एक घोड़ा पानी पीने के लिए एक नदी पर गया। उस समय नदी में एक जंगली सुअर स्नान कर रहा था। घोड़ा पानी पीने ही वाला था कि सुअर जोर से चिल्लाया- ”अरे ओ मूर्ख! तुम इस नदी से पानी नहीं पी सकते। यह नदी मेरी है।“
इसी बात को लेकर उन दोनों मे झगड़ा होने लगा। तभी उधर से एक आदमी जाता दिखाई दिया। उसके पास तीर-कमान थी। घोड़े ने उस आदमी को रोक कर अपनी परेशानी बताई और कहा कि सुअर एक घमण्डी है और उसे पानी पीने नहीं दे रहा है। उसने उस आदमी से कहा कि वह सुअर को मार दे। उस आदमी ने उत्तर दिया- ”देखो भाई, मैं सुअर को मार तो देता, मगर वह बुरी तरह भाग रहा है। वह निशाने से दूर भी है। मैं उसका पीछा भी नहीं कर सकता, क्योंकि मैं तेज नहीं दौड़ सकता।“
”लेकिन मैं तो दौड़ सकता हूं।“ घोड़ा बोला-”मैं उससे अधिक तेज दौड़ सकता हूं। आओ, जल्दी मेरे ऊपर बैठो। उसका पीछा करते हैं।“
वह आदमी तुरंत घोड़े पर सवार हो गया। घोड़ा सुअर के पीछे दौड़ा। जल्दी ही सुअर तीर के निशाने पर आ गया। आदमी ने तीर कमान पर चढ़ाया और सुअर का निशाना लेकर तीर छोड़ दिया। तीर सुअर को लगा और तुरंत ही उसकी मृत्यु हो गई।
सुअर को मरा हुआ देखकर घोड़ा बहुत प्रसन्न हुआ। मगर घोड़े से अधिक वह आदमी प्रसन्न था। उसे अचानक ही घोड़े की उपयोगिता का पता चल गया था।
उसने घोड़े से कहा- ”मैं सुअर का आभारी हूं कि उसने तुमसे झगड़ा मोल लिया। इस कारण मुझे तुम्हारे ऊपर सवारी करनी पड़ी। तुम बहुत काम के जानवर हो। मैं तुम्हें घर ले जाऊंगा और वहां बांध कर रखूंगा। जब मैं शिकार खेलने जाऊंगा तो तुम्हारे ऊपर बैठ कर शिकार खेलूंगा।“
घोड़ा अब पछताने लगा। बदले की भावना से प्रेरित होकर उसने सुअर पर आदमी से हमला करवाया और स्वयं आदमी का जीवन भर का गुलाम बन बैठा।
निष्कर्ष- शत्रु से बदला लेने के लिए अपने से बलशाली का सहारा मत लो।