‘बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रूपैया’ – यहाँ मेरी बात हो रही है मैं हूँ रूपया- चमकदार गोल! मुझे देखकर हर एक की आँखों में चमक आ जाती है। हर व्यक्ति मुझे प्राप्त करने की ललक रखता है।
दुनिया के सभी कामों की धुरी में मैं ही हूँ। सब कामों का प्रारम्भ और प्रयोजन रूपया ही है। ये पूरा संसार मेरे लिये ही दौड़ धूप में लगा है। सारी मेहनत, पूजा पाठ मुझे प्राप्त करने के लिये ही किया जाता है। दुनिया भर की चोरियाँ, डकैती, बेईमानी और धोखेबाजी के आधे से अधिक मुकदमों के पीछे पैसा ही तो है। मुझे पाकर कोई संतुष्ट नहीं होता। सभी को धन की देवी लक्ष्मी की अत्यधिक लालसा नही रहती है। उनकी पूजा दीपावली के दिन की जाती है। उनके साथ चित्र में ही मैं दिखायी पड़ता हूँ।
जैसा कि मैंने बताया- मेरा नाम है ‘रूपया’। बच्चे, बूढ़े, जवान सभी मुझे चाहते हैं। मेरा यह रूप टकसाल में दिया गया। पहले धातु के रूप में मैं धरती के गर्भ में दबा था। श्रमिकों ने मुझे खोद कर निकाला और यहाँ लाये। टकसाल में सभी धातुओं के साथ चाँदी को भी गलाया। बहुत पहले रूपया चमड़े का बनाया जाता था। फिर शुद्ध चाँदी का बनने लगा। पहले तो स्वर्ण मुद्रायें भी बनती थीं। हाँ, तो मैं बता रहा था कि कई धातुओं के साथ मिश्रित करके अब मुझे रूपये के आकार में ढाला जाता है। फिर मुझ पर भारतीय मुद्रा अंकित कर दी जाती है और मैं बन जाता हूँ चमकीला गोल गोल रूपया। चाँद से चमकीला, सभी की आँखों का तारा मैं ‘रूपया’।
तुम सब मुझे पाने के लिये कितनी मेहनत करते हो! रात दिन काम, आफिस में, कारखाने में, बाजार में, दुकान में सभी का लक्ष्य मुझे पाना है। दुनिया में सभी काम मेरे माध्यम से ही सम्पन्न होते हैं तभी तो सबको मेरी जरूरत है।
बैंकों में मुझे नया नया देखा जा सकता है। पुराना होने पर टूट फूट जाता हूँ तो सभी खोटा सिक्का कहते हैं। तुम कभी मुझे तोड़ना फाड़ना नहीं, अच्छा!