर की दाल को भी तामसिक भोजन माना गया है। माना जाता है कि तामसिक चीजों के सेवन से कामवासना और क्रोध बढ़ता है।
मसूर की दाल के सेवन को धर्म शास्त्रों के अनुसार वर्जित माना गया है। दरअसल इससे जुड़ी एक कथा के अनुसार मसूर की दाल कामधेनु के रक्त का रूप मानी गई हैं। इसीलिए पूजा में मां काली को विशेष रूप से मसूर की दाल अर्पित की जाती है। कथा के अनुसार जमदग्रि ऋृशि के पास कामधेनु गाय थी। जिसे सहस्त्रार्जुन ने आश्रम से ले जाना चाहा और उसने इसी कोषिष में कामधेनु को कुछ तीर मारे और जब उन तीरों से घायल कामधेनु का रक्त जमीन पर गिरा तो मसूर की दाल का पौधा उत्पन्न हुआ। इसीलिए हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार मसूर की दाल का सेवन अच्छा नहीं माना गया है।
आयुर्वेद में हालाँकि मसूर की दाल को पौष्टिक माना गया है और अनेकों फायदे बताये गए हैं.
मसूर के औषधीय गुण –
- मसूर की दाल को जलाकर, उसकी भस्म बना लें, इस भस्म को दांतों पर रगड़ने से दांतो के सभी रोग दूर होते हैं।
- मसूर के आटे में घी तथा दूध मिलाकर,सात दिन तक चेहरे पर लेप करने से झाइयां खत्म होती हैं।
- मसूर के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से गले की सूजन तथा दर्द में लाभ होता है ।
- मसूर की दाल का सूप बनाकर पीने से आंतों से सम्बंधित रोगों में लाभ होता है ।
- चेहरे के दाग-धब्बे को हटाने के लिए मसूर की दाल और बरगद के पेड़ की नर्म पत्तियां पीसकर लेप करें
मसूर में कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, सल्फर, क्लोरीन, आयोडीन, एल्युमीनियम, कॉपर, जिंक, प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट एवं विटामिन डी आदि तत्व पाये जाते हैं।
मसूर दाल की प्रकृति गर्म, शुष्क, रक्तवर्द्धक एवं रक्त में गाढ़ापन लाने वाली होती है। इस दाल को खाने से बहुत शक्ति मिलती है। दस्त, बहुमूत्र, प्रदर, कब्ज व अनियमित पाचन क्रिया में मसूर की दाल का सेवन लाभकारी होता है। सौदर्य के हिसाब से भी यह दाल बहुत उपयोगी है।