Kya Ye Sach Hai Ki Sri Krishan The 64 Kalaon Ke Mahir? Batate Hai Apko Sacchai
पौराणिक कथाओं के अनुसार शिक्षा ग्रहण करने के लिए श्रीकृष्ण अवंतिपुर (उज्जैन) अपने गुरु संदीपनि के आश्रम में गए थे। वहां वे 64 दिन तक रहे थे और कहा जाता है इन 64 दिनों में उन्होंने 64 कलाओं में महारथ हासिल की थी।
भगवान कृष्ण स्वयं विष्णु जी के अवतार थे, इसलिए वे सभी कलाएं उन्हें भली-भांति आती थीं, लेकिन अपने गुरु के सानिध्य में रहना और उनका मान रखने के लिए कलाओं का सीखना भी उनकी एक कला थे। चलिए उन 64 कलाओं के बारे में जानें, जिनमें भगवान कृष्ण को महारथ हासिल थी।
भगवान कृष्ण नृत्य, गायन, तरह—तरह के वाद्य यंत्र बजाने, नाट्य, जादू, नाटक की रचना, इत्र बनाना बहुत अच्छी तरह जानते थे।
फूलों के आभूषणों से श्रृंगार, बेताल को वश में रखना, बच्चों का खेल, विजय प्राप्त करने वाली विद्या, मंत्र विद्या।
शकुन-अपशकुन, प्रश्नोत्तर में शुभ-अशुभ बताना, रत्नों को भिन्न-भिन्ना आकारों में काटना।
विभिन्न प्रकार के मातृका यंत्र बनाना, सांकेतिक भाषा बनाना, जल को बांधना, बेल-बूटे बनाना, चावल और फूलों से पूजा की सामग्री बनाना, फूलों की सेज बनाना, पक्षियों की बोलियां बोलना और समझना।
वृक्षों की चिकित्सा, भेड़, मूर्गा, बटेर आदि को लड़ाना, उच्चाटन की विधि, घर बनाने की करीगरी, गलीचे-दरियां बनाना, बढ़ई की काम, बेंत से लकड़ी का सामान बनाना, बाण बनाना।
विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ, व्यंजन, मिठाई बनाने में निपुण थे भगवान कृष्ण इसके अलावा हाथ की कारीगरी में भी माहिर थे।
अलग-अलग वेष धारण करना, पेय पदार्थ बनाना, द्युत क्रिया, कपड़े और गहने बनाने के अलावा वे समस्त छंदों के ज्ञाता भी थे।