आजकल अक्षय कुमार (Akshay Kumar) ऐसी फिल्मों में काम करते नज़र आ रहे हैं जिनकी कहानी असल ज़िन्दगी में हुई घटनाओ पर आधारित है . फिल्म “स्पेशल छब्बीस” ऐसी ही एक फिल्म थी. अब अक्षय कुमार बने हैं 1990 में हुए इराक़-कुवैत युद्ध (Iraq Kuwait war) के समय कुवैत से भारतीयों को सकुशल स्वदेश वापस लाये जाने वाले ऑपरेशन पर बनी फिल्म “एयरलिफ्ट” के हीरो. आइये, आपको बताते हैं क्या है “एयरलिफ्ट”की कहानी और कैसा रहेगा दर्शकों का इस फिल्म के प्रति रुझान.
फिल्म “एयरलिफ्ट” की कहानी : कहानी का मुख्य पात्र रणजीत कत्याल (अक्षय कुमार) है जो कुवैत में रहने वाला भारतीय मूल का कॉर्पोरेट बिजनेसमैन है. रणजीत एक टिपिकल मुनाफे के पीछे अँधा व्यापारी है जिसकी भारतीय संगीत में कोई रूचि नहीं है और वह सिर्फ अरेबियन संगीत ही सुन्ना पसंद करता है . अपनी पत्नी अमृता कत्याल (निम्रत कौर) और बच्ची के साथ कुवैत में रहता है और वहां का एक जाना माना व्यापारी है . रणजीत का मानना है कि उसका भविष्य अब कुवैत में ही है और वापस भारत लौटने में अब उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है .
अचानक इराक और कुवैत के बीच लड़ाई छिड़ जाती है और कुवैत में रह रहे लाखों भारतीय मूल के लोगों को भारत वापस लाये जाने की कवायद शुरू हो जाती है. तेजी से बदलते घटनाक्रम में रंजीत कटियाल के चरित्र में परिवर्तन आता है और वह एक नायक की तरह खुद भारत वापस न लौट कर कुवैत से एक लाख सत्तर हजार भारतीयों की देश वापसी में जुट जाता है. घटनाक्रम तेजी से बदलता है और कहानी में नए मोड़ आते हैं .
एयरलिफ्ट की स्क्रिप्ट: “एयरलिफ्ट” की स्क्रिप्ट सच्ची घटना पर आधारित है. युद्ध के दौरान जब इराक की सेना कुवैती लोगों को मार रही थी उस दौरान भारतीयों और कुवैतियों में अंतर को राजा ने अच्छे ढंग से दर्शाया है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी कमाल की है जिसके लिए प्रिया सेठ बधाई की पात्र हैं. वैसे तो फिल्म की शुरुआत के 5 मिनट आपको बांध देते हैं लेकिन फर्स्ट हाफ में कहानी को थोड़ा टाइट किया जा सकता था. फिल्म का सेकंड हाफ फास्ट और ज्यादा दिलचस्प है, जो आपको सीट से हिलने नहीं देगा . फिल्म का एक अनूठा क्षेत्र रहा है अंत में दिखाए जाने वाले क्रेडिट्स जिनका एक अलग ही इफ़ेक्ट पड़ता है .
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फिल्म एयरलिफ्ट का अभिनय पक्ष : पिछले कुछ सालों से चल रही अपनी फॉर्म को बरकरार रखते हुए अक्षय कुमार ने एक बार जानदार अभिनय की मिसाल पेश की है . बल्कि यह कहा जा सकता है कि अक्षय कुमार अपने अभिनय के सर्वोच्च शिखर के पास पहुंचते नज़र आ रहे हैं . फिल्म का एक दृश्य रोम रोम खड़े करने वाला है जब आसमान में फहराते तिरंगे को देख कर अक्षय कुमार के चेहरे पर भाव आते जाते हैं . निमृत कौर ने अक्षय कुमार की पत्नी के रोल में स्वाभाविक अभिनय किया है और एक पत्नी के इमोशंस को उभार कर प्रस्तुत करने में सफल रही हैं . फिल्म के बाकी कलाकारों जैसे पूरब कोहली ने ठीक ठाक काम किया है. इनामुल हक ने बेहतरीन तरीके से अरबी लहजे को बोलते हुए काबिल ए तारीफ अभिनय किया है. फिल्म का एक और याद रहने वाला पक्ष कुमुद मिश्रा की हृदयस्पर्शी एक्टिंग है जो हॉल से निकलने के बहुत देर बाद भी आपके दिल को गुदगुदाती रहेगी .
फिल्म एयरलिफ्ट का संगीत: फिल्म का संगीत बहुत उल्लेखनीय तो नहीं है पर हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह गीत-संगीत पर आधारित फिल्म नहीं है इसलिए इसमें म्यूजिक के लिए बहुत स्कोप था भी नहीं . अंकित तिवारी और अमाल मलिक ने अच्छा म्यूजिक दिया है . अरिजीत सिंह की आवाज गीतों में कर्णप्रिय लगती है .
“एयरलिफ्ट” किसी भी तरह से “Argo” के आसपास नहीं पहुँचती दिखाई देती पर दोनों फिल्मों में ही कुछ समानताएं जरूर हैं . दोनों ही फिल्मों में एक साधारण इंसान के समय की मांग पर असाधारण रूप से एक हीरो के रूप में उभरने की कहानी दिखाई गई है .
मानवीय भावनाओं का बहुत ही शानदार चित्रण एयरलिफ्ट की खासियत बन कर सामने आई है . अनेकों दृश्य ऐसे है जो दर्शक को रोमांचित करने में सफल होते हैं . बहुत सारे दृश्यों में डायरेक्टर राजा कृष्णा मेनों ने संवादों के बजाय मनोभावों के माध्यम से कहानी को आगे बढ़ाया है और ऐसे दृश्यों ने फिल्म में जान डाल दी है .
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खासकर फिल्म का वह सीन बहुत प्रभावी बन पड़ा है जब इराकी फौजों के कुवैत में घुसने के बाद अगली सुबह कुवैत में अफरातफरी और भय का माहौल है और अक्षय कुमार लौट कर देखता है कि उसकी पत्नी और बच्ची दोनों ही लापता मिलते हैं .
कुल मिला कर एक अवश्य ही देखे जाने लायक फिल्म है एयरलिफ्ट !
रेटिंग – 3.5*
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