अलिफ लैला की कहानी शहरयार और शहरजाद की शादी
एक बड़ा व्यापारी था जिसके गाँव में बहुत-से घर और कारखाने थे जिनमें तरह-तरह के पशु रहते थे। एक दिन वह अपने परिवार सहित कारखानों को देखने के लिए गाँव गया। उसने अपनी पशुशाला भी देखी जहाँ एक गधा और एक बैल बँधे हुए थे। उसने देखा कि वे दोनों आपस में वार्तालाप कर रहे हैं। वह व्यापारी पशु-पक्षियों की बोली समझता था। वह चुपचाप खड़ा होकर दोनों की बातें सुनने लगा।
बैल ने गधे से कहा, ‘तू बड़ा ही भाग्यशाली है, सदैव सुखपूर्वक रहता है। मालिक हमेशा तेरा खयाल रखता है। तेरी रोज मलाई-दलाई होती है, खाने को दोनों समय जौ और पीने के लिए साफ पानी मिलता है। इतने आदर-सत्कार के बाद भी तुझसे केवल यह काम लिया जाता है कि कभी काम पड़ने पर मालिक तेरी पीठ पर बैठ कर कुछ दूर चला जाता है। तुझे दाने-घास की कभी कमी नहीं होती।
‘और तू जितना भाग्यवान है मैं उतना ही अभागा हूँ। मैं सवेरा होते ही पीठ पर हल लादकर जाता हूँ। वहाँ दिन भर मुझे हल में जोतकर चलाते हैं। हलवाहा मुझ पर बराबर चाबुक चलाता रहता है। उसके चाबुकों की मार से पीठ और जुए से मेरे कंधे छिल गए हैं। सुबह से शाम तक ऐसा कठिन काम लेने के बाद भी ये लोग मेरे आगे सूखा और सड़ा भूसा डालते हैं जो मुझसे खाया नहीं जाता। रात भर मैं भूखा-प्यासा अपने गोबर और मूत्र में पड़ा रहता हूँ और तेरी सुख-सुविधा पर ईर्ष्या किया करता हूँ।’
गधे ने यह सुनकर कहा, ‘ऐ भाई, जो कुछ तू कहता है सब सच है, सचमुच तुझे बड़ा कष्ट है। किंतु जान पड़ता है तू इसी में प्रसन्न है, तू स्वयं ही सुख से रहना नहीं चाहता। तू यदि मेहनत करते-करते मर जाए तो भी ये लोग तेरी दशा पर तरस नहीं खाएँगे। अतएव तू एक काम कर, फिर वे तुझ से इतनी मेहनत नहीं लिया करेंगे और तू सूख से रहेगा।’
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बैल ने पूछा कि ऐसा कौन-सा उपाय हो सकता है। गधे ने कहा, ‘तू अपने को रोगी दिखा। एक शाम का दाना-भूसा न खा और अपने स्थान पर चुपचाप लेट जा।’ बैल को यह सुझाव बड़ा अच्छा लगा। उसने गधे की बात सुनकर कहा, ‘मैं ऐसा ही करूँगा। तूने मुझे बड़ा अच्छा उपाय बताया है। भगवान तुझे प्रसन्न रखें।’
दूसरे दिन प्रातःकाल हलवाहा जब पशुशाला में यह सोचकर गया कि रोज की तरह बैल को खेत जोतने के लिए ले जाए तो उसने देखा कि रात की लगाई सानी ज्यों की त्यों रखी है और बैल धरती पर पड़ा हाँफ रहा है, उसकी आँखें बंद हैं और उसका पेट फूला हुआ है। हलवाहे ने समझा कि बैल बीमार हो गया है और यह सोचकर उसे हल में न जोता। उसने व्यापारी को बैल के बीमारी की सूचना दी।
व्यापारी यह सुनकर जान गया कि बैल ने गधे की शिक्षा पर कार्य कर के स्वयं को रोगी दिखाया है अतएव उसने हलवाहे से कहा कि आज गधे को हल में जोत दो। इसलिए हलवाहे ने गधे को हल में जोत कर उससे सारे दिन काम लिया। गधे को खेत जोतने का अभ्यास नहीं था। वह बहुत थक गया और उसके हाथ-पाँव ठंडे होने लगे। शारीरिक श्रम के अतिरिक्त सारे दिन उस पर इतनी मार पड़ी थी कि संध्या को घर लौटते समय उसके पाँव भी ठीक से नहीं पड़ रहे थे।
इधर बैल दिन भर बड़े आराम से रहा। वह नाँद की सारी सानी खा गया और गधे को दुआएँ देता रहा। जब गधा गिरता-पड़ता खेत से आया तो बैल ने कहा कि भाई, तुम्हारे उपदेश के कारण मुझे बड़ा सुख मिला। गधा थकान के कारण उत्तर न दे सका और आकर अपने स्थान पर गिर पड़ा। यह मन ही मन अपने को धिक्कारने लगा कि अभागे, तूने बैल को आराम पहुँचाने के लिए अपनी सुख-सुविधा का विनाश कर दिया।
मंत्री ने इतनी कथा कर कहा, ‘बेटी, तू इस समय बड़ी सुख-सुविधा में रहती है। तू क्यों चाहती है कि गधे के समान स्वयं को कष्ट में डाले?’ शहरजाद अपने पिता की बात सुनकर बोली, ‘इस कहानी से मैं अपनी जिद नहीं छोड़ती। जब तक आप बादशाह से मेरा विवाह नहीं करेंगे मैं इसी तरह आपके पीछे पड़ी रहूँगी।’ मंत्री बोला, ‘अगर तू जिद पर अड़ी रही तो मैं तुझे वैसा ही दंड दूँगा जो व्यापारी ने अपनी स्त्री को दिया था।’ शहरजाद ने पूछा, ‘व्यापारी ने क्यों स्त्री को दंड दिया और गधे और बैल का क्या हुआ?’
मंत्री ने कहा, ‘दूसरे दिन व्यापारी रात्रि भोजन के पश्चात अपनी पत्नी के साथ पशुशाला में जा बैठा और पशुओं की बातें सुनने लगा। गधे ने बैल से पूछा, ‘सुबह हलवाहा तुम्हारे लिए दाना-घास लाएगा तो तुम क्या करोगे?’ ‘जैसा तुमने कहा है वैसा ही करूँगा,’ बैल ने कहा। गधे ने कहा, ‘नहीं, ऐसा न करना, वरना जान से जाओगे। शाम को लौटते समय मैंने सुना कि हमारा स्वामी अपने रसोइए से कह रहा था कि कल कसाई और चमार को बुला लाना और बैल, जो बीमार हो गया है, का मांस और खाल बेच डालना। मैंने जो सुना था वह मित्रता के नाते तुझे बता दिया। अब तेरी इसी में भलाई है कि सुबह जब तेरे आगे चारा डाला जाए तो तू उसे जल्दी से उठकर खा ले और स्वस्थ बन जा। फिर हमारा स्वामी तुझे स्वस्थ देखकर तुझे मारने का इरादा छोड़ देगा।’ यह बात सुन कर बैल भयभीत होकर बोला, ‘भाई, ईश्वर तुझे सदा सुखी रखे। तेरे कारण मेरे प्राण बच गए। अब मैं वही करूँगा जैसा तूने कहा है।
व्यापारी यह बात सुनकर ठहाका लगा कर हँस पड़ा। उसकी स्त्री को इस बात से बड़ा आश्चर्य हुआ। वह पूछने लगी, ‘तुम अकारण ही क्यों हँस पड़े?’ व्यापारी ने कहा कि यह बात बताने की नहीं है, मैं सिर्फ यह कह सकता हूँ कि मैं बैल और गधे की बातें सुन कर हँसा हूँ। स्त्री ने कहा, ‘मुझे भी वह विद्या सिखाओ जिससे पशुओं की बोली समझ लेते हैं।’ व्यापारी ने इससे इनकार कर दिया। स्त्री बोली, ‘आखिर तुम मुझे यह क्यों नहीं सिखाते?’ व्यापारी बोला, ‘अगर मैंने तुझे यह विद्या सिखाई तो मैं जीवित नहीं रहूँगा।’ स्त्री ने कहा, ‘तुम मुझे धोखा दे रहे हो। क्या वह आदमी जिसने तुझे यह सिखाया था, सिखाने के बाद मर गया? तुम कैसे मर जाओगे? तुम झूठ बोलते हो। कुछ भी हो मैं तुम से यह विद्या सीख कर ही रहूँगी। अगर तुम मुझे नहीं सिखाओगे तो मैं प्राण तज दूँगी।’
यह कह कर वह स्त्री घर में आ गई और अपनी कोठरी का दरवाजा बंद कर के रात भर चिल्लाती और गाली-गलौज करती रही। व्यापारी रात को तो सो गया लेकिन दूसरे दिन भी वही हाल देखा तो स्त्री को समझाने लगा कि तू बेकार जिद करती है, यह विद्या तेरे सीखने योग्य नहीं है। स्त्री ने कहा कि जब तक तुम मुझे यह भेद नहीं बताओगे, मैं खाना-पीना छोड़े रहूँगी और इसी प्रकार चिल्लाती रहूँगी। व्यापारी ने कहा कि अगर मैं तेरी मूर्खता की बात मान लूँ तो मैं अपनी जान से हाथ धो बैठूँगा। स्त्री ने कहा, ‘मेरी बला से तुम जियो या मरो, लेकिन मैं तुमसे यह सीख कर ही रहूँगी कि पशुओं की बोली कैसे समझी जाती है।’
व्यापारी ने जब देखा कि यह महामूर्ख अपना हठ छोड़ ही नहीं रही है तो उसने अपने और ससुराल के रिश्तेदारों को बुलाया कि वे उस स्त्री को अनुचित हठ छोड़ने के लिए समझाएँ। उन लोगों ने भी उस मूर्ख को हर प्रकार समझाया लेकिन वह अपनी जिद से न हटी। उसे इस बात की बिल्कुल चिंता न थी कि उसका पति मर जाएगा। छोटे बच्चे माँ की यह दशा देखकर हाहाकार करने लगे।
व्यापारी की समझ ही में नहीं आ रहा था कि वह स्त्री को कैसे समझाए कि इस विद्या को सीखने का हठ ठीक नहीं है। वह अजीब दुविधा में था – अगर मैं बताता हूँ तो मेरी जान जाती है और नहीं बताता तो स्त्री रो रो कर मर जाएगी। इसी उधेड़बुन में वह अपने घर के बाहर जा बैठा।
उसने देखा कि उसका कुत्ता उसके मुर्गे को मुर्गियों से भोग करते देख कर गुर्राने लगा। उसने मुर्गे से कहा, ‘तुझे लज्जा नहीं आती कि आज के जैसे दुखदायी दिन भी तू यह काम कर रहा है?’
मुर्गे ने कहा, ‘आज ऐसी क्या बात हो गई है कि मैं आनंद न करूँ?’ कुत्ता बोला, ‘आज हमारा स्वामी अति चिंताकुल है। उसकी स्त्री की मति मारी गई है और वह उससे ऐसे भेद को पूछ रही है जिसे बताने से वह तुरंत ही मर जाएगा। नहीं बताएगा तो स्त्री रो-रो कर मर जाएगी। इसी से सारे लोग दुखी हैं और तेरे अतिरिक्त कोई ऐसा नहीं है जो स्त्री संभोग की भी बात भी सोचे।’
मुर्गा बोला, ‘हमारा स्वामी मूर्ख है जो एक स्त्री का पति है और वह भी उसके अधीन नहीं है। मेरी तो पचास मुर्गियाँ हैं और सब मेरे अधीन हैं। अगर हमारा स्वामी एक काम करे तो उसका दुख अभी दूर हो जाएगा।’
कुत्ते ने पूछा कि स्वामी क्या करे कि उसकी मूर्ख स्त्री की समझ वापस आ जाए। मुर्गे ने कहा, ‘हमारे स्वामी को चाहिए कि एक मजबूत डंडा लेकर उस कोठरी में जाए जहाँ उसकी स्त्री चीख-चिल्ला रही है। दरवाजा अंदर से बंद कर ले और स्त्री की जम कर पिटाई करे। कुछ देर में स्त्री अपना हठ छोड़ देगी।’
मुर्गे की बात सुनकर व्यापारी ने उठकर एक मोटा डंडा लिया और उस कोठरी में गया जहाँ उसकी पत्नी चीख-चिल्ला रही थी। दरवाजा अंदर से बंद कर के व्यापारी ने स्त्री पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए। कुछ देर चीख-पुकार बढ़ाने पर भी जब स्त्री ने देखा कि डंडे पड़ते ही जा रहे हैं तो वह घबरा उठी। वह पति के पैरों पर गिर कर कहने लगी कि अब हाथ रोक ले, अब मैं कभी ऐसी जिद नही करूँगी। इस पर व्यापारी ने हाथ रोक लिया।
यह कहानी सुनाकर मंत्री ने शहरजाद से कहा कि अगर तुमने अपना हठ न छोड़ा तो मैं तुम्हें ऐसा ही दंड दूँगा जैसा व्यापारी ने अपनी स्त्री को दिया था। शहरजाद ने कहा ‘आप की बातें अपनी जगह ठीक हैं किंतु मैं किसी भी प्रकार अपना मंतव्य बदलना नहीं चाहती। अपनी इच्छा का औचित्य सिद्ध करने के लिए मुझे भी कई ऐतिहासिक घटनाएँ और कथाएँ मालूम हैं लेकिन उन्हें कहना बेकार है। यदि आप मेरी कामना पूरी न करेंगे तो मैं आप से पूछे बगैर स्वयं ही बादशाह की सेवा में पहुँच जाऊँगी।’
अब मंत्री विवश हो गया। उसे शहरजाद की बात माननी पड़ी। वह बादशाह के पास पहुँचा और अत्यंत शोक-संतप्त स्वर में निवेदन करने लगा, ‘मेरी पुत्री आपके साथ विवाह सूत्र में बँधना चाहती है।’ बादशाह को इस बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा, ‘तुम सब कुछ जानते हो फिर भी तुमने अपनी पुत्री के लिए ऐसा भयानक निर्णय क्यों लिया?’ मंत्री ने कहा, ‘लड़की ने खुद ही मुझ पर इस बात के लिए जोर दिया है। उसकी खुशी इसी बात में हैं कि वह एक रात के लिए आप की दुल्हन बने और सुबह मृत्यु के मुख में चली जाए।’ बादशाह का आश्चर्य इस बात से और बढ़ा। वह बोला, ‘तुम इस धोखे में न रहना कि तुम्हारा खयाल कर के मैं अपनी प्रतिज्ञा छोड़ दूँगा। सवेरा होते ही मैं तुम्हारे ही हाथों तुम्हारी बेटी को सौंपूँगा कि उसका वध करवाओ। यह भी याद रखना कि यदि तुमने संतान प्रेम के कारण उसके वध में विलंब किया तो मैं उसके वध के साथ तेरे वध की भी आज्ञा दूँगा।’
मंत्री ने निवेदन किया, ‘मैं आपका चरण सेवक हूँ। यह सही है कि वह मेरी बेटी है और उसकी मृत्यु से मुझे बहुत ही दुख होगा। लेकिन मैं आपकी आज्ञा का पालन करूँगा।’ बादशाह ने मंत्री की बात सुनकर कहा, ‘यह बात है तो इस कार्य में विलंब क्यों किया जाए। तुम आज ही रात को अपनी बेटी को लाकर उसका विवाह मुझ से कर दो।’
मंत्री बादशाह से विदा लेकर अपने घर आया और शहरजाद को सारी बात बताई। शहरजाद यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुई और अपने शोकाकुल पिता के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर के कहने लगी, ‘आप मेरा विवाह कर के कोई पश्चात्ताप न करें। भगवान चाहेगा तो इस मंगल कार्य से आप जीवन पर्यंत हर्षित रहेंगे।’
फिर शहरजाद ने अपनी छोटी बहन दुनियाजाद को एकांत में ले जाकर उससे कहा, ‘मैं तुमसे एक बात में सहायता चाहती हूँ। आशा है तुम इससे इनकार न करोगी। मुझे बादशाह से ब्याहने के लिए ले जाएँगे। तुम इस बात से शोक-विह्वल न होना बल्कि मैं जैसा कहूँ वैसा करना। मैं तुम्हें विवाह की रात पास में सुलाऊँगी और बादशाह से कहूँगी कि तुम्हें मेरे पास आने दे ताकि मैं मरने के पहले तुम्हें धैर्य बँधा सकूँ। मैं कहानी कहने लगूँगी। मुझे विश्वास है कि इस उपाय से मेरी जान बच जाएगी।’ दुनियाजाद ने कहा, ‘तुम जैसा कहती हो वैसा ही करूँगी।’
शाम को मंत्री शहरजाद को लेकर राजमहल में गया। उसने धर्मानुसार पुत्री का विवाह बादशाह के साथ करवाया और पुत्री को महल में छोड़कर घर आ गया। एकांत में बादशाह ने शहरजाद से कहा, ‘अपने मुँह का नकाब हटाओ।’ नकाब उठने पर उसके अप्रतिम सौंदर्य से बादशाह स्तंभित-सा रह गया। लेकिन उसकी आँखों मे आँसू देख कर पूछने लगा कि तू रो क्यों रही है। शहरजाद बोली, ‘मेरी एक छोटी बहन है जो मुझे बहुत प्यार करती है और मैं भी उसे बहुत प्यार करती हूँ। मैं चाहती हूँ कि आज वह भी यहाँ रहे ताकि सूर्योदय होने पर हम दोनों बहनें अंतिम बार गले मिल लें। यदि आप अनुमति दें तो वह भी पास के कमरे में सो रहे।’ बादशाह ने कहा, ‘क्या हर्ज है, उसे बुलवा लो और पास के कमरे में क्यों, इसी कमरे में दूसरी तरफ सुला लो।’
चुनांचे दुनियाजाद को भी महल में बुला लिया गया। शहरयार शहरजाद के साथ ऊँचे शाही पलँग पर सोया और दुनियाजाद पास ही दूसरे छोटे पलँग पर लेट रही। जब एक घड़ी रात रह गई तो दुनियाजाद ने शहरजाद को जगाया और बोली, ‘बहन, मैं तो तुम्हारे जीवन की चिंता से रात भर न सो सकी। मेरा चित्त बड़ा व्याकुल है। तुम्हें बहुत नींद न आ रही हो और कोई अच्छी-सी कहानी इस समय तुम्हें याद हो तो सुनाओ ताकि मेरा जी बहले।’ शहरजाद ने बादशाह से कहा कि यदि आपकी अनुमति हो तो मैं जीवन के अंतिम क्षणों में अपनी प्रिय बहन की इच्छा पूरी कर लूँ। बादशाह ने अनुमति दे दी।
अलिफ लैला की 64 कहानियों का संकलन
Alif laila ki kahani shaharayar aur shaharajad ki shadi
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bail ne gadhe se kaha, too bara hi bhagyashali hai, sadaiv sukhapoorvak rahata hai. malik hamesha tera khayal rakhata hai. teri roj malai-dalai hoti hai, khane ko donon samay jau aur pine ke lie saf pani milata hai. itane adara-satkar ke bad bhi tujhase keval yah kam liya jata hai ki kabhi kam parane par malik teri pith par baith kar kuchh door chala jata hai. tujhe dane-ghas ki kabhi kami nahin hoti.
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fir shaharajad ne apani chhoti bahan duniyajad ko ekant mein le jakar usase kaha, maim tumase ek bat mein sahayata chahati hoom. asha hai tum isase inakar n karogi. mujhe badshah se byahane ke lie le jaemge. tum is bat se shoka-vihval n hona balki maim jaisa kahoon vaisa karana. maim tumhem vivah ki rat pas mein sulaoomgi aur badshah se kahoomgi ki tumhem mere pas ane de taki maim marane ke pahale tumhem dhairy bamdha sakoom. maim Kahani kahane lagoomgi. mujhe vishvas hai ki is upay se meri jan bach jaegi. duniyajad ne kaha, tum jaisa kahati ho vaisa hi karoomgi.
sham ko mantri shaharajad ko lekar rajamahal mein gaya. usane dharmanusar putri ka vivah badshah ke sath karavaya aur putri ko mahal mein chhorakar ghar a gaya. ekant mein badshah ne shaharajad se kaha, apane mumh ka nakab hatao. nakab uthane par usake apratim saundary se badshah stambhita-sa rah gaya. lekin usaki amkhon me amsoo dekh kar poochhane laga ki too ro kyon rahi hai. shaharajad boli, meri ek chhoti bahan hai jo mujhe bahut pyar karati hai aur maim bhi use bahut pyar karati hoom. maim chahati hoon ki aj vah bhi yahan rahe taki sooryoday hone par ham donon bahanem antim bar gale mil lem. yadi ap anumati dem to vah bhi pas ke kamare mein so rahe. badshah ne kaha, kya harj hai, use bulava lo aur pas ke kamare mein kyom, isi kamare mein doosari taraf sula lo.
chunanche duniyajad ko bhi mahal mein bula liya gaya. shaharayar shaharajad ke sath oomche shahi palamg par soya aur duniyajad pas hi doosare chhote palamg par let rahi. jab ek ghari rat rah gai to duniyajad ne shaharajad ko jagaya aur boli, bahan, maim to tumhare jivan ki chinta se rat bhar n so saki. mera chitt bara vyakul hai. tumhem bahut nind n a rahi ho aur koi achchhi-si Kahani is samay tumhem yad ho to sunao taki mera ji bahale. shaharajad ne badshah se kaha ki yadi apaki anumati ho to maim jivan ke antim kshanon mein apani priy bahan ki ichchha poori kar loom. badshah ne anumati de di.