भगवान ने मानव को अनुपम शरीर दिया है जिसमें भगवान अंश के रूप में निवास करता है। इस तरह शरीर एक पवित्र मंदिर है। अतः इसको पवित्र, स्वच्छ एवं स्वस्थ बनाये रखना हमारा धर्म है।
कहावत है- ‘पहला सुख निरोगी काया’। जो इंसान स्वस्थ है वहीं सांसारिक सुखों का आनन्द उठा सकता है। रोगी या कमजोर व्यक्ति न तो अच्छा खा सकता है, न घूम सकता है, न ही उसका किसी काम को करने में मन लगता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिये पौष्टिक आहार एवं उचित व्यायाम बहुत जरूरी है।
अपनी आयु तथा रूचि के अनुसार हर व्यक्ति को व्यायाम करना चाहिये। सुबह और शाम तेज चलना, दौड़ लगाना, बैडमिंटन क्रिकेट-हाकी खेलना और तैरना आदि भी व्यायाम का ही एक रूप है। यूं तो दण्ड बैठक लगाना और कसरत करने को ही व्यायाम समझा जाता है। आजकल योग की लोकप्रियता भी बढ़ती जा रही है। लोग व्यायामशाला जिम जाकर तरह तरह की ऐरोबिक्स और यन्त्रों पर अनेक प्रकारा की कसरतें करते हैं।
व्यायाम सदैव खुली जगह खाली पेट करना चाहिये। अपनी शारीरिक क्षमता के अनुरूप ही व्यायाम करना चाहिये। क्षमता से अधिक व्यायाम नुकसानदेह होता है। रोगी व्यक्ति को डाक्टर की सलाह पर ही व्यायाम करना चाहिये।
व्यायाम करने से हमारा रक्त संचार बढ़ जाता है। उससे शरीर पुष्ट बनता है। व्यायाम के पहले हल्की तेल मालिश करने से अधिक लाभ होता है। व्यायाम के एकदम बाद पानी नहीं पीना चाहिये और तुरन्त बाद स्नान भी नहीं करना चाहिये। बन्द कमरे में एवं तंग कपड़ों में व्यायाम नहीं करना चाहिये।
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिषक निवास करता है। अतः जीवन में हर प्रकार की उन्नति के लिये व्यायाम करना जरूरी है।