Bachchon ki Shikshaprad kahani – Sachcha Insaf
एक गांव में बाढ़ आ गई। बाढ़ में निर्धन किसान भोला का सब कुछ नष्ट हो गया। घर ढह गया, फसल उजड़ गई। गाय, बैल बह गए। बेघर बार भोला के सामने परिवार को पालने की समस्या आ खड़ी हुई। उसने निश्चय किया कि वह पड़ोस के गांव में मजदूरी खोजेगा।
मजदूरी मिलने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई। एक दयालु किसान ने उसे खेती के काम के लिए रख लिया। भोला मेहनती तो था ही। उसकी मेहनत से किसान की फसल बहुत अच्छी हुई। किसान ने सोचा यह सब भोला की कड़ी मेहनत का ही नतीजा है। इसलिए उसे भी लाभ का कुछ हिस्सा मिलना चाहिए। उसने भोला को अपने पास बुलाया और कहा, ”भोला तुम्हारी मेहनत से फसल में बहुत लाभ हुआ है। मैं बहुत प्रसन्न हूं। तुम्हें भी इस लाभ का कुछ हिस्सा देना चाहता हूं। तुम उसे अनाज के रूप में चाहते हो या किसी दूसरे रूप में।“
भोला सच में पड़ गया कि क्या मांगे? अनाज ले या कुछ और? उसे ध्यान आया कि मजदूरी में से उसने कुछ रूपये बचाकर रखे हैं, जिनसे कुछ माह तक परिवार का पेट भर सकता है। उसने किसान से कहा, ”आपकी मुझ पर बड़ी कृपा है, लाभ के रूप में आप कुछ देना ही चाह रहे हैं तो खेती के लायक थोड़ी सी जमीन दे दीजिए।“ किसान ने भोला की इच्छा पूरी कर दी।
प्रसन्न भोला अपने गांव के एक धनी किसान के पास पहुंचा और उससे मदद मांगी कि अगर वह हफते भर के लिए बैलों की एक जोड़ी उसे खेत जोतने के लिए दे दे तो उसका बड़ा उपकार होगा। काम खत्म होते ही उसने बैल वापस लौटाने का वादा किया। धनी किसान बड़ा काइयां था, फिर भी उसने तुरंत बैलों की जोड़ी भोला के हवाले कर दी।
भोला ने खेतों की जुताई बुआई कर ली और एक दोपहर वह बैलों को लौटाने गया। धनी किसान उस समय भोजन कर रहा था। उसने भोला से कहा, ”बैलों को उस बाड़े में बांध दो।“ भोला ने वैसा ही किया और अपने घर चला गया।
अभी वह अपने घर पहुंचा ही था कि धनी किसान ने दरवाजा खटखटाया और कहा, ”बैलों की जोड़ी कहां है?“
”वह तो मैं आपके बाड़े में बांध आया हूं।“ भोला ने कहा।
”लेकिन बाड़े में तो बैल नहीं हैं ।“
”मैंने तो बैल आपके सामने ही बांधे थे।“ भोला ने घबराकर कहा।
धनी किसान क्रोधित होकर बोला, ”तुमने बैल बाड़े से बांधे थे, तो क्या उन्हें जमीन खा गई। तुम्हारी नीयत खराब हो गई है भोला। तुम इसी समय राजा के पास चलो। मैं उनसे तुम्हारी बेइमानी की शिकायत करूंगा। तुम्हें सजा दिलवाऊंगा।“
भोला ने उसे विश्वास दिलाने की बहुत कोशिश की। लेकिन धनी किसान न माना। तब दुखी मन से भोला धनी किसान के साथ महल की ओर चल पड़ा।
अभी वह कुछ ही दूर गया था कि रास्ते में तेजी से आते हुए एक घुड़सवार ने उसे अचानक धक्का देकर गिरा दिया। पत्थर से छिलकर भोला का दाहिना कान कट गया। जैसे ही वह सीधा हुआ उसने घुड़सवार को लक्ष्य बनाकर लाठी फेंकी। संयोग से लाठी घोड़े के मर्मस्थल पर लगी घोड़ा छटपटा कर ढेर हो गया। गुस्से से आग बबूला होकर घुड़सवार ने भोला को पकड़ लिया और कहने लगा, ”तुमने मेरे प्यारे घोड़े को मार डाला। मैं तुम्हें राजा से मृत्यु दंड दिलवाऊंगा।“ यह कहकर घुड़सवार भी उनके साथ महल की ओर चल पड़ा।
चलते चलते रात हो गई। उन तीनों ने नगर के बाहर डेरा डाल दिया। वहां कुछ नट भी ठहरे हुए थे। रात में भोला सोने के लिए लेटा तो उसका मन भारी हो उठा। उसने सोचा, ‘दुर्भाग्यवश जो कुछ भी मेरे साथ घटता चला जा रहा है, चाहे उसमें मेरा दोष हो न हो, पर राजा आजन्म कारावास की सजा दिए बिना नहीं मानेगा और जब मैं किसी प्रकार भी अपने परिवार की देखभाल नहीं कर सकता तो भला जीने से क्या फायदा? इससे बेहतर है कि मैं स्वयं फांसी लगाकर मर जाऊं और जीवन का अंत कर लूं। यह निश्चय करते ही वह आहिस्ता से उठा। नटों के सामान में से एक रस्सी निकाली। रस्सी को बरगद की डाल पर फंसाकर फंदा बनाया, फिर फंदा गले में पहनकर लटक गया। भाग्य ने यहां भी उसका साथ नहीं दिया। रस्सी कमजोर थी, टूट गई। वह नीचे सोए हुए नटों के मुखिया पर धड़ाम से जा गिरा। भोला के बोझ तले दबकर नटों का मुखिया मर गया।
नट जाग गए। उन्होंने भोला का पकड़ लिया और निश्चय किया कि वे भी उसे राजा के पास ले जाएंगे और न्याय मांगेंगे।
दूसरे दिन तीनों अभियोगी भोला को रस्सी से जकड़े हुए दरबार पहुंचे। उन्होंने राजा को अपनी अपनी शिकायतें सुनाईं। फिर उनसे प्रार्थना की कि वे दुष्ट भोलरा को उसकी करनी का उचित दंड दें।
राजा बहुत बुद्धिमान था, सारा मामला फौरन ताड़ गया। उसने सबसे पहले धनी किसान से पूछा, ”जब भोला बैल लेकर आया था, तब तुम क्या कर रहे थे?“
”हुजूर, मैं भोजन कर रहा था।“ धनी किसान ने कहा।
”बैल तुमने देखे थे?“ राजा ने फिर पूछा।
”देखे थे हुजूर।“
”बैल तुम्हें वापस मिल सकते हैं।“
”सो कैसे हुजूर?“
”पहले तुम उसे अपनी आंखें निकालकर दो, क्योंकि जिन आंखों से तुमने बैलों को देखा था, उसकी बात पर विश्वास करने को तुम तैयार नहीं हो।“
राजा के निर्णय से धनी किसान घबरा गया।
इसके बाद राजा ने घुड़सवार से पूछा, ”भोला का कान कैसे कट गया?“
”उसे रास्ते में पत्थर लग गया था, महाराज।“
”रास्ते का पत्थर कैसे लग गया?“
”घोड़े का धक्का खाकर वह रास्ते पर गिर पड़ा।“
”घोड़ा किसका था?“
”मेरा था महाराज!“
”तुम्हें तुम्हारा घोड़ा मिल सकता है।“
घुड़सवार के चेहरे पर चमक आ गई, ”सो कैसे?“
”ऐसे कि तुम इसे इसका कान वापस कर दो। यह तुम्हें तुम्हारे घोड़े के प्राण लौटा देगा।“
राजा के निर्णय से घुड़सवार की बोलती बंद हो गई।
अब बारी आई नटों की। राजा ने उनसे प्रश्न किया, ”रस्सी किसकी थी?“
”हमारी भी हुजूर।“
”वह इतनी कमजोर क्यों थी?“
”उस पर चढ़कर हम रोज खेल दिखाते थे, हुजूर इसलिए घिस गई थी।“ नटों ने जवाब दिया।
”तो ऐसा करते हैं कि तुममें से कोई नट इस रस्सी का फंदा बनाकर डाल से लटज जाए। भोला को ठीक फंदे के नीचे लिटाया जाएगा। रस्सी टूटेगी तो वह नट इसके ऊपर गिर जाएगा और वह स्वयं अपनी मौत पर जाएगा। इस तरह इसे अपने किए की सजा मिल जाएगी। बताओ, कौन सा नट तैयार है बरगद के पेड़ पर लटकने को?“
राजा का निर्णय सुनकर सारे नट लज्जा से गड़ गए। राजा ने भोला को फौरन छोड़ दिया और भोला को व्यर्थ ही प्रताड़ित करने के अपराध में धनी किसान, घुड़सवार और नटों को दस दस कोड़े लगाने की सजा सुना दी।