Kasai vyapari Akbar Birbal ki Kahani
एक बार आगरा शहर में एक कसाई रहता था। वह एक ईमानदार व्यक्ति था, जो न तो मिलावटी मांस बेचता था और न ही मांस का अधिक दाम लेता था। बेहतरीन मांस बेचने के कारण उसके शहर में बहुत सारे ग्राहक थे। शहर में हर किसी को उसकी दुकान के बारे में पता था और वे अपने परिवार व दोस्तों को भी उसकी दुकान की सिफारिश करते थे। त्यौहारों के समय में उसकी दुकान में लोगों की भीड़ लगी रहती थी और वह कसाई पूरे दिन उनकी सेवा में व्यस्त रहता था।
ऐसे ही एक दिन एक अनाज का व्यापारी कसाई की दुकान में आया। कसाई उस समय पैसे गिन रहा था। व्यापारी ने उसे एक किलो मांस देने को कहा। कसाई ने अपना पैसों वाला थैला काउंटर पर रखा और मांस लेने के लिए भंडार घर में चला गया। परन्तु जब वह वापस आया तो यह देखकर हैरान रह गया कि पैसों वाला थैला अब वहां नहीं था। कसाई ने बहुत गुस्से में कहा, ”श्रीमान माफ करना, मुझे लगता है आपने मेरा थैला चुराया है। मैं उसे मांस लेने जाने से पहले मेज पर छोड़कर गया था।“
व्यापारी बोला, ”तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे चोर कहने की। यह मेरे पैसों का थैला है। मैं दुकान से अपने साथ लाया था।“ कसाई ने कहा, ”मैं तुम पर कैसे विश्वास कर लूं कि तुम ने मेज से मेरा थैला नहीं लिया है। व्यापारी ने उत्तर दिया, ”मैं तुम पर कैसे विश्वास कर लूं कि तुम मेज पर थैला छोड़कर गये थे। ये सब तुम इसलिए बता रहे हो, ताकि मैं मजबूर होकर अपना थैला तुम्हें दे दूं।“
कसाई और व्यापारी की लड़ाई बाहर तक आ गई। बहुत से लोग उनके चारों और इकट्ठे हो गये। आखिरकार किसी ने उन्हें बीरबल (Birbal) के पास जाने का सुझाव यह कहकर दिया कि उसके पास इस समस्या का हल मिल जाएगा। इसलिए व्यापारी और कसाई बीरबल (Birbal) के पास गये।
बीरबल (Birbal) ने ध्यान से पैसों के थैले को जांचा परखा। फिर उसने व्यापारी से कहा, ”क्या तुम खून का व्यापार करते हो?“ व्यापारी हैरान था। उसने कहा, ”नहीं श्रीमान मैं तो अनाज का व्यापार करता हूं। मैं बहुत ज्यादा खून देखकर डर जाता हूं और मुझे चक्कर आने लगते हैं। मैं इससे जितना ज्यादा हो सके दूर रहने की कोशिश करता हूं।“ बीरबल (Birbal) मुस्कराया और उसने थैला कसाई के हाथों में रख दिया। बीरबल (Birbal) ने कहा, ”थैले पर खून के धब्बे हैं। कुछ सिक्कों पर भी खून के धब्बे लगे हुए हैं। अगर आपको खून से इतना ही डर लगता है, तो यह बैग आपका नहीं हो सकता है।“
व्यापारी को चोरी के लिए दंड दिया गया। कसाई ने बीरबल (Birbal) को धन्यवाद किया और ख़ुशी-ख़ुशी अपनी दुकान की ओर चल दिया।