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Alif Laila Kahani machhuwara मछुवारे की कहानी

Alif Laila Kahani machhuwara अलिफ लैला की कहानी मछुवारे की कहानी

शहरजाद ने कहा कि हे स्वामी, एक वृद्ध और धार्मिक प्रवृत्ति का मुसलमान मछुवारा मेहनत करके अपने स्त्री-बच्चों का पेट पालता था। वह नियमित रूप से प्रतिदिन सवेरे ही उठकर नदी के किनारे जाता और चार बार नदी में जाल फेंकता था। एक दिन सवेरे उठकर उसने नदी में जाल डाला। उसे निकालने लगा तो जाल बहुत भारी लगा। उसने समझा कि आज कोई बड़ी भारी मछली हाथ आई है लेकिन मेहनत से जाल दबोच कर निकाला तो उसमें एक गधे की लाश फँसी थी। वह उसे देखकर जल-भुन गया, उसका जाल भी गधे के बोझ से जगह जगह फट गया था।

उसने सँभाल कर फिर नदी में फेंका। इस बार जो खींचा तो उसमे सिर्फ मिट्टी और कीचड़ भरा मिला। वह रो कर कहने लगा कि मेरा दुर्भाग्य तो देखो, दो-दो बार मैंने नदी में जाल डाला और मेरे हाथ कुछ नहीं आया। मैं तो इस पेशे के अलावा और कोई व्यवसाय जानता भी नहीं, मैं गुजर-बसर के लिए क्या करूँ।

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उसने जाल को धो-धा कर फिर पानी में फेंका। इस बार भी उसके हाथ दुर्भाग्य ही लगा, जाल में कंकड़, पत्थर और फलों की गुठलियों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। यह देखकर वह और भी रोने-पीटने लगा। इतने में सवेरे का उजाला भी फैल गया था। उसने भगवान का ध्यान धरा और विनय की, ‘हे सर्व शक्तिमान दीनदयाल प्रभु, तुम जानते हो कि मैं हर रोज सिर्फ चार बार नदी में जाल फेंकता हूँ। आज तीन बार फेंक चुका हूँ और कुछ हाथ नहीं आया और मेरी सारी मेहनत बेकार गई। अब एक बार जाल फेंकना रह गया है। अब तू कृपा कर और नदी से मुझे कुछ दिलवा दे और मुझ पर इस प्रकार दया कर जैसी किसी समय हजरत मूसा पर की थी।’

यह कहकर उसने चौथी बार जाल फेंका और खींचा तो भारी लगा। उसने सोचा इस बार तो जरूर मछलियाँ फँसी होंगी। बड़ा जोर लगा कर उसे बाहर निकालकर देखा कि उसमें सिवाय एक पीतल की गागर के और कुछ नहीं है। गागर के भार से वह समझा कि उसमें कुछ बहुमूल्य वस्तुएँ होंगी क्योंकि उसका मुँह सीसे के ढक्कन से अच्छी तरह बंद था और ढक्कन पर कोई मुहर लगी थी। मछुवारे ने मन में कहा कि यह अंदर से खाली हुआ तो भी इसे बेच कर पैसे मिल जाएँगे जिससे आज का काम किसी तरह चलेगा।

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उसने गागर को उलट-पलट कर और हिला-डुला कर देखा लेकिन उसमें से कोई शब्द नहीं निकला। फिर वह कहीं से एक चाकू लाया और बहुत देर तक मेहनत करके उसका मुँह खोला। अब वह झाँक कर गागर के अंदर देखने लगा लेकिन उसे कुछ नहीं दिखाई दिया। उसी समय उसने देखा कि गागर से धुआँ निकल रहा है। वह आश्चर्य से देखने लगा कि क्या होता है। गागर में से बहुत सा धुआँ निकल कर नदी के ऊपर आकाश में फैल गया। कुछ ही देर में वह धुआँ सिमट कर एक जगह आ गया और उसने एक भी भीषण दैत्य का आकार ले लिया। मछुवारा घबराकर भागने को हुआ लेकिन उसने सुना कि दैत्य हाथ उठाकर कह रहा है कि ऐ सुलेमान, मेरा अपराध क्षमा कीजिए, मैं कभी आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूँगा। मछुवारा यह सुनकर अपना डर भूल गया और बोला, ‘अरे भूत, तू क्या बक रहा है? सुलेमान को मरे अठारह सौ वर्षों से अधिक हो गए हैं। तू कौन है, मुझे बता कि तू इस गागर में किस प्रकार बंद हो गया।’

दैत्य ने उसे घृणापूर्वक देखकर कहा, ‘तू बड़ा बदतमीज है, मुझे भूत कहता है।’ मछुवारा बिगड़ कर बोला, ‘और कौन है तू? तुझे भूत न कहूँ तो गधा कहूँ?’

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दैत्य ने कहा, ‘तेरे मरने में अब अधिक समय नहीं है। मैं तुझे शीघ्र ही मार डालूँगा। तू अपनी बकबक बंद कर और मुझसे बात ही करनी है तो जुबान सँभाल कर के कर।’

मछुवारा घबराकर बोला, ‘तू मेरी हत्या क्यों करना चाहता है? क्या तू इस बात को भूल गया कि मैंने ही तुझे गागर के बंधन से छुड़ाया है।’

दैत्य बोला, ‘मुझे भली प्रकार ज्ञात है कि तूने ही गागर खोली है लेकिन इस बात से तेरी जान नहीं बच सकती। हाँ, मैं तेरे साथ एक रियायत करूँगा। मैं तुझे यह निर्णय करने का अधिकार दूँगा कि मैं किस प्रकार तुझे मारूँ।’

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मछुवारे ने कहा, ‘तेरे हृदय में जरा भी न्यायप्रियता नहीं है। मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है कि तू मुझे मारना चाहता है? क्या मेरे इस अहसान का बदला तू इसी प्रकार देना चाहता है कि अकारण मुझे मार डाले।’

दैत्य बोला, ‘अकारण नहीं मार रहा। मैं तुझे बताता हूँ कि तुझे मारने का क्या कारण है, तू ध्यान देकर सुन। मैं उन जिन्नों (दैत्यों) में से हूँ जो नास्तिक थे। अन्य दैत्य मानते थे कि हजरत सुलेमान ईश्वर के दूत (पैगंबर) हैं और उनकी आज्ञाओं का पालन करते थे। सिर्फ मैं और एक दूसरा दैत्य, जिसका नाम साकर था, सुलेमान की आज्ञा से विमुख हुए। बादशाह सुलेमान ने क्रुद्ध होकर अपने प्रमुख मंत्री आसिफ बिन वरहिया को आदेश दिया कि मुझे पकड़कर उसके (सुलेमान के) सामने पेश करे। मंत्री ने मुझे पकड़ कर उसके सामने खड़ा कर दिया। सुलेमान ने मुझसे कहा कि तू मुसलमान होकर मुझे पैगंबर मान और मेरी आज्ञाओं का पालन कर। मैंने इससे इनकार कर दिया। सुलेमान ने इसकी मुझे यह सजा दी कि मुझे इस गागर में बंद किया और अभिमंत्रित करके सीसे का ढक्कन इसके मुँह पर जड़ दिया और उस पर अपनी मुहर लगा दी और एक दैत्य को आज्ञा दी कि गागर को नदी में डाल दे। अतएव वह मुझे नदी में डाल गया। उस समय मैंने प्रण किया कि सौ वर्षों के अंदर जो आदमी मुझे निकालेगा उसे मैं इतना धन दे दूँगा कि वह आजीवन सुख से रहे और उसके मरणोपरांत भी बहुत-सा धन उसके उत्तराधिकारियों के लिए रह जाए। इस अवधि में मुझे किसी ने न निकाला। फिर मैंने प्रतिज्ञा की कि अब सौ वर्ष के अंदर जो मुझे मुक्त करेगा उसे मैं सारे संसार के खजाने दिलवा दूँगा। फिर भी किसी ने मुझे न निकाला। फिर मैंने प्रतिज्ञा की कि सौ वर्षों की तीसरी अवधि में जो मुझे मुक्त करेगा उसे मैं बहुत बड़ा बादशाह बना दूँगा और हर रोज उसके पास जाकर उस की तीन इच्छाए पूरी करूँगा। जब इस तीसरी अवधि में भी किसी ने मुझे न निकाला तो मुझे बड़ा क्रोध आया और उसी अवस्था में मैंने प्रण किया कि जो मुझे अब बाहर निकालेगा मैं अत्यंत क्रूरतापूर्वक उसके प्राण लूँगा। हाँ, उसके साथ इतनी रियायत करूँगा कि वह जिस प्रकार से मरना चाहेगा मैं उसे उसी प्रकार से मारूँगा। अब चूँकि तूने मेरी इस प्रतिज्ञा के बाद मुझे निकाला है इसीलिए अब तू बता कि तुझे किस प्रकार मारूँ।’

मछुवारा यह सुन कर आश्चर्यचकित और भयभीत हुआ और सोचने लगा कि दुर्भाग्य ही मेरे पीछे पड़ गया है जो मैं भलाई करके उसके बदले मृत्युदंड पा रहा हूँ। वह गिड़गिड़ाकर दैत्य से बोला, ‘भाई, तुम अपनी प्रतिज्ञा भूल जाओ, मेरे छोटे-छोटे बच्चों पर दया करो। यदि तुम्हारी समझ में मैंने कोई अपराध किया है तो भी मुझे क्षमा कर दो। क्या तुमने सुना नहीं कि जो दूसरों के अपराध क्षमा करता है ईश्वर उसके अपराध क्षमा करता है?’

दैत्य ने कहा, ‘यह बातें रहने दे। मैं तुझे मारे बगैर नहीं रहूँगा; तू सिर्फ बता कि किस प्रकार मरना चाहता है।’

मछुवारा अब बहुत ही भयभीत हुआ क्योंकि उसने देखा कि दैत्य उसे मारने का हठ नहीं छोड़ रहा है। अपने स्त्री-पुत्रों की याद करके वह अत्यंत दुखी हुआ। उसने एक बार फिर दैत्य का क्रोध शांत करने का प्रयत्न किया और उससे अनुनयपूर्वक कहा, ‘हे दैत्यराज, मैंने तो तुम्हारे साथ इतनी भलाई की है, तुम इसके बदले मुझ पर दया भी नहीं कर सकते?’ दैत्य बोला, ‘इसी भलाई करने के कारण तो तेरी जान जा रही है।’ मछुवारे ने फिर कहा, ‘कितने आश्चर्य की बात है कि तुम अपने उपकारकर्ता के प्राण लेने पर तुले हो। यह मसल मशहूर है कि अगर कोई बुरों के साथ भलाई करता है तो उसका कुपरिणाम ही उठाता है। यह कहावत तुम्हारे ऊपर पूरी तरह लागू होती है।’ दैत्य ने कहा, ‘तुम चाहे जितने सवाल-जवाब करो और चाहे जितनी कहावतें कहो, मैं तो तुम्हारी जान लेने के प्रण से हटता नहीं।’

मछुवारे ने अंत में अपनी रक्षा का एक उपाय सोचा। वह दैत्य से बोला, ‘अच्छा, अब मैं समझ गया कि तुम्हारे हाथ से मेरी जान नहीं बच सकती। यदि भगवान की यही इच्छा है तो मैं उसे प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता हूँ। लेकिन मैं तुझे उसी पवित्र नाम की – जिसे सुलेमान ने अपनी मुहर में खुदवाया था – सौगंध देकर कहता हूँ कि जब तक मैं अपने मरने का तरीका सोच कर तय करूँ तुम मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो।’ दैत्य इतनी बड़ी सौगंध से निरुपाय हो गया और काँपने-सा लगा। उसने कहा, ‘पूछ, क्या पूछना चाहता है। मैं तेरे प्रश्न का उत्तर दूँगा।’

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मछुवारे ने कहा, ‘मुझे तेरी किसी बात पर विश्वास नहीं होता। तू इतना विशालकाय प्राणी है, इतनी छोटी-सी गागर में कैसे समा गया। तू झूठ बोलता है।’ दैत्य बोला, ‘जिस पवित्र नाम की सौगंध तूने मुझे दिलाई है मैं उस की साक्षी देकर कहता हूँ कि मैं उसी गागर में था।’ मछुवारे ने कहा, ‘मुझे अब भी विश्वास नहीं है कि तू सच कहता है। इस गागर में तो तेरा एक पाँव भी नहीं आएगा, तू पूरा का पूरा किस प्रकार इसमें समा गया?’ दैत्य ने कहा, ‘क्या मेरे इतनी बड़ी सौगंध खाने से भी तुझे विश्वास नहीं आता?’ मछुवारा बोला, ‘तेरे कसम खाने से क्या होता है? मैं तो तभी मानूँगा जब तुझे अपनी आँखों से गागर के अंदर देखूँ और उसमें से आती हुई तेरी आवाज न सुनूँ।’

यह सुन कर दैत्य फिर धुएँ के रूप में परिवर्तित हो गया और सारी नदी पर फैल गया। फिर वह धुआँ रूपी दैत्य एक स्थान पर इकट्ठा हो गया और धीरे-धीरे गागर में जाने लगा। जब बाहर धुएँ का नाम-निशान न रहा तो गागर के अंदर से दैत्य की आवाज आई, ‘अब तो तुझे मालूम हुआ कि मैं झूठ नहीं कहता था, इसी गागर में बंद था?’ मछुवारे ने इस बात का उत्तर न दिया। उसने गागर का ढकना, जिस पर सुलेमान की मुहर लगी हुई थी, गागर के मुँह पर रखा और उसे मजबूती से बंद कर दिया। फिर वह बोला, ‘ओ दैत्य, अब तेरी बारी है कि तू गिड़गिड़ा कर मुझसे अपना अपराध क्षमा करने को कहे। या फिर मुझे यह बता कि तू स्वयं मेरे हाथ से किस प्रकार मरना चाहता है। नहीं, मेरे लिए तो यही उचित होगा कि मैं तुझे फिर इसी नदी में डाल दूँ और नदी के तट पर घर बनाकर रहूँ और जो भी मछुवारा यहाँ जाल डालने आए उसे चेतावनी दे दिया करूँ कि यहाँ एक गागर में एक महाभयंकर दैत्य बंद है, उसे कभी बाहर न निकालना क्योंकि उसने प्रण किया है कि जो भी उसे बाहर निकालेगा उसके हाथ से मारा जाएगा।’

यह सुन कर दैत्य बहुत घबराया। उसने बहुत हाथ-पाँव मारे कि गागर से निकल आए किंतु यह बात असंभव थी क्योंकि गागर के मुँह पर सुलेमान की मुहर लगा हुआ ढकना था और उस मुहर के कारण यह विवश था। उसे क्रोध तो बहुत आया किंतु उसने क्रोध पर नियंत्रण किया और अनुनयपूर्वक बोला, ‘मछुवारे भाई, तुम कहीं मुझे फिर नदी में न डाल देना। तुम क्या मेरी बात सच समझते थे? मैं तो केवल परिहासस्वरूप ही तुम्हें मारने की बात कर रहा था। खेद है कि तुमने मेरी बात को सच समझ लिया। अब मुझे निकाल लो।’

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मछुवारे ने हँसकर कहा, ‘क्यों भाई, जब तुम गागर के बाहर थे तब तो अपने को बड़ा शक्तिशाली दैत्य राज समझते थे और अकड़ते थे, अब क्या हुआ कि गागर के अंदर जाते ही अपने को बड़ा दीन-हीन समझ रहे हो। मैं तो अब तुम्हें नदी में जरूर डालूँगा और प्रलयकाल तक तुम इसी गागर में बंदी बने रहोगे।’ दैत्य ने कहा, ‘भगवान के लिए मुझे नदी में वापस फेंकने का इरादा छोड़ दे।’ इस प्रकार दैत्य ने बड़ी दीनता से छुटकारे की भीख माँगी, बहुत अनुनय-विनय की लेकिन मछुवारा टस से मस न हुआ। फिर दैत्य बोला, ‘यदि तुम मुझे इस बार छोड़ दो तो मैं तुम्हारे साथ बड़ा उपकार करूँगा।’ मछुवारा बोला, ‘तू महाधूर्त है। मैं तेरी बात पर कैसे विश्वास करूँ? अगर मैंने तुझे छोड़ दिया तो तू फिर मुझे मारने पर उद्यत हो जाएगा। तू इस उपकार का भी मुझे ऐसा ही कुफल देगा जैसा गरीक नामी बादशाह ने हकीम दूबाँ के साथ किया था।’ दैत्य ने यह पूछने पर कि यह कहानी क्या है, मछुवारे ने कहना शुरू किया।

अलिफ लैला की 64 कहानियों का संकलन

Alif Laila ki kahani – machhuvare ki Kahani 

shaharajad ne kaha ki he svami, ek vriddh aur dharmik pravritti ka musalaman machhuvara mehanat karake apane stri-bachchon ka pet palata tha. vah niyamit roop se pratidin savere hi uthakar nadi ke kinare jata aur char bar nadi mein jal fenkata tha. ek din savere uthakar usane nadi mein jal dala. use nikalane laga to jal bahut bhari laga. usane samajha ki aj koi bari bhari machhali hath ai hai lekin mehanat se jal daboch kar nikala to usmein ek gadhe ki lash famsi thi. vah use dekhakar jala-bhun gaya, usaka jal bhi gadhe ke bojh se jagah jagah fat gaya tha.

usane sambhal kar fir nadi mein fenka. is bar jo khincha to usame sirf mitti aur kichar bhara mila. vah ro kar kahane laga ki mera durbhagy to dekho, do-do bar maimne nadi mein jal dala aur mere hath kuchh nahin aya. maim to is peshe ke alava aur koi vyavasay janata bhi nahin, maim gujara-basar ke lie kya karoom.

usane jal ko dho-dha kar fir pani mein fenka. is bar bhi usake hath durbhagy hi laga, jal mein kankar, patthar aur falon ki guthaliyon ke atirikt kuchh bhi nahin tha. yah dekhakar vah aur bhi rone-pitane laga. itane mein savere ka ujala bhi fail gaya tha. usane bhagavan ka dhyan dhara aur vinay ki, he sarv shaktiman dinadayal prabhu, tum janate ho ki maim har roj sirf char bar nadi mein jal fenkata hoom. aj tin bar fenk chuka hoon aur kuchh hath nahin aya aur meri sari mehanat bekar gai. ab ek bar jal fenkana rah gaya hai. ab too kripa kar aur nadi se mujhe kuchh dilava de aur mujh par is prakar daya kar jaisi kisi samay hajarat moosa par ki thi.

yah kahakar usane chauthi bar jal fenka aur khincha to bhari laga. usane socha is bar to jaroor machhaliyam famsi hongi. bara jor laga kar use bahar nikalakar dekha ki usmein sivay ek pital ki gagar ke aur kuchh nahin hai. gagar ke bhar se vah samajha ki usmein kuchh bahumooly vastuem hongi kyonki usaka mumh sise ke dhakkan se achchhi tarah band tha aur dhakkan par koi muhar lagi thi. machhuvare ne man mein kaha ki yah andar se khali hua to bhi ise bech kar paise mil jaemge jisase aj ka kam kisi tarah chalega.

usane gagar ko ulata-palat kar aur hila-dula kar dekha lekin usmein se koi shabd nahin nikala. fir vah kahim se ek chakoo laya aur bahut der tak mehanat karake usaka mumh khola. ab vah jhamk kar gagar ke andar dekhane laga lekin use kuchh nahin dikhai diya. usi samay usane dekha ki gagar se dhuam nikal raha hai. vah ashchary se dekhane laga ki kya hota hai. gagar mein se bahut sa dhuam nikal kar nadi ke oopar akash mein fail gaya. kuchh hi der mein vah dhuam simat kar ek jagah a gaya aur usane ek bhi bhishan daity ka akar le liya. machhuvara ghabarakar bhagane ko hua lekin usane suna ki daity hath uthakar kah raha hai ki ai suleman, mera aparadh kshama kijie, maim kabhi apaki ajnya ka ullanghan nahin karoomga. machhuvara yah sunakar apana dar bhool gaya aur bola, are bhoot, too kya bak raha hai? suleman ko mare atharah sau varshon se adhik ho gae hain. too kaun hai, mujhe bata ki too is gagar mein kis prakar band ho gaya.

daity ne use ghrinapoorvak dekhakar kaha, too bara badatamij hai, mujhe bhoot kahata hai. machhuvara bigar kar bola, aur kaun hai too? tujhe bhoot n kahoon to gadha kahoom?

daity ne kaha, tere marane mein ab adhik samay nahin hai. maim tujhe shighr hi mar daloomga. too apani bakabak band kar aur mujhase bat hi karani hai to juban sambhal kar ke kara.

machhuvara ghabarakar bola, too meri hatya kyon karana chahata hai? kya too is bat ko bhool gaya ki maimne hi tujhe gagar ke bandhan se chhuraya hai.

daity bola, mujhe bhali prakar jnyat hai ki toone hi gagar kholi hai lekin is bat se teri jan nahin bach sakati. ham, maim tere sath ek riyayat karoomga. maim tujhe yah nirnay karane ka adhikar doomga ki maim kis prakar tujhe maroom.

machhuvare ne kaha, tere hriday mein jara bhi nyayapriyata nahin hai. maimne tera kya bigara hai ki too mujhe marana chahata hai? kya mere is ahasan ka badala too isi prakar dena chahata hai ki akaran mujhe mar dale.

daity bola, akaran nahin mar raha. maim tujhe batata hoon ki tujhe marane ka kya karan hai, too dhyan dekar suna. maim un jinnon (daityom) mein se hoon jo nastik the. any daity manate the ki hajarat suleman ishvar ke doot (paigambara) hain aur unaki ajnyaon ka palan karate the. sirf maim aur ek doosara daity, jisaka nam sakar tha, suleman ki ajnya se vimukh hue. badshah suleman ne kruddh hokar apane pramukh mantri asif bin varahiya ko adesh diya ki mujhe pakarakar usake (suleman ke) samane pesh kare. mantri ne mujhe pakar kar usake samane khara kar diya. suleman ne mujhase kaha ki too musalaman hokar mujhe paigambar man aur meri ajnyaon ka palan kara. maimne isase inakar kar diya. suleman ne isaki mujhe yah saja di ki mujhe is gagar mein band kiya aur abhimantrit karake sise ka dhakkan isake mumh par jar diya aur us par apani muhar laga di aur ek daity ko ajnya di ki gagar ko nadi mein dal de. ataev vah mujhe nadi mein dal gaya. us samay maimne pran kiya ki sau varshon ke andar jo adami mujhe nikalega use maim itana dhan de doomga ki vah ajivan sukh se rahe aur usake maranoparant bhi bahuta-sa dhan usake uttaradhikariyon ke lie rah jae. is avadhi mein mujhe kisi ne n nikala. fir maimne pratijnya ki ki ab sau varsh ke andar jo mujhe mukt karega use maim sare sansar ke khajane dilava doomga. fir bhi kisi ne mujhe n nikala. fir maimne pratijnya ki ki sau varshon ki tisari avadhi mein jo mujhe mukt karega use maim bahut bara badshah bana doomga aur har roj usake pas jakar us ki tin ichchhae poori karoomga. jab is tisari avadhi mein bhi kisi ne mujhe n nikala to mujhe bara krodh aya aur usi avastha mein maimne pran kiya ki jo mujhe ab bahar nikalega maim atyant krooratapoorvak usake pran loomga. ham, usake sath itani riyayat karoomga ki vah jis prakar se marana chahega maim use usi prakar se maroomga. ab choomki toone meri is pratijnya ke bad mujhe nikala hai isilie ab too bata ki tujhe kis prakar maroom.

machhuvara yah sun kar ashcharyachakit aur bhayabhit hua aur sochane laga ki durbhagy hi mere pichhe par gaya hai jo maim bhalai karake usake badale mrityudand pa raha hoom. vah giragirakar daity se bola, bhai, tum apani pratijnya bhool jao, mere chhote-chhote bachchon par daya karo. yadi tumhari samajh mein maimne koi aparadh kiya hai to bhi mujhe kshama kar do. kya tumane suna nahin ki jo doosaron ke aparadh kshama karata hai ishvar usake aparadh kshama karata hai?

daity ne kaha, yah batem rahane de. maim tujhe mare bagair nahin rahoomga; too sirf bata ki kis prakar marana chahata hai.

machhuvara ab bahut hi bhayabhit hua kyonki usane dekha ki daity use marane ka hath nahin chhor raha hai. apane stri-putron ki yad karake vah atyant dukhi hua. usane ek bar fir daity ka krodh shant karane ka prayatn kiya aur usase anunayapoorvak kaha, he daityaraj, maimne to tumhare sath itani bhalai ki hai, tum isake badale mujh par daya bhi nahin kar sakate? daity bola, isi bhalai karane ke karan to teri jan ja rahi hai. machhuvare ne fir kaha, kitane ashchary ki bat hai ki tum apane upakarakarta ke pran lene par tule ho. yah masal mashahoor hai ki agar koi buron ke sath bhalai karata hai to usaka kuparinam hi uthata hai. yah kahavat tumhare oopar poori tarah lagoo hoti hai. daity ne kaha, tum chahe jitane savala-javab karo aur chahe jitani kahavatem kaho, maim to tumhari jan lene ke pran se hatata nahin.

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yah sun kar daity fir dhuem ke roop mein parivartit ho gaya aur sari nadi par fail gaya. fir vah dhuam roopi daity ek sthan par ikattha ho gaya aur dhire-dhire gagar mein jane laga. jab bahar dhuem ka nama-nishan n raha to gagar ke andar se daity ki avaj ai, ab to tujhe maloon hua ki maim jhooth nahin kahata tha, isi gagar mein band tha? machhuvare ne is bat ka uttar n diya. usane gagar ka dhakana, jis par suleman ki muhar lagi hui thi, gagar ke mumh par rakha aur use majabooti se band kar diya. fir vah bola, o daity, ab teri bari hai ki too giragira kar mujhase apana aparadh kshama karane ko kahe. ya fir mujhe yah bata ki too svayam mere hath se kis prakar marana chahata hai. nahin, mere lie to yahi uchit hoga ki maim tujhe fir isi nadi mein dal doon aur nadi ke tat par ghar banakar rahoon aur jo bhi machhuvara yahan jal dalane ae use chetavani de diya karoon ki yahan ek gagar mein ek mahabhayankar daity band hai, use kabhi bahar n nikalana kyonki usane pran kiya hai ki jo bhi use bahar nikalega usake hath se mara jaega.

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