एक पेड़ के नीचे एक सुअरी बैठी थी। सुअरी के साथ उसके छोटे-छोटे बच्चे भी थे। वह अपने बच्चों को दूध पिला रही थी।
तभी उधर से एक लोमड़ी गुजरी। लोमड़ी बहुत चालाक थी। सुअरी तथा उसके नन्हें-नन्हें और कोमल बच्चों को देखक मुंह में पानी आ गया। वह उन बच्चों को बहुत ध्यान से देखते हुए सोचने लगी- ‘काश! मैं इनमें से एक दो खा सकती।’
लोमड़ी को वहां ठिठकर रूकते देखकर सुअरी समझ गई कि दाल में कुछ काला है। यह चालाक लोमड़ी जरूर यहां किसी खास मकसद से रूकी है।
इधर, लोमड़ी सुअरी के बच्चे को खाने के लिए योजना बनाने लगी। थोड़ी देर बाद कुछ सोचकर उसने सुअरी की तरफ अपनी लच्छेदार और चाशनी में लिपटी बातों का जाल फेंका।
”बहन, तुम्हारे बच्चे बहुत सुंदर हैं। कितने प्यारे लग रहे हैं। ये इतने प्यारे हैं कि मेरी तबीयत चाहती है कि मैं यहां बैठी इन्हें देखती रहूं। तुम एक काम क्यों नही करती। इन्हें मेरी निगरानी में छोड़कर कहीं घूमने क्यों नहीं चली जाती?“
सुअरी ने लोमड़ी की बात ध्यान से सुनी और बोली- ”अपना सहयोग देने के लिए तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद बहन! परंतु मुझसे कुछ कहने से पहले मैं चाहती हूं कि तुम स्वयं इस दरियादिली का उदाहरण पेश करो। अपने बच्चों को किसी शेर की निगरानी में छोड़कर घूमने चली जाओ। अगर तुम ऐसा करके दिखा सकते हो तो मेरे बच्चों की देखभाल करने के लिए कभी भी आ सकती हो।“
सुअरी की बातें सुनकर लोमड़ी बोली- ”अरे बहन! मैं ऐसा अवश्य करती यदि मेरे बच्चे होते।“
”तो जाओ, पहले बच्चे पैदा करके मां बनो। उसके बाद अपने बच्चों को किसी दुश्मन के घर छोड़कर जाना। तब तुम्हें पता चलेगा कि अपने बच्चों को कैसे किसी के पास छोड़ जाते हैं।“
यह सुनकर लोमड़ी ने तिरछी नजर से सुअरी को देखा और दुम दबाकर एक और भाग गई।
निष्कर्ष- बेवजह हमदर्दी जताने वालों से सदा सावधान रहना चाहिए।