महात्मा गौतम बुद्ध पर लेख
महात्मा बुद्ध शान्ति और अहिंसा के दूत बनकर इस पृथ्वी पर आये। उस समय पूरा भारत हिंसा, अशांति, अंधविश्वास, अधर्म और रूढ़िवादिता के बन्धनों में बंधा हुआ था। महात्मा बुद्ध एक युग प्रवर्तक के रूप में आये जिन्होंने न केवल भारत में, अपितु विश्व के अनेक देशों में अपने ज्ञान की ज्योति जलायी। इसीलिये उन्हें ‘लाइट आफ एशिया’ भी कहा जाता है।
महात्मा बुद्ध का जन्म सन 569 पूर्व लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था। वे कपिलवस्तु के राजा शद्धोधन के पुत्र थे। उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। जन्म के समय ही विद्धान ज्योतिषियों ने आगे चल कर उनके महान संत अथवा एक महान सम्राट बनने की भविष्यवाणी कर दी थी। इनके पिता इन्हें एक चक्रवर्ती सम्राट बनाना चाहते थे। राजा शुद्धोधन ने उन्हें राजसी ठाट बाट की सभी सुख सुविधाएं महल में ही प्रदान कर दी थीं। उनका विवाह यशोधरा नामक सुन्दर राजकुमारी से किया। जिससे ‘राहुल’ नामक एक सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ।
सिद्धार्थ का मन अपने आस पास की घटनाओं से बहुत प्रभावित हुआ। उन्होंने बूढ़े, बीमार एवं मृत व्यक्तियों को देखने के बाद यह अनुभव किया कि जीवन का सुख भौतिक पदार्थों के उपभोग में नहीं है। एक रात वह अपनी पत्नी एवं पुत्र को सोता छोड़ घर से निकल गये। उस समय उनकी आयु मात्र 29 वर्ष की थी।
उन्होंने अपने राजसी वस्त्रों को त्याग संन्यास ले लिया। कई वर्षों तक वह गहन तपस्या व साधना में लीन रहे। निरंजना नदी के तट पर एक पीपल के वृक्ष के नीचे उन्होंने समाधि लगायी। वहीं उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और वैषाख शुक्ल पूर्णिमा के शुभ दिन वह गौतम से बुद्ध बन गये।
सारनाथ में उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया। बुद्ध के प्रवचन से लोग बहुत प्रभावित हुये। धीरे धीरे राजा महाराजा, सेठ साहूकार और जनसाधारण बुद्ध धर्म की अच्छाइयों को मानने लगे। बुद्ध ने पालि भाषा में अहिंसा, सत्य, करूणा आदि की शिक्षा दी। वह वस्तुओं का सग्रंह करने को पाप समझते थे।
विश्व में बौद्ध धर्म के अनुयायी देशों की संख्या बहुत अधिक है। सम्राट अशोक ने बुद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में बहुत योगदान दिया था। अतः हमें भी अपने जीवन में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को अनुकरण करना चाहिए और सत्य, अहिंसा एवं करूणा को अपने जीवन में स्थान देना चाहिए।