Kya Sach Mein Sri Krishna Ne Boye The Zameen Mein Moti?
राधा के बिना कृष्ण का नाम और कृष्ण के बिना राधा का नाम अधूरा ही माना जाता है। ब्रज के बहुत से स्थान आज भी इनकी प्रेम लीला को दर्शाते हैं, कहा जाता हैं ये वो स्थान हैं जहां आज भी दोनों प्रेमी एक दूसरे से मिलने आते हैं।
आज हम आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसे पढ़ने के बाद आपको शायद ये यकीन हो जाएगा कि कृष्ण की राधा बस उनकी प्रेयसी नहीं बल्कि मंगेतर भी थीं।
पुराणों के अनुसार गोवर्धन पर्वत उठाने की घटना के कुछ समय बाद श्रीकृष्ण और राधारानी की सगाई संपन्न हुई थी। सगाई में तोहफे के तौर पर मिले बेशकीमती मोतियों को श्रीकृष्ण ने वहीं जमीन में बो दिया था। तभी से यहां कुछ ऐसे पेड़ उग गए हैं जिनमें से मोती निकलते हैं।
84 कोस की गोवर्धन यात्रा के दौरान लोग लोग आज भी यहां लगे पीलू के पेड़ से मोती बटोरने आते हैं।
यूं तो पीलू के पेड़ ब्रज में अन्य भी कई जगह लगे हैं लेकिन केवल यहीं लगे पीलू के पेड़ पर मोती लगते हैं।
बरसाने में रहने वाले संत-महात्मा भी ये बात कहते हैं कि श्रीकृष्ण और राधा के सांसारिक रिश्ते नहीं थे लेकिन गर्ग संहिता, गौतमी तंत्र के अंतर्गत इस बात का वर्णन है कि उन दोनों का विवाह हुआ था।
गर्ग संहिता के अनुसार राधा और कृष्ण की सगाई के दौरान, राधारानी के पिता वृषभानु ने भगवान कृष्ण को तोहफे में बेशकीमती मोती दिए थे।
इन मोतियों को तोहफे में पाकर वासुदेव बहुत परेशान हो गए, उन्हें ये डर सता रहा था कि कि इतने कीमती मोती वो कैसे संभालेंगे।
श्रीकृष्ण अपने पिता की इस चिंता को भांप गए, उन्होंने अपनी मां से झगड़कर वे मोती ले लिए और कुंड के पास जमीन में गाड़ दिए।
जब नंद बाबा को इस बात का पता चला तो वे अपने पुत्र पर बहुत क्रोधित हुए, उन्होंने कुछ लोगों को वह मोती खोदकर लाने के लिए भेजा।
लेकिन जब वे लोग जमीन को खोदकर मोती लाने के लिए उस स्थान पर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि उस जगह पर पेड़ उग आया है और उस पेड़ पर सुंदर मोती लटक रहे हैं।
तब एक बैलगाड़ी में भरकर मोतियों को नंदबाबा के घर पहुंचाया गया। तब से लेकर अब तक उस कुंड को मोती कुंड के ही नाम से जाना जाता है।
84 कोस की यात्रा करने वाले लोग इस कुंड और कुंड के पास लगे मोतियों के पेड़ को आसानी से देख सकते हैं।
ऐसी घटनाएं अद्भुत होती हैं, ये पौराणिक इतिहास को वर्तमान समय के साथ बड़ी ही खूबसूरती से जोड़ती हैं।