Lahsun aur pyaj kyon nahin khana chahiye?
अक्सर कई संप्रदायों में देखा जाता है कि कई लोग लहसून प्याज को भोजन में इस्तेमाल नहीं करते हैं। जैन समाज, वैष्णव संप्रदाय इन दोनों तरह के समाजों में यह अधिकतर पाया जाता है। लहसुन और प्याज से परहेज किया जाता है। क्यों इसे खाने में उपयोग करने से बचा जाता है? क्यों इन्हें संन्यासियों के भोजन में भी जगह नहीं मिलती?
वास्तव में लहसुन और प्याज कोई शापित या धर्म के विरूद्ध नहीं हैं। इनकी तासीर या गुणों के कारण ही इनका त्याग किया गया है।
लहसुन और प्याज दोनों ही गर्म तासीर के होते हैं। ये शरीर में गर्मी पैदा करते हैं। इसलिए इन्हें तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा गया है। दोनों ही अपना असर गर्मी के रूप में दिखाते हैं, शरीर को गर्मी देते हैं जिससे व्यक्ति की काम वासना में बढ़ोत्तरी होती है। ऐसे में उसका मन अध्यात्म से भटक जाता है।
अध्यात्म और भक्ति में मन को एकाग्र करने के लिए वासना से दूर होना जरूरी होता है। केवल लहसुन प्याज ही नहीं, वैष्णव और जैन समाज ऐसी सभी चीजों से परहेज करते हैं, जिससे कि शरीर या मन में किसी तरह की तामसिक प्रवृत्ति को बढ़ावा मिले।
अमूमन ऐसा सुना जाता है कि विधवाओं को लहसुन-प्याज नहीं खाने चाहिए। क्योंकि ये हार्मोंस को प्रभावित करते हैं। ये काम के लिए प्रेरित करते हैं और व्यक्ति के भीतर कामेच्छा बढ़ाते हैं, इसलिए विधवाओं के लिए लहसुन और प्याज का सेवन करना वर्जित कहा गया है।
विदेशों में भी है चर्चित:
प्राचीन मिस्त्र के पुरोहित प्याज और लहसुन को नहीं खाते थे। चीन में रहने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायी भी इन कंद सब्जियों को खाना पसंद नहीं करते। हिंदू धर्म के आधार यानी वेदों में उल्लेखित है कि प्याज और लहसुन जैसी कंदमूल सब्जियां निचले दर्जे की भावनाओं जैसे जुनून, उत्तजेना और अज्ञानता को बढ़ावा देती हैं।
चीन और जापान में रहने वाले बौद्ध धर्म के लोगों ने कभी इसे अपने धार्मिक रिवाजों का हिस्सा नहीं बनाया। जापान के प्राचीन खाने में कभी भी लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता था।
प्याज और लहसुन से जुड़ी पौराणिक कथा:
प्याज और लहसुन ना खाए जाने के पीछे सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा यह है कि समुद्रमंथन से निकले अमृत को, मोहिनी रूप धरे विष्णु भगवान जब देवताओं में बांट रहे थे तभी दो राक्षस राहू और केतू भी वहीं आकर बैठ गए। भगवान ने उन्हें भी देवता समझकर अमृत की बूंदे दे दीं। लेकिन तभी उन्हें सूर्य व चंद्रमा ने बताया कि यह दोनों राक्षस हैं। भगवान विष्णु ने तुरंत उन दोनों के सिर धड़ से अलग कर दिए।
इस समय तक अमृत उनके गले से नीचे नहीं उतर पाया था और चूंकि उनके शरीरों में अमृत नहीं पहुंचा था, वो उसी समय ज़मीन पर गिरकर नष्ट हो गए। लेकिन राहू और केतु के मुख में अमृत पहुंच चुका था इसलिए दोनों राक्षसो के मुख अमर हो गए (यहीं कारण है कि आज भी राहू और केतू के सिर्फ सिरों को ज़िन्दा माना जाता है)। पर भगवान विष्णु द्वारा राहू और केतू के सिर काटे जाने पर उनके कटे सिरों से अमृत की कुछ बूंदे ज़मीन पर गिर गईं जिनसे प्याज और लहसुन उपजे। चूंकि यह दोनों सब्ज़िया अमृत की बूंदों से उपजी हैं इसलिए यह रोगों और रोगाणुओं को नष्ट करने में अमृत समान होती हैं पर क्योंकि यह राक्षसों के मुख से होकर गिरी हैं इसलिए इनमें तेज़ गंध है और ये अपवित्र हैं
आयुर्वेद में प्याज-लहसुन:
भारत के प्राचीन औषधि विज्ञान आर्युवेद में भोज्य पदार्थो को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है- सात्विक, राजसिक और तामसिक। अच्छाई और सादगी को बढ़ावा देने वाले भोज्य पदार्थ, जुनून और उत्तेजना बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थ और तामसिक यानि अज्ञानता या दुर्गुण बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थ।प्याज और लहसुन राजसिक भोजन के भाग हैं जो लक्ष्य सिद्धि, साधना और भगवद् भक्ति में बाधा डालते हैं इसलिए लोग इन्हें खाना पसंद नहीं करते।
हांलाकि यह भी सच है कि वनस्पति विज्ञान के अनुसार एलियम कुल की ये सब्ज़ियां रोग प्रतिरोधक क्षमता भी देती हैं। प्याज जहां गर्मी के लिए अच्छा होता है वहीं लहसुन में अत्यधिक एंटीबायोटिक गुण होते हैं।