नौकरी के लिए 26 और शादी के लिए 30 वर्ष के उम्र को सही उम्र माना जाता है और इसके बाद शुरू होता है जिंदगी का दूसरा पड़ाव. क्योंकि शादी के बाद जिंदगी एक नया मोड़ ले लेती है. आमतौर पर शादी के बाद इंसान अपनी जिम्मेदियों को निभाने में इतना व्यस्त हो जाता है कि उसके दिमाग में दूसरी और कोई बात नही आती.
लेकिन हमारे देश में ऐसे कई महापुरुष हुवे हैं जिन्होंने आपने जीवन में शादी को मत्व नहीं दिया है. उन्होंने अपने पूरे जीवन को समाज के कल्याण और कई रोच्नात्मक कार्यों में लगा दिया है. स्वामी विवेकानंद, डॉ अब्दुल कलाम, अटल बिहारी बाजपेयी, मदर टेरेसा ऐसे और भी कई नाम हैं जिन्होंने अपने वैवाहिक जीवन से ज्यादा महत्व अपने सामाजिक जीवन को दिया है. हर किसी ने अपने-अपने व्कतिगत विचारों के कारणों से शादी नहीं की और अपने पुरे जीवन को अपने हिसाब से जिया.
महाराष्ट्र के पुणे में भी एक ऐसी ही महिला है. जिन्हों ने शादी को अपने जीवन का हिस्सा नहीं समझा और अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी रही हैं. 79 वर्षीय इस महिला ने अब तक शादी नहीं की. वो कहती हैं कि, ” मैंने शादी इसलिए नहीं की क्योंकि मेरे ज़माने में लड़के चाय पीने के बहाने लड़की को देखने और उसे पसंद करने आते थें. जो बात मुझे पसंद नहीं थी”. उन्होंने यह बात बेबाकी से आने पिता के सामने रखी. उन्होंने कहा कि मैं इस तरह से शादी नहीं कर सकती हूँ. जिसके बाद उनके पिता ने उनके बात को समझा और उन्हें अपने हिसाब से जिंदगी जीने की अनुमति दे दी.
वो कहती हैं कि वह अपने फैसले से बहूत खुश हैं. उन्हे इस बात की बेहद ख़ुशी है कि उन्होंने अपने जीवन को अपने हिसाब से जिया. उन्होंने वो सारे काम किये जो अपने जीवन में करना चाहती थी. आपको बता दें कि ‘ह्यूमन ऑफ इंडिया’ ने अपने फेसबुक पेज के जरिये इस महिला की कहानी दुनिया के सामने रखी है. हालाँकि पोस्ट में इनके नाम का जिक्र नहीं किया गया है.
पोस्ट में लिखा गया है कि वो अपने इच्छा से पिछले 16 साल से पुणे में ट्रैफिक नियंत्रित करती हैं. वो कहती हैं कि पुणे ट्रैफिक की हालत बेहद ख़राब है. इसीलिए वो इस काम में ट्रैफिक पुलिस की मदद करती हैं. पिछले कई सालों से वो ‘निराधार’ नाम के एक संस्था से भी जूडी हुई हैं. इसके कारण उनके कई सामाजिक संपर्क भी बन गए हैं.
उन्होंने साल 2000 में ‘स्कूलगेट वॉलेंटियर्स’ नाम से एक योजना शुरू की थी. इसके तहत स्कूल खुलने और बंद होने के दौरान स्कूल के सामने के ट्रैफिक को नियंत्रित किया जाता है.
वो कहती हैं कि आज वो 79 वर्ष की हो गई हैं. लेकिन वो ये काम तब तक करेंगी जब तक उनका शरीर, उनका साथ देता है. इसके अलावा उन्हें ड्राइविंग का भी बहूत शौक है. उन्होंने 1970 में पहली बार एक स्कूटर रैली में हिस्सा लिया था. इसके बाद उन्होंने मुंबई और नागपुर में आयोजित कई रैलियों में भी हिस्सा लिया. कई प्रतियोगिताओं में उन्होंने पुरस्कार भी जीते हैं.
अपने प्रतियोगिताओं के बारे में बताते हुवे उन्होंने बताया कि उस जमाने में वेस्पा स्कूटर से 896 किलोमीटर की यात्रा करने वाली वह भारत की पहली महिला प्रतीभागी थीं. अपने ड्राइविंग के शौक को उन्होंने 1934 मॉडल के आस्टिन जीप से पूरा किया है. वह विदर्भ से ले कर मुंबई-हैदराबाद तक ड्राइविंग कर चुकी हैं. उनके पास अपनी एक एंबेसडर कार भी है.
अपनी स्वतंत्र और आत्मनिर्भरता वाले मानसिकता का परिचय देते हुवे वो अपने जैसी महिलाओं के लिए कहती हैं कि, “जीवन को अपने तरीके से जीयो, शादी लड़की का अंतिम लक्ष्य नहीं है.”