बवाना उपचुनाव में आम आदमी पार्टी उम्मीदवार रामचंद्र की आसान जीत से जिसने सबसे ज्यादा राहत भरी सांस ली होगी वह आप उम्मीदवार रामचंद्र नहीं बल्कि आप के दिल्ली मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल होंगे. आज के उपचुनाव में जीत के बाद आप का दिल्ली विधानसभा में आंकड़ा 66 हो गया है.
बवाना उपचुनाव में आप के उम्मीदवार रामचंद्र पहले स्ताहन पर और भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार दुसरे और तीसरे स्थान पर रहे. आप छोड़कर भाजपा ज्वाइन करने वाले वेदप्रकाश के ऊपर आप के रामचंद्र ने 24000 से भी ज्यादा मतों के भरी अंतर से विजय दर्ज की.
बवाना उपचुनाव के क्या हैं आप, भाजपा और कांग्रेस के लिए मायने और खासकर इन चुनावों से क्या अरविन्द केजरीवाल को कोई मजबूती मिली है, आइये समझते हैं:
आप को इस उपचुनाव में मिली जीत से पार्टी की प्रतिष्ठा काफी हद तक पुनःस्थापित हुई है वहीं सबसे ज्यादा नुक्सान भाजपा को हुआ है बावज़ूद दुसरे स्थान पर रहने के. कांग्रेस पार्टी को इस चुनाव से कोई खास फायदा या नुक्सान होता नहीं दिखाई दे रहा.
आइये विस्तार से विश्लेषण करते हैं:
आम आदमी पार्टी:
इस उपचुनाव में जीत के साथ आप की विधायक संख्या 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में 66 हो गयी है. हालांकि इस चुनाव से पहले भी उसके पास 65 सदस्यों के साथ भारी बहुमत था लेकिन पंजाब और गोवा के चुनावों में जोर-शोर से उतरने और जीत का दम भरने के बाद मिली करारी हार से पार्टी का मनोबल टूटता सा नजर आ रहा था. कार्यकर्ताओं में हताशा का माहौल बनने लगा था. रही-सही कसर राजौरी गार्डन उपचुनाव और दिल्ली एमसीडी चुनाव में आप की हार ने पूरी कर दी. यहां तक की चुनावी पंडित आप का चैप्टर ख़त्म मानने लगे थे और अगले विधान सभा चुनावों में आप का सूपड़ा साफ़ होने की भविष्यवाणी भी करने लगे थे.
खासकर राजौरी गार्डन सीट पर आप उम्मीदवार की जमानत जब्त होना पार्टी के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान बन गया था. तीनों म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में जहाँ भाजपा ने शानदार जीत हासिल की वहीँ आप दूसरे नंबर पर तो रही लेकिन दोनों में अंतर बहुत ज्यादा था.
इसके बाद अरविन्द केजरीवाल का इलेक्शन कमिश्नर और बैलेट मशीनों पर सवाल उठाना उन्हें जनता की नजर में बचकाना साबित कर रहा था जैसे कि खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे.
लेकिन अरविन्द केजरीवाल ने इसके बाद दूरदर्शिता से काम लिया और अपनी रणनीति में परिवर्तन किया. केजरीवाल ने इस बात को समझा को उन्हें दिल्ली कि जनता ने दिल्ली की राजनीति करने के लिए बहुमत दिया था न कि अन्य राज्यों में महत्वाकांक्षी चुनाव लड़ने या केंद्र में नरेंद्र मोदी से टकराव के लिए. इसके बाद अरविन्द केजरीवाल ने अपने आपको पूरी तरह से दिल्ली तक सीमित करते हुए जन-संपर्क और अपनी सरकार के कामकाज पर पूरी तरह से केंद्रित कर लिया.
यह वही समय था जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री अरुण जेटली या लेफ्टिनेंट गवर्नर के खिलाफ कुछ भी बयानबाज़ी करने से पूरी तरह से अपने आप को बचाये रखा. सोशल मीडिया पर भी खुद को बुरी तरह से ट्रोल होते देख कर अरविन्द केजरीवाल ने अपनी सोशल मीडिया पर उपस्थिति बहुत कम कर दी. यहाँ तक की आज की जीत के बाद भी केजरीवाल ने मात्र ट्वीट भर ही किया.
काम से काम रखने वाला मुख्यमंत्री की बदलती इमेज ने आप को न केवल बवाना उपचुनाव में जीत दिलाई बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों में फिर से आप के लिए उम्मीदें जगा दी हैं.
भारतीय जनता पार्टी
बवाना उपचुनाव में भाजपा को आप की जीत से सबसे ज्यादा नुक्सान हुआ है. राजौरी गार्डन उपचुनाव और एमसीडी चुनावों में भारी जीत के बाद भाजपा को दिल्ली में 20 साल बाद सरकार बनने के आसार दिखाई दे रहे थे लेकिन पार्टी की चुनावी रफ़्तार पर जैसे ब्रेक सा लग गया.
आप छोड़कर भाजपा में आये वेदप्रकाश को तो बवाना के मतदाताओं ने पूरी तरह से नकार दिया वहीं यह हार दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी की व्यक्तिगत हार की तरह से सामने आई है. बवाना विधानसभा क्षेत्र में 35 % से ज्यादा पूर्वांचली (यूपी/बिहारी) वोटरों के बावजूद मनोज तिवारी (जो खुद पूर्वांचली हैं) बवाना में भाजपा को जीत नहीं दिला पाए. इलेक्शन से पहले भी आसार लगाए जा रहे थे कि बवाना उपचुनाव मनोज तिवारी के लिए वाटरलू साबित हो सकता है और इस हार ने उनके राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है.
अगर भाजपा ने गहन चिंतन नहीं किया तो आने वाले विधानसभा चुनावों में जीत प्राप्त करने का लक्ष्य मुश्किल साबित हो सकता है भाजपा के लिए दिल्ली अभी दूर ही रह सकती है. इस हार का एक असर अमित शाह पर भी दिखाई दिया. अमित शाह ने आज के चुनाव नतीजों में केवल गोवा में जीत पर ट्वीट किया और दिल्ली में हार के बारे में कोई कमेंट नहीं किया. यह दिखाता है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस हार को लेकर कितना असहज है.
कांग्रेस:
कांग्रेस के लिए इस चुनाव का महत्त्व यही है कि उसके उम्मीदवार ने शुरूआती कुछ चरणों में बढ़त बनाई और अंत में भी कांग्रेस को प्राप्त मतों का भाजपा से मतों का अंतर ज्यादा नहीं रहा. फिर भी यदि कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर सीरियस है तो उसे जमीनी लेवल पर कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी जिसके लिए अभी कांग्रेस तैयार नजर नहीं आ रही.