Dining table par kyon nahin khana chahiye?
भोजन या खाना हमारे जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं में से एक है। हमारी हिन्दू संस्कृति में अन्न को देवता माना जाता है। इसीलिए भोजन का सम्मान किया जाता है। प्राचीन समय में इसीलिए भोजन को बाजोट यानी लड़की के पाटा पर रखकर ग्रहण किया जाता था।
इसका कारण भी भोजन के प्रति की भावना रखना ही था। इसीलिए जब कभी किसी खाने के बर्तन पर अगर गलती से पैर लग जाता है तो कहां जाता है कि भोजन से क्षमा याचना करना चाहिए।
इसके अलावा हमारे यहां खाने की थाली में हाथ धोना भी उचित नहीं माना जाता है। जैन धर्म में तो भोजन के हर एक दाने को इतना सम्मान दिया जाता है कि इस धर्म के कई लोग थाली को धोकर पी लेते हैं। हिन्दू धर्म के भी कई लोग इसका पालन करते हैं। शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भोजन की थाली में हाथ धोने से मां लक्ष्मी नाराज हो जाती है और दरिद्रता आती है। चूंकि हमारी संस्कृति में अन्न को देवता माना जाता है। इसलिए कहा जाता है कि भोजन की थाली में हाथ धोने से अन्न देवता का अपमान होता है।
दरअसल, इस मान्यता का मुख्य कारण यही है कि सभी भोजन के हर एक दाने का सम्मान करें और उसकी अहमियत को समझें। भोजन का एक दाना भी व्यर्थ नहीं जाए। भोजन शांत चित से भगवान का प्रसाद समझ कर ग्रहण करना चाहिए। इसीलिए भोजन करने के पूर्व निम्न मंत्र बोलना चाहिए।
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण बल्लभे।
ज्ञानवैराज्ञ सिद्ध्यर्थम् भिक्षां देहि च पार्वति।।
वैज्ञानिक कारण यह है कि सुखासन में बैठकर खाना खाने से खाना शीघ्र ही पच जाता है। इससे चेहरे का तेज भी बढ़ता है। जबकि डायनिंग टेबल पर खाने से भोजन ठीक से नहीं पचता है जिसके कारण अनेक बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इसीलिए डायनिंग टेबल पर भोजन करना उचित नहीं माना गया है।