महात्मा गांधी जिन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है, ने पूरे विश्व को अहिंसा और शांति का सन्देश दिया! पर गलतियाँ उनसे भी हुईं. भारी गलतियाँ, जिनका खामियाज़ा देश आज भी भुगत रहा है!
1. गांधीजी की हठधर्मिता – गांधीजी हठी थे, उनकी ‘माय वे ऑर हाईवे’ वाले सिद्धांत ने काफी क्षति पहुचाई ! गांधीजी ने काफी बड़े और प्रभावी आंदोलन किये पर आदर्शो एवं सिद्धांतों के नाम पर उन्हें खुद ही ख़त्म कर दिए ! मोटे तौर पर गांधी जी की नीति ये थी- “मुझे फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने बड़े नेता हैं या आपने कितने ही अच्छे काम किये हैं जबतक आप मेरे विचारों से सहमत नहीं, आपको मेरा समर्थन नहीं मिलेगा”
उदाहरण के तौर पर 1927 में गांधीजी ने घोषणा की कि मेरे बाद सी. राजगोपालाचारी को पार्टी की कमान सौंप दी जाये । पर 1942 में क्रिप्स कमीशन पर वैचारिक मतभेदों के बाद गांधीजी ने उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया और ये कहा कि राजगोपालाचारी नहीं बल्कि नेहरू मेरे उत्तराधिकारी होंगे। (और सिर्फ गांधी के उत्तराधिकारी होने का मतलब प्रधानमंत्री? प्रधानमंत्री का पद क्या गांधीजी की जागीर थी?) सिर्फ अपने आदर्शो को थोपने की वजह से उन्होंने नेताजी को पार्टी छोड़ने पर मजबूर कर दिया क्यूंकि गांधी जी और उनके समर्थक, जैसे जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस के विरोध पर हद से ज्यादा उतारू हो गए थे। सैद्धांतिक मतभेदों की वजह बहुतो को गाँधी के कोपभाजन का शिकार बनना पड़ा । यह गांधीजी की एक अहिंसक तानाशाही छवि को दर्शाता है ।
सायंस और टेक्नोलॉजी को लेकर भी गांधीजी के विचार भी काफी अजीब थे। विदेश में पढाई के बावजूद उन्हें ये शैतानी लगता था । उन्होंने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी को मरने दिया जबकि एक इंजेक्शन लगा देने भर से उनकी जान बच सकती थी । गांधीजी के आदर्शो के मुताबिक ये हिंसक था । (पढ़ें – Freedom at midnight)
2. भगत सिंह की फांसी – गांधीजी चाहते तो ये फांसी रोक सकते थे पर कई लोगों का यह मानना है कि गांधीजी ने भगत सिंह के केस पर कभी गंभीरता दिखाई ही नहीं। हालांकि भारत के वायसरॉय को लिखे पत्र में गांधी जी ने लिखा था “Execution is an irretrievable act. If you think there is the slightest chance of error of judgment, I would urge you to suspend for further review an act that is beyond recall” (मृत्युदण्ड एक असाध्य क्रिया है, यदि इसमें कही से भी कोई भी गुंजाईश है तो मैं आपसे विनती करता हूँ की कृपया इस फैसले को पुनः समीक्षा तक निलंबित किया जाये)
अवश्य पढ़ें –भारत को आजादी गांधी की अहिंसा और सत्याग्रह से मिली या भगत सिंह की कुर्बानी से?
यदि गांधीजी चाहते तो फांसी के खिलाफ आंदोलन कर सकते थे या फिर उनलोगो का साथ दे सकते थे जो भगत सिंह और उनके साथियों के फांसी के विरोध में शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे पर उन्होंने सिर्फ पत्र लिखने और विनती करने के अलावा कुछ नहीं किया।
प्रसिद्द लेखक A.G Noorani अपनी किताब थे “ट्रायल ऑफ़ भगत सिंह(Trail of Bhagat Singh)” के चौदहवें अध्याय में लिखते हैं “गांधी के प्रयास आधे अधूरे थे, उन्होंने कभी दिल से प्रयास किया ही नहीं! जब जेल में भगत सिंह और उनके साथी भूख हड़ताल पर थे, गांधीजी ने उनसे मिलने या उन्हें देखने तक की जहमत नहीं उठाई ! और तो और लार्ड इरविन को लिखे पत्र अपने मैं गांधी जी ने फांसी के फैसले को रद्द करने के बजाये उसे सिर्फ कुछ समय तक टालने का आग्रह किया था।”
3. अहिंसा का ढोंग- 1906 में गांधी जी ने ज़ुलु साम्राज्य के खिलाफ हुए युद्ध में अंग्रेजो को सहयोग दिया ! उनका ये मानना था की इस युद्ध में ब्रिटिश को सहयोग देकर वो उनका भरोसा जीत लेंगे। उन्होंने भारतीय सैनिको को ब्रिटिश सेना में भर्ती करने में ईस्ट इंडिया कंपनी को सहयोग दिया।
1920 की बात है जब गांधीजी के ही नेतृत्व में देशव्यापी असहयोग आंदोलन चरम पर था पर चौरा चौरी में कुछ उग्र लोगों ने एक पुलिस थाने को जला देने से आहृत होकर गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया। बड़ी अजीब बात है न, अंग्रेजो के लिए विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिक मर रहे थे तो कोई अहिंसा नहीं, पर जब देश की आजादी के लिए हिंसा की बात आती है तो गांधीजी को अहिंसा याद आजाती है।
हकीकत तो ये थी की गांधीजी अंग्रेजो के नज़र में वफादार बने रहना चाहते थे और इसके लिए वो कुछ भी कर सकते थे ! देश आजाद कराने के लिए वो कभी पूर्णतः समर्पित हुए ही नहीं। इतिहास गवाह है की आज़ादी मांगने से नहीं मिलती, छीननी पड़ती है, इसकी कीमत देशभक्तों को अपने खून से चुकानी पड़ती है जो गांधीजी ने नहीं बल्कि उन लोगोँ चुकाई जिन्हें आज भारत के इतिहास के पन्नो पर पर्याप्त जगह तक नसीब न हुई।
3.1 असहयोग आंदोलन – गांधीजी के अहिंसा से जुड़े बेतुके तर्क का एक नमूना यह भी है. इस आंदोलन को एक अभूतपूर्व सफलता मिल रही थी पर चौरा चौरी कांड के बाद अचानक गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया! वजह- गांधीजी के आदर्श!!
सिर्फ अपने अहिंसा के आदर्शों की रक्षा करने के लिए आपने एक देशव्यापी आंदोलन को वापस ले लिया! रास्ते और भी थे, आप चाहते तो अपने लोगो से शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अपील कर सकते थे ! पर आंदोलन वापस लेना क्या सही था?
आंदोलन के बाद 19 लोगों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गयी. 6 की मृत्यु पुलिस कस्टडी में हुई एवं 110 लोगो को आजीवन कारावास की सजा मिली! और ये सारी गिरफ्तारियां और फैसले सिर्फ संदेह और झूठे गवाहों के आधार पर हुए। क्या ये देशवासियो के साथ अन्याय नहीं था, क्या फांसी देना हिंसक नहीं था पर आपके आदर्श इन सब से कही बढ़ कर थे! आपने आंदोलन वापस लेकर अंग्रेजो को द्वितीय विश्वयुद्ध में सहयोग का आश्वाशन दिया।
4. भारत का विभाजन – गांधीजी की ये सबसे बड़ी भूल थी जिसे आज पूरा भारत भुगत रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध से 1942 के आंदोलन को अगर वापस न लिया गया होता तो न ही मुस्लिम लीग का निर्माण होता और न देश की मांग होती। 1942 में आंदोलन ने ये साफ़ कर दिया था की भारतीय अब और नहीं सहेंगे! इसे भांपते हुए इंग्लिश शासन ने अपना अंतिम दांव खेला, उन्होंने कहा की विश्व युद्ध में भारत हमारा सहयोग करे और हम बदले में उसे आज़ाद कर देंगे।
गांधी ने , अपनी आदत के अनुसार घुटने टेक दिए और अंग्रेजो को विश्वयुद्ध की समाप्ति तक का वक्त दिया जबकि आज़ादी हमें उससे पहले ही मिल सकती थी। इस बीच मुस्लिम लीग काफी तेज़ी से बढ़ा और उन्होंने अंग्रेजो से संधि की कि हम आपको सैनिक देंगे आप हमारी अलग राष्ट्र की मांग पर विचार करें। जाते जाते देश को विभाजित करने का सुनहरा मौका अंग्रेज कैसे छोड़ सकते थे।
उस समय कांग्रेस के नेताओं का कहना था विभाजन टाला नहीं जा सकता और उन्होंने विभाजन पर सहमति दे दी पर यदि गांधीजी अपनी बात पर अड़ जाते तो भी इस विभाजन को रोका जा सकता था!ऐसी ही समस्या अमेरिका की आज़ादी के वक़्त अब्राहम लिंकन के सामने थी पर देश के टुकड़े करने के बजाए उन्होंने एक लम्बी और हिंसक लड़ाई लड़ी तब जा कर अमेरिका आज यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका बना!
अरे मैं तो भूल ही गया था की गांधीजी को अहिंसा की पड़ी थी। पर विभाजन होने के बाद भी हमने जानें गवाई हैं। चाहे बांग्लादेश का निर्माण हो जा फिर ३ बार हुए भारत पाक युद्ध, हिंसा जारी है।
गांधीजी ये बात बार बार भूलते रहे कि आजादी की कीमत चुकानी पड़ती है। वह इंतज़ार करते रहे कि अंग्रेज उन्हें भारत की आज़ादी थाली में परोस कर देंगे। पर परोसने से पहले ही अंग्रेजो ने इसके टुकड़े टुकड़े कर दिए। गलत समय पर गलत लोगों के साथ गलत आदर्शों का अनुसरण गांधीजी के साथ साथ हम सबको महंगा पड़ गया।
5. गांधीजी की विवादित सेक्स लाइफ- सत्य के साथ अपने प्रयोग के लिए गांधीजी अपने कमरे में कुँवारी लड़कियों के साथ नग्न सोते थे !सरदार पटेल ने इस बारे में गांधीजी को पत्र लिख कर उनके इस प्रयोग को भयंकर भूल बताते हुए इसे रोकने को कहा था!
ब्रह्मचर्य के ये प्रयोग भी गाँधी की उसी हठधर्मिता और अतिवाद का परिणाम थे। जहाँ वे अपने को अपनी नजर में विजयी घोषित देखने के लिए स्त्री का वस्तु की भाँति प्रयोग करते रहे। साफ़ शब्दों में कहें तो युवतियों के साथ नग्न होकर सोने का परीक्षण करना ताकि अपनी ब्रह्मचर्य के लक्ष्य की पूर्णता जाँची -परखी जा सके।
इन सारी ग़लतियो के बावजूद गाँधीजी का भारत की स्वतंत्रता में एक अहम योगदान रहा जिसे हम नज़रअंदाज कतई नही कर सकते!
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