Iss Adivasi Samaj Mein Hazaron Saal Se Hai Sex Education Ki Parampara
सेक्स एजुकेशन एक विवादास्पद विषय है। कुछ लोग हैं जो स्कूली छात्रों को इस तरह की शिक्षा दिए जाने की पैरवी करते हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें यह विचार ही सामाजिक हित के विरुद्ध लगता है।
सेक्स एजुकेशन को मॉडर्न समय में बड़ी हो रही पीढ़ी, जो कि पूरी तरह इंटरनेट और खुलेपन की जकड़ में फंस गई है, के लिए एक बड़ी जरूरत मानी जा रही है। लेकिन अगर वाकई आपको ये लगता है कि सेक्स एजुकेशन मॉडर्न होते समाज में पनप रहा एक मुद्दा है, तो इस विषय पर आपकी जानकारी अधूरी है।
हम जिस सेक्स एजुकेशन के बारे में अक्सर बात करते हैं, उसकी कॉंसेप्ट थ्योरी है लेकिन आधुनिक समाज से कोसों परे आदिवासी लोगों ने पारंपरिक तौर पर अपने बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने की प्रकिया अपना रखी है।
अगर आप ये सोचते हैं कि वो सेक्स एजुकेशन के बारे में उन्हें पढ़ाते हैं तो आप गलत हैं क्योंकि यहां का तरीका थोड़ा अलग है। वे अपने किशोरवय बच्चों को एक साथ रहने की अनुमति देते हैं।
आप इसे एक तरह का लिव-इन कह सकते हैं, लेकिन यह किसी भी तरह से मर्यादा के विरुद्ध नहीं माना जाता। बल्कि ये एक ऐसा लिव-इन रिश्ता होता है जिसका सारा इंतजाम ही समुदाय द्वारा किया जाता है।
आपको लग रहा होगा एक ओर तो हम भारत को रूढ़िवादी करार देते हैं वहीं दूसरी ओर हम एक ऐसे समाज की बात भी कर रहे हैं विवाह से पहले ही एक साथ रहने का चलन एक सामान्य प्रक्रिया है।
यहां हम बात कर रहे हैं बस्तर (छत्तीसगढ़) की आदिवासी जाति मुरिया के विषय में। यहां ना सिर्फ अविवाहित किशोर और किशोरियों को एक साथ रहने की व्यवस्था मुहैया करवाई जाती है बल्कि इस व्यवस्था का पूरी तरह पालन हो, इसका भी ध्यान रखा जाता है।
घोटुल, मिट्टी का बना एक ऐसा स्थान है जो गांव के बाहरी इलाके में बना होता है। मुरिया जनजाति के बच्चे जैसे ही दस वर्ष की उम्र को पार करते हैं वे घोटुल के सदस्य बन जाते हैं।
परिवार वाले अपने किशोरवय लड़का-लकड़ी को घोटुल भेज देते हैं, जहां रहकर वे दुनियावी और पारिवारिक समझ विकसित करते हैं।
घोटुल परंपरा में शामिल लड़कों को चेलिक और लड़कियों को मोतियारी कहा जाता है। इसके अलावा लड़कियों की प्रमुख को बेलोसा और लड़कों के मुखिया को सरदार को कहा जाता है।
आपको बता दें कि घोटुल परंपरा के सदस्यों के जीवन में परिवार के बड़ों और अन्य वयस्कों की भूमिका बस एक सलाहकार तक ही सीमित रह जाती है, जिनका कार्य बच्चों को सफाई, संबंधों और अनुशासन से परिचित करवाते हैं।
घोटुल में केवल वहां के सदस्य और शिक्षक ही प्रवेश कर सकते हैं। हर शाम वहां नगाड़ों की आवाज गूंजती है, जो इस बात का संकेत है कि अब घोटुल के सदस्यों के मनोरंजन का समय हो गया है।
देर रात तक वहां अतांक्षरी, नाच-गाना, एक दूसरे को छेड़ना, आदि चलता रहता है। वहां सभी के लिए तंबाकू का भी प्रबंध किया जाता है।
यहां बच्चों को बांस की कंघियां और पत्तों का सामान बनाना सिखाया जाता है। ये बच्चों का होमवर्क भी होता है, जिसे नियमित तौर पर जांचा जाता है।
मुरिया समुदाय का कोई संस्कार हो, उसमें घोटुल के सदस्य अवश्य शामिल किए जाते हैं। ऐसा करने के पीछे का उद्देश्य बच्चों को उनके समुदाय के हर संस्कार से परिचित करवाना है।
कहा जाता है घोटुल एक ऐसा स्थान है जहां दिल मिलते हैं, जिन लोगों को रोमांस या प्रेम में बिल्कुल आनंद नहीं आता, उनके लिए घोटुल बहुत उबाऊ जगह है।
घोटुल में फ्लर्ट करना एक सामान्य प्रक्रिया है। अकसर इसकी शुरुआत लड़कियों द्वारा ही की जाती है।
अगर लड़की को कोई लड़का पसंद आ जाता है तो वे उस लड़के की कंघी लेकर भाग जाती है। फ्लर्ट के बाद अगर यह संबंध आगे भी बढ़ जाए तो इसे गलत नहीं बल्कि परंपरा ही माना जाता है।
घोटुल के सदस्यों के बीच अगर शारीरिक संबंध स्थापित होते हैं तो इसे गलत या मर्यादा के विरुद्ध ना मानकर पुण्य कृत्य माना जाता है।
ऐसा समझा जाता है कि ये किशोरों का पारिवारिक जीवन की ओर पहला कदम है। वे अब एक-दूसरे के साथ रहना सीख रहे हैं।
लेकिन अगर घोटुल का कोई भी सदस्य, विपरीत लिंग के किसी अन्य विशिष्ट सदस्य पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देता है तो इसे गलत माना जाता है। क्योंकि ये सभी को बराबर समझने और व्यवहार करने का स्थान है।
अगर आप ये समझने लगे हैं कि इस समुदाय के लोगों में शारीरिक संबंध कभी भी किसी से भी बनाए जाना एक आम बात है तो आपको बता दें कि मुरिया समुदाय के लोग विवाहित संबंधों को बहुत महत्व देते हैं।
शादी से पहले ये लोग भले ही कितने लोगों के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करें, लेकिन विवाह होने के बाद अगर कोई महिला-पुरुष किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध बनाते हैं तो इसके लिए कठोर दंड देने का प्रावधान भी है।
वैसे भी भारत में युवागृहों का इतिहास काफी पुराना है, जहां विवाह पूर्व किशोरवय बच्चे एक साथ रहकर पारिवारिक जीवन की समझ विकसित करते हैं।
लेकिन अब छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासियों के बीच सदियों से अपनाई जाती रही घोटुल परंपरा अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। इसका एक कारण राज्य में माओवादियों का आतंक है तो दूसरे समाज की “नैतिकता” भी इसके आड़े आ रही है।
अब आप जरूर ये सोच रहे हैं कि जिस सेक्स एजुकेशन को लेकर इतना बखेड़ा होता रहा है और आज भी होता है, वो तो छत्तीसगढ़ की इस आदिवासी प्रथा के सामने खुद ही रूढ़िवादी है।