अन्यायोपार्जितं वित्तं दशवर्षाणि तिष्ठति । प्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलं तद् विनश्यति॥
लक्ष्मी वैसे ही चंचल होती है परन्तु चोरी, जुआ, अन्याय और धोखा देकर कमाया हुआ धन कभी स्थिर नहीं रहता, वह बहुत शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । अतः व्यक्ति को कभी अन्याय के तरीकों से धन कमाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और न ही ऐसा धन कमाने के बारे में सोचना चाहिए ।
मूर्खाः यत्र न पूज्यन्ते धान्यं यत्र सुसंचितम् । दाम्पत्योः कलहो नास्ति तत्र श्री स्वयमागता॥
जहां मूर्खों का सम्मान नहीं होता, अन्न का भण्डार भरा रहता है और पति-पत्नी में कलह नहीं हो, वहां स्वयं आती है ।
चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चले जीवितमन्दिरे। चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः॥
लक्ष्मी चंचल है, प्राण, जीवन, शरीर सब कुछ चंचल और नाशवान है । संसार में केवल धर्म ही निश्चल है ।
माता च कमला देवी पिता देवो जनार्दनः। बान्धवा विष्णुभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्॥
जिस मनुष्य की माँ लक्ष्मी के समान है, पिता विष्णु के समान है और भाइ – बन्धु विष्णु के भक्त है, उसके लिए अपना घर ही तीनों लोकों के समान है ।