एक चरवाहा था। एक दिन वह हरे-भरे मैदान में अपनी भेड़ें चरा रहा था। तभी उसकी नजर एक भेड़िये के बच्चे पर पड़ी। उसे उस भेड़िये के बच्चे पर दया आ गई। वह उसे उठा कर अपने घर ले आया और उसे किसी बच्चे की तरह पालने-पोसने लगा।
जल्दी ही भेड़िये का बच्चा बड़ा होकर जवान भेड़िया बन गया। अब चरवाहा भेड़िये को अपनी भेड़ों की रक्षा करने के लिए रखवाली पर छोड़ देता और स्वयं जंगल में लकडि़यां बीनने चला जाता। यह सब वह अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए करता।
परंतु कुछ दिनों बाद उसने देखा कि शाम को जब भेड़ों का झुंड घर वापस आता है तो प्रतिदिन उनमें से एक भेड़ काम हो जाती है। इस तरह भेड़ों की संख्या प्रतिदिन कम होती चली जा रही थी।
चरवाहे को इसका कारण समझ में नहीं आया। मगर जब धीरे-धीरे भेड़ों की संख्या घटने लगी तो उसने छुपकर भेड़िये का पीछा करने का निश्चय किया। वह इस रहस्य से परदा उठाने का दृढ़ निश्चय कर चुका था।
उसने एक कुल्हाड़ी ली और भेड़िये का दूर से पीछा करने लगा। भेड़ों का झुंड चरागाह पहुंच गया। चरवाहा वहीं एक पेड़ पर चढ़ कर पत्तों की आड़ में छुप गया। दोपहर के समय भेड़िये ने एक भेड़ को गरदन से पकड़ा और घसीटता हुआ उसी पेड़ के नीचे लाया, जिस पर चरवाहा छुपा हुआ बैठा था।
‘तो यह है रहस्य!’ चरवाहा धीमे स्वर में बड़बड़ाया।
जल्दी ही वह पेड़ से नीचे कूद पड़ा और इसके पहले कि भेड़िया भेड़ को मार डाले, चरवाहे ने कुल्हाड़ी से एक ही वार में उसका गला काट दिया। फिर वह क्रोध भरे स्वर में बोला- ”मैंने तुझे भेड़ों की रखवाली के लिए रखा था, उन्हें खाने के लिए नहीं।“
निष्कर्ष- दुष्ट से भलाई की आशा नहीं करनी चाहिए।