विज्ञान ने मानव के स्वप्नों को साकार कर दिया है। जो जो इंसान सोचता गया, विज्ञान उसे उपलब्ध कराता गया। बीसवीं सदी में मानव आकाश में भी उड़ने लगा।
पक्षियों को आकाश में विचरण करते देख इंसान ईर्ष्या करता था, उन्हें हवा में उड़ते देख आहें भरता था। पर राइट ब्रदर्स ने उड़ने का रास्ता निकाल ही लिया। दोनों राइट भाईयों के अनवरत प्रयासों का ही फल है कि आज हम आकाश का सीना चीर थोड़े समय में कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं।
1903 में बना पहला विमान बहुत छोटा था। उसमें केवल दो ही लोग बैठ सकते थे। इसके बाद नित नयी तकनीकों का विकास होता गया और बड़े बड़े विमान बनते गये। प्रारम्भ में केवल 30-32 लोग ही विमान में बैठ सकते थे, पर अब तो बहुत बड़े बड़े विमान बनने लगे हैं जिनमें 300 से 1000 यात्री तक बैठ सकते हैं। न केवल वायुयानों के आकार अपितु उनकी गति में भी वृद्धि हो गयी है। वायुयान की गति प्राय 450 कि.मी. प्रति घंटा से लेकर 1800 कि.मी. प्रति घंटा तक बढ़ गयी है।
वायुयान कई प्रकार के होते हैं। यात्री वायुयान, सैनिक अर्थात् युद्ध में काम आने वाले वायुयान तथा सामान लाने व ले जाने वाले वायुयान। विज्ञान और तकनीक ने ऐसे वायुयानों का भी निर्माण कर लिया है जो जल तथा वायु में समान रूप से चलाये जा सकते हैं।
सामान्य चील की शक्त के वायुयानों में हवा को काटने के लिये सामने एक पंखा लगा होता है। अन्दर चालक की सीट तथा यात्रियों के बैठने की बढ़िया सीटें होती हैं। वायुयान जहाज की बाडी मजबूत वह हल्की धातुओं से बनी होती है।
निजी विमान छोटे होते हैं जिसमें केवल दो लोग बैठ सकते हैं। यह बहुत महँगा होता है। इसमे सफर करना आम आदमी के बस की बात नहीं है। मगर हवाई जहाज में यात्रा करना अब कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। कई प्राइवेट विमान कम्पनियों ने अपने किराये इतने कम कर दिये हैं कि आम आदमी भी अब विमान में यात्रा कर सकता है।
वर्तमान युग में वायुयानों का अत्यधिक महत्व है। इनकी वजह से सभी देश एक सूत्र में बंध गए हैं। ऐसा लगता है मानो पूरी धरती एक संयुक्त परिवार ही तरह है।