किसी नगर में एक धनवान व्यक्ति रहता था। उसके पास अपार भू-सम्पति थी। परंतु वह बेहद कंजूस था। पदार्थों में सबसे कीमती पदार्थ सोना तो उसे बेहद प्रिय था। सोने की यह प्यास उसमें इतनी बढ़ी कि उसने अपनी जमीन जायदाद बेचकर सोने के सिक्के खरीद लिए। उसने सभी सोने के सिक्कों को एक संदूक में भर लिया। इसके बाद रात के अंधेरे में उसने वह सोने से भरा संदूक जमीन में गाड़ दिया ।
कुछ दिन बाद धनवान उस सोने से भरे संदूक को लेकर बहुत चिंतित रहने लगा। वह प्रतिदिन उस स्थान पर जाता, जहां सोने से भरा संदूक गड़ा हुआ था । वह उस स्थान की खुदाई करता और अपनी आंखों से सोने से भरा संदूक देखने के बाद ही घर वापस आता। वह दिन रात केवल सोने के विषय में सोचता रहता। इस सोने के चक्कर में वह अपनी पत्नी अपने बच्चों और यहां तक कि अपना होश तक खो बैठा।
उसका प्रतिदिन उस स्थान पर जाना और भूमि खोदकर सोने से भरा संदूक देखना कई लोगों के मन में संदेह उत्पन्न करने लगा। उन्हीं में एक चोर भी था। एक दिन वह एक पेड़ पर छिपकर बैठ गया और उस धनवान के आने की प्रतीक्षा करने लगा। वह कंजूस रात के अंधेरे में उस स्थान पर आया। चारों तरफ उसने ध्यान से देखा और फिर भूमि की खुदाई में जुट गया। जब खुदाई के स्थान पर गडढा बन गया तो कंजूस ने भीतर झांक कर देखा और फिर संतुष्ट होकर उसने गडढा मिट्टी डाल कर बंद किया और अपने घर चला गया।
उस धनवान कंजूस के चले जाने के बाद चोर पेड़ से उतरा। उसने उसी स्थान की खुदाई की और उत्सुकतावश गडढे में झांकने लगा। वहां सोने से भरा संदूक देखकर वह दंग रह गया। उसने झटपट जमीन में से सोने से भरा संदूक बाहर निकाला और लेकर चम्पत हो गया। दूसरे दिन अपनी निश्चित दिनचर्या के अनुसार वह कंजूस व्यक्ति उसी स्थान पर पहुंचा और वहां खुदाई करने लगा। मगर आज उस स्थान पर वह सोने से भरा संदूक नहीं था। वह स्तब्ध रह गया। उसने चारों ओर खूब गहरी खुदाई की। मगर उसके हाथ कुछ नहीं लगा। बहुत देर बाद उसकी समझ में आया कि सोने से भरा संदूक किसी ने चुरा किया था। उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ गई। वह अपने कपड़े फाड़ फाड़कर चीखने चिल्लाने लगा।
उसका रोना देखकर उसका एक पड़ोसी बोला – ”क्यों चिल्ला रहे हो? तुम्हारे पास तो धन था, वह बेकार था। तुम केवल यह कल्पना करते थे कि तुम धनवान हो। अब भी यही कल्पना कर लो। जहां सोना था, वहां एक पत्थर रख लो और सोचते रहो कि सोना पड़ा है। तुम्हारा सोना मिट्टी में दबा बेकार पड़ा था, किसी के काम नहीं आ रहा था तो पत्थर भी वैसा ही है। तुमने तो धन केवल देखने के लिए रख रखा था। जाओ, अब घर जाकर अपने बीवी बच्चों की देखभाल करो। वह सोने से कहीं ज्यादा मूल्यवान है।“
शिक्षा – धन का व्यर्थ संचय न करो।