हमारे देश की राजधानी दिल्ली नवीन और पुरातन कलाओं का मिश्रण है। यहाँ आधुनिक कला निर्माण की प्रतीक ऊँची ऊँची इमारतें और आधुनिकता की प्रतीक धड़ धड़ दौड़ती मैट्रो आकर्षण का केन्द्र है। वहीं इसमें कई ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल भी है।
लाल किला एक ऐतिहासिक स्मारक है। सन् 1638 में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने यह किला बनवाया था। लाल पत्थरों से बना होने के कारण यह लाल किला कहलाता है। लाल किला यमुना के बाएँ तट पर चाँदनी चौंक के सामने स्थित है।
शाहजहाँ ने इसे बनाने पर लाखों रूपये खर्च किये। लाल किले के निर्माण में नौ वर्ष लगे। यह किला मुगल शासकों द्वारा निर्मित सुन्दर भवनों, स्मारकों एवं उद्यानों की एक कड़ी है।
लाल किले में कई सुन्दर भवन हैं। चाँदनी चौंक की ओर से मुख्य दरवाजे में प्रवेश करने पर भीतर बाजार है। बाजार के सामने ‘दीवाने आम’ है। मुगल बादशाह यहीं पर जनता की फरियाद सुनते थे। इसके पीछे ‘दीवाने खास’ है। जहाँ बादशाह अपने मंत्रियों से बातचीत करते थे। किले के सभी हिस्सों का अपना अलग अलग महत्व एवं सौन्दर्य है। किले के बीचों बीच एक छोटी सी नहर है। उसमें फव्वारे लगे हुये हैं। आस पास सभी जगह सुन्दर फूलों की क्यारियाँ हैं।
लाल किले में एक दर्शनीय संग्रहालय भी है। जिसमें मुगल शासकों द्वारा प्रयोग किये गये वस्त्र, वस्तुयें एवं शास्त्र अस्त्रों को रखा गया है। विश्व का प्रसिद्ध तख्त ए ताऊस (मयूर सिंहासन) ‘दीवाने खास’ में रखा गया था।
प्रतिदिन सैकड़ों देशी विदेशी पर्यटक लाल किला देखने आते हैं। लाल किला हमारे इतिहास और स्मृतियों से जुड़ा है। आजाद हिन्द फौज पर मुकद्मा यहीं चलाया गया था। 15 अगस्त 1947 के दिन भारत का पहला स्वतंत्रता दिवस इसी लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर मनाया गया। प्रत्येक वर्ष यहीं पर स्वतंत्रता दिवस समारोह आयोजित होता है जिसमें प्रधानमंत्री ध्वज फहराते हैं। लाल किला हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है।