केंद्रीय सूचना आयोग ने रक्षा मंत्रालय से यह पुछा है कि एडमिरल गोर्शकोव को बढ़ी हुई कीमत पर खरीदने के लिए भारत क्यों राजी हो गया. आखिर क्या कारण है कि सरकार ने एडमिरल गोर्शकोव की 23 गुनी बढ़ी कीमत को मंजूरी दे दी.
आयोग ने सरकार से यह भी खुलासा करने को कहा है कि आखिर भारत ने नए पोत को खरीदने के बजाए उन्नत किये गए पुराने युद्ध पोत को खरीदने का फैसला क्यों लिया.
हालाँकि पोत का नाम बदल कर INS विक्रमादित्य कर दिया गया है परन्तु CIC यह जानना चाहता है कि 2004 में तत्कालीन राजग सरकार ने इसका सौदा 97.4 करोड़ डॉलर में किया था लेकिन 2010 में रूस ने इसकी कीमत बढ़ा कर 2.35 अरब डॉलर कर दी गयी. जो कि पिछले कीमत का 23 गुना है, जिसपर रक्षा मंत्रलय ने 2014 में मजूरी दे दी थी.
आयोग ने सेना को निर्देश दिया कि वह अब 30 वर्ष पुराने हो चुके इस पोत की अंतिम कुल कीमत उन्नत किए जाने पर खर्च, नवीकरण तथा नए सिरे से उसे बनाने पर हुए खर्च का खुलासा करे और यह भी बताए भारत ने इसके लिए कब-कब भुगतान किया।
सूचना आयुक्त के अनुसार नौसेना इसका खुलासा करने कि जिम्मेदारी रक्षा मंत्रालय पर डाल रही जबकि रक्षा मंत्रालय नौसेना को जिम्मेवार ठहरा रहा है.
भट्टाचार्य ने नौसेना को निर्देश दिया कि वह फाइलों का ब्यौरा, संवाद और रूसी पक्ष द्वारा कीमत में बदलाव करने मांग को स्वीकार करने संबंधी दस्तावेजों का खुलासा करे। आयोग का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर जो फाइलें और सूचना दबा कर रखी हैं उनसे बड़ा जनहित जुड़ा हुआ है. आयोग यह जानना चाहता है कि किन कारणों के रूसी पक्ष द्वारा कीमत में बदलाव करने मांग को स्वीकार किया गया.
आपको मालूम हो कि यह मामला सुभाष अग्रवाल द्वारा दायर सूचना के अधिकार आवेदन से सामने आया है जिसमें उन्होंने INS विक्रमादित्य की खरीद से जुडी जानकारियां मांगी थी.