सह शिक्षा से तात्पर्य है- लड़कियों तथा लड़कों का एक साथ पढ़ना। आधुनिक युग में जहां लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर सकने में सक्ष हैं, उन्हें शिक्षा के अधिकार से वचिंत नहीं रखा जा सकता।
हमारा देश एक विकासशील देश है। इसके सीमित साधनों में लड़कियों व लड़कों के लिये अलग अलग विद्यालय अथवा प्रशिक्षण केन्द्रों की व्यवस्था करना एक महंगा कार्य है। लड़कियों को पढ़ाने के लिये प्रोत्साहित व अतिरिक्त खर्चों को वहन करने से ही सह शिक्षा का महत्व बढ़ता है।
सह शिक्षा में छात्र छात्राएं एक साथ पढ़ते लिखते और मेलजोल बढ़ाते हैं। उनको एक दूसरे को समझने का पूर्ण अवसर मिलता है, जो उनके भावी जीवन में सहायक बनता है।
सह शिक्षा का प्रचलन पष्चिमी शिक्षा और सभ्यता की दने है। आज हर विकसित और विकासशील देश में इसका प्रचलन है। प्राचीन भारत में लड़के एवं लड़कियों को गुरूकुल में रखकर अलग अलग पढ़ाया जाता था। जहां चरित्र निर्माण पर अत्यधिक बल दिया जाता था। आधुनिक युग में परिस्थितियों के साथ साथ चरित्र और आचरण के अर्थों में परिवर्तन आया है। बदलते युग की समस्याओं को सुलझाने और उनका सामना करने के लिए युवा वर्ग का जागरूक होना और एकजुट होना जरूरी है। देश की प्रगति के लिये लड़के और लड़कियों की मानसिकता में विकास और उनकी बराबर की शिक्षा बहुत जरूरी है।
कुछ पुरातन पंथी लोग सहशिक्षा का विरोध करते हैं। उनके अनुसार लड़के और लड़कियों के साथ साथ पढ़ने और उठने बैठने से चरित्र और समाज की मर्यादाओं का हनन सम्भव है। पर सत्य इसके विपरीत है। दूरी आकर्षण बढ़ाती है और वातावरण में खुलापन लाने की अपेक्षा छुप छुप कर मिलने और अन्य बुराइयों का कारण बनती है। अतः हमें सचेत रहकर सह शिक्षा को ही प्रोत्साहित करना चाहिये।
सह शिक्षा आधुनिक युग की मांग है जिससे नागरिकों और देश का चौमुखी विकास संभव है।